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Thursday, July 26, 2012

अन्ना हजारे के आंदोलन की छवि कमजोर होने के बुरे संकेत-हिन्दी लेख(new post on anna hazare's movement against corruption-new article and post)

                    अन्ना हजारे की टीम ने एक बार फिर जनलोकपाल बनाने के लिये अपना आंदोलन प्रारंभ कर दिया है।  अगर जरूरत पड़ी  और स्वास्थ्य न ेसाथ दिया तो अन्ना हजारे स्वयं भी अनशन पर बैठ सकते हैं।  अगर मगर किन्तु परंतु और यह वह के चक्कर में अन्ना हजारे जी का भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन अपनी उज्जवल छवि खो चुका है इसका पता तो इसके पा्ररंभ होने के एक दिन पहले ही इंटरनेट पर उन लोगों को चल गया होगा जो लेखन और रचनाओं के माध्यम से ब्लाग लिखने के साथ ही उसे पढ़ने वालों का मार्ग भी देखते हैं।  सर्च इंजिनों में इस आंदोलन के लिये खोज कम हुई है यह हम बड़े सादगी से लिख रहे हैं हकीकत यह है कि लोगों की रुचि इसमें खत्म हो गयी लगती है।  कुछ लोग यह कहें कि पूरे भारत की जनता इंटरनेट से जुड़ी नहीं है इसलिये इस आधार इस आंदोलन की लोकप्रियता कम होने की बात ठीक नहीं है पर हमारा अनुभव यह कहता है कि जब प्रचार माध्यमों में इस आंदोलनों का जोर था तब इंटरनेट पर भी इसकी खोज जमकर हो रही थी।  कहने का अभिप्राय यह है कि समाज की रुचियों में समानता होती है यह अलग बात है कि लोग अपने अपने स्तर के अनुसार साधनों का चयन कर समान विषयों से जुड़ते हैं।

            आखिर यह सब कैसे हो गया? इस आंदोलन से भले ही कुछ चेहरे चमके हों, अनेक लोगों को बौद्धिक विलास का सामग्री मिली हो तथा इसके समाचारों के साथ ही बहसें प्रसारित कर समाचार चैनलों ने भले ही विज्ञापनों के लिये जमकर समय का इस्तेमाल किया हो पर इसका परिणाम वहीं का वहीं है जहां से यह प्रारंभ हुआ था। अगर हम परिणामों को आंकड़ों में नापें तो सामने शून्य ही आता है।

          अन्ना हजारे के साथ जुड़े संगठनो के कर्णधारों ने उनके चेहरे का खूब उपयोग किया पर यह साफ दिखाई दिया कि कहीं न कहीं उनके लक्ष्य अस्पष्ट थे।  साफ बात यह है कि अन्ना और उनकी टीम आज भी दो अलग भाग दिखाई देते हैं।  अन्ना अकेले हैं पर उनके साथ जुड़े अन्य लोग अपने संगठन उनके पीछे लाकर स्वयं के  चेहरे चमकाने के अलावा कुछ नहीं कर पाये। जब यह अंादोलन अपने स्वर्णिम दौर  में था तब लोगों की भावनायें उच्च स्तर पर उसके साथ जुड़ी थीं।  उन भावनाओं से विभोर होकर आंदोलन के कर्णधार अनेक  तरह के ऐसे बयान देने लगे थे जिससे आंदोलन के लक्ष्य तथा विचार अस्पष्ट दिखाई देने लगे  थे।  उनके शब्दों में उत्साह  अधिक पर  गंभीर तथा स्पटतः विचारों का अभाव दिखाई देने लगा था।  उनकी कोई स्पष्ट योजना नही थी न ही  भविष्य के स्परूप की कोई कल्पना थी।  खाली बयानबाजी तथा अस्पष्ट वादों के बीच यह आंदोलन लंबे समय तक लोकप्रिय नहीं बना रह सका।
              अब सब थम चुका है।  हमारा मानना है कि अन्ना अब शायद ही स्वयं अनशन पर बैठें क्योंकि वह हवा का रुख देखकर अपनी चाल चलने वाली ऐसी शख्सियत हैं जो अपने इसी गुण की वजह से लोकप्रिय हैं।  प्रचार माध्यम अन्ना हजारे के आंदोलन को फ्लाप शो कर रहे हैं तो यह बात मानना ही पड़ती है।  यकीनन अन्ना यह सब भांपने में माहिर हैं और वह अपने कदम उस तरह आगे न बढ़ायें जैसे कि उनकी टीम अपेक्षा कर रही है। इतना अनुमान तो प्रचार प्रबंधको ने लगा ही लिया होगा कि इस बार यह आंदोलन अब उनके लिये विज्ञापन प्रसारित करने का इतना समय नहीं दिला सकता।  अगर हम वर्तमान समय में लोकप्रियता का आधार तय करें तो वह केवल यही है कि किसी शख्सियत की लोकप्रियता उतनी ही होती है जितनी वह प्रचार  माध्यमों को विज्ञापन के बीच प्रसारित खाली समय में अपनी जगह बना सके।  अन्ना समाचारों में तो हैं पर विज्ञापनों के लिये समय जुटाने का सामर्थ्य उनके आंदोलन में अब उतना नहीं है।  यही कारण है कि प्रचार माध्यम अब शायद इस आंदोलन के लिये वैसे काम न करें जैसे कि पहले करते रहे थे।  9 अगस्त से बाबा रामदेव भी अपना आंदोलन चलाने वाले हैं। वह इस समय देश में लगातार इसका प्रचार कर रहे हैं।  उनके इस आंदोलन की स्थिति पर भी लिखेंगे पर पहले अवलोकन करें।
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर
poet, Editor and writer-Deepak  'Bharatdeep',Gwalior
http://deepkraj.blogspot.com
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