समस्त ब्लॉग/पत्रिका का संकलन यहाँ पढें-

पाठकों ने सतत अपनी टिप्पणियों में यह बात लिखी है कि आपके अनेक पत्रिका/ब्लॉग हैं, इसलिए आपका नया पाठ ढूँढने में कठिनाई होती है. उनकी परेशानी को दृष्टिगत रखते हुए इस लेखक द्वारा अपने समस्त ब्लॉग/पत्रिकाओं का एक निजी संग्रहक बनाया गया है हिंद केसरी पत्रिका. अत: नियमित पाठक चाहें तो इस ब्लॉग संग्रहक का पता नोट कर लें. यहाँ नए पाठ वाला ब्लॉग सबसे ऊपर दिखाई देगा. इसके अलावा समस्त ब्लॉग/पत्रिका यहाँ एक साथ दिखाई देंगी.
दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

Monday, December 23, 2013

आम इंसान की मजबूरी-हिन्दी व्यंग्य कविता (aam insan ki mazboori-hindi vyangya kavita)




पर्दे पर कई चेहरे रोज आते हैं,
अपनी जुबान से कुछ करते
जन कल्याण का दावा
कुछ भ्रष्टाचार का राजफाश करने आते हैं।
कहें दीपक बापू
वोट कमाने के लिये
नोटों का होना जरूरी है,
शिखर पर जो बैठ गया
इसलिये बनाता गरीब से दूरी है,
पुराने चेहरे बासी जब हो जाते,
सौदागर कोई नया चेहरा फिर सजाते,
वादे करते करते जमाना गुजर गया
मगर देश बदहाल रहा,
नाम लिया सभी ने जनसेवा का
गरीब हमेशा बेहाल रहा,
आम इंसानों की टूटती एक से आस
मजबूरी में नये चेहरे के कंधे पर
अपनी उम्मीद का आकाश टिकाते हैं।
------------


लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poem-Deepak Raj Kukreja ""Bharatdeep""
Gwalior, madhyapradesh
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर
poet, Editor and writer-Deepak  'Bharatdeep',Gwalior
http://deepkraj.blogspot.com
-------------------------
यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘शब्दलेख सारथी’ पर लिखा गया है। अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द लेख पत्रिका
2.दीपक भारतदीप की अंतर्जाल पत्रिका
3.दीपक भारतदीप का चिंतन
४.शब्दयोग सारथी पत्रिका 

५.हिन्दी एक्सप्रेस पत्रिका

Thursday, December 5, 2013

अमन का सौदा-हिन्दी कवितायें (aman ka sauda-hindi poem's)



पर्दे के पीछे शोर का जो इंतजाम कर पाते,
शहर में अमन का पैगाम वही बेचने आते हैं,
अपने  मतलब के लिये सजाते जो बड़ी महफिलें
वही आम इंसानों की भलाई के ठेके ले  पाते हैं।
कहें दीपक बापू सभी हैं यहां दौलत के पुजारी
खून खराबा और भलाई सौदा लेकर ही किये जाते हैं।
....................
सुनते हैं विकास बहुत हुआ
मगर कहीं वह दिखता नहंी है,
कहीं चमकदार दीवारें छत के इंतजार में हैं
मगर उस पर कोई खूबसूरत इबारत लिखता नहीं है।
तस्वीरों में भूखे पेट से झांक रही पथरायी आंखें
शायद उन  पर कोई रंग टिकता नहीं है।
कहें दीपक बापू आंकड़ों  के खेल है में जादू है
अन्न का ढेर लगा पर भूख के लिये बिकता नहीं है।
--------------


लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poem-Deepak Raj Kukreja ""Bharatdeep""
Gwalior, madhyapradesh
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर
poet, Editor and writer-Deepak  'Bharatdeep',Gwalior
http://deepkraj.blogspot.com
-------------------------
यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘शब्दलेख सारथी’ पर लिखा गया है। अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द लेख पत्रिका
2.दीपक भारतदीप की अंतर्जाल पत्रिका
3.दीपक भारतदीप का चिंतन
४.शब्दयोग सारथी पत्रिका 

५.हिन्दी एक्सप्रेस पत्रिका

Sunday, November 10, 2013

क्रिकेट खेल से शालीन विदाई के क्षण-हिन्दी लेख(cricket khel se shallen vidai ke kshan-hindi article or lekh on sachin fairwell)



            अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट से अलविदा करने के लिये तैयार कथित भगवान का अब भी बाज़ारीकरण हो रहा है।  आखिर उसे भगवान कहा किसने? यकीनन कोई सच्चा क्रिकेट खिलाड़ी या प्रेमी किसी भी खिलाड़ी के साथ भगवान की उपाधि स्वीकार नहीं कर सकता।  बाज़ार उसका कृतज्ञ है कि उसने अपने व्यक्तिगत खेल के प्रभाव से उनके उत्पादों के विज्ञापनों का संचालन कुशलता से किया।  उसका चेहरा आकर्षक है।  आंखों की मासूमियत स्त्रियों को प्रभावित करती है और उस पर फिल्माया गया कोई भी विज्ञापन अपनी वस्तु को लोकप्रियता दिलाता है।  बाज़ार के सहयोगी प्रचार माध्यम उसे भगवान कहकर लोगों को हसंने का अवसर देते रहे।  वह भगवान उन लोगों के लिये रहा जिनको इससे पैसा कमाना था।  वरना उसके निजी आंकड़े बीसीसीआई की क्रिकेट टीम की किसी एतिहासिक यात्रा के सहायक नहीं बने।  इसके पीछे सच यह है कि जब वह जब अकेले पराक्रम प्रकट कर रहा था तब उसके सहारे अनेक अक्षम खिलाड़ियों का खराब प्रदर्शन छिपता जा रहा था।  कुछ बेईमान खिलाड़ी भी उसके साथ रहे जिन्हें बाद में फिक्सिंग के कारण दंडित होना पड़ा।  देखा जाये तो जब उसका खेल चरम पर था तब फिक्ंिसग अपने पांव पूरी तरह जमा रही थी।  उसके खेल निर्विवाद श्रेष्ठ था पर बीसीसीआई की टीम का सामूहिक प्रदर्शन  उसी दौर में सबसे ज्यादा खराब रहा।  इस पर अलग से विश्लेषण करना चाहिये।
                        हैरानी की बात यह है कि पिछले कुछ दिन से अंतर्राट्रीय मैचों से सट्टे की चर्चा एकदम गायब थी पर जैसे ही वह अपने अंतिम मैच खेलने उतरा फिर सट्टे की चर्चा गरम हो गयी। वह कितने रन बनायेगा, कब आउट होगा, कितने रन बनायेगा इन बातों को लेकर सट्टा लग रहा है, ऐसा प्रचार माध्यम कह रहे हैं।  इधर प्रचार माध्यम भी अनेक सफेदपोश प्रतिष्ठित लोगों को एकत्रित कर उसकी विदाई को सम्मानजनक बनाने में लगे हैं।  क्रिकेट विशेषज्ञों में कुछ ऐसे हैं जो भले ही पैसा कमाने के लिये पर्दे पर उसकी विदाई को आकर्षक बनाने के लिये आंखों देखा हाल सुनाकर उसकी प्रशंसा कर रहे हों पर वह जानते हैं कि बीसीसीआई की वर्तमान  टेस्ट टीम में उसके लिये जगह ही नहीं बनती।  कलकत्ता में बीसीसीआई की जिस टीम ने वेस्टइंडीज की हराया उसमें शामिल खिलाड़ियों पर दृष्टिपात करें तो यही  भगवान योग्यता की दृष्टि से 11 वां होना चाहिये।  इसका मतलब यह है कि उससे ज्यादा योग्य खिलाड़ी देश में है और 11 वां नंबर इसलिये उसे मिला क्योंकि वह टीम में शामिल है। मुंबई में होने वाले अंतिम टेस्ट का महत्व केवल इसलिये है क्योंकि भगवान वहां से विदाई लेने वाला है। जहां तक परिणाम का प्रश्न है वेस्ट इंडीज की वर्तमान कमजोर टीम बीसीसीआई की टीम को हरा पाये इसकी संभावना नगण्य है।
            एक दूसरा सच भी है जैसे जैसे भगवान का पतन प्रारंभ हुआ वैसे  वैसे बीसीसीआई की टीम ने उत्कर्ष की तरफ कदम बढ़ाये।  अब तो लोगों ने यह कहना प्रारंभ कर दिया था कि पहले भगवान दूसरे खिलाड़ियों का बोझ उठा रहा था अब उसका बोझ नये खिलाड़ी उठा रहे हैं।  कुछ क्रिकेट विशेषज्ञ तो यह भी कहते रहे हैं कि भगवान को अनफिट हुए छह वर्ष हो गये हैं। इतने बरस तक वह खेला तो केवल बाज़ार और प्रचार समूहों के प्रभाव की सहायता उसे मिली। उसे टीम से हटाना सहज नहीं था। देखा जाये तो हम पर्दे पर जो अब टीमें देखते हैं उनका निष्पक्ष चयन एक दिखावा होता है क्योंकि बिना प्रायोजकों की सहमति से खिलाड़ियों का आना संभव नहीं है।  कभी आपने मैच के बाद पुरस्कारों के चयन के समय पीछे लगे कंपनियों के प्रचार वाले बोर्ड देखे होंगे।  क्या आप मान सकते हैं कि इतनी सारी कपंनियां निरपेक्ष भाव से क्रिकेट खेल को चलते देख सकती हैं। अपने उत्पाद के विज्ञापनों के माडलों की छवि बनाये रखने की चिंता नहीं करती होंगी जो खराब प्रदर्शन के बावजूद उन्हें टीम में रखने से जाहिर होती है। यह कंपनियां  खिलाड़ियों के चयन और खेल पर प्रभाव डालने का प्रयास नहीं करती होंगी, इस पर यकीन करना कठिन है।  वह खिलाड़ी भगवान इसलिये कहलाया क्योंकि उसकी वजह से कंपनियों को यह खेल एक सोने की खान की तरह हाथ आया। सट्टेयबाजों ने भी अपना काम किया।  भगवान कभी स्वयं गलत काम में शािमल न हो पर उसकी आड़ में कुछ गलत तत्व छिपते रहे।
            चलते चलते विराट कोहली के खेल की चर्चा करें।  दूसरी पारी में लक्ष्य का पीछा करते हुए जितने मैच उसने बीसीसीआई की टीम को इतनी कम अवधि में जितवायें होंगे उसके दस फीसदी का मुकाबला भी भगवान की पारियों के आंकड़े नहीं कर सकते। लोग विराट कोहली में भगवान का रूप देख रहे हैं और हम सोचते हैं कि भगवान विराट कोहली जैसा क्यों नहीं खेल सका। 1983 में भारत को विश्व कप जितवाने वाले कपिल देव और अब धोनी वास्तव में टीम के सदाबहार नायक कहे जा सकते हैं।  धोनी तो गजब का योद्धा है।  हम सोचते हैं कि भगवान के व्यक्तिगत कीर्तिमान भले ही उससे बेहतर हैं पर इतिहास उसके कुल पराक्रम को उस तरह प्रकट क्यों नहीं करता जैसा कि दावा प्रचार माध्यम करते हैं।  बहरहाल एक मामले में उसकी प्रशंसा करना चाहिये। उसका व्यवहार मैदान पर हमेशा शालीन रहा और यही देश के अन्य खिलाड़ियों को सीखना चाहिये।  क्रिकेट में ऐसी शालीन विदाई भी किसी की नहीं देखी गयी।                       


लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poem-Deepak Raj Kukreja ""Bharatdeep""
Gwalior, madhyapradesh
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर
poet, Editor and writer-Deepak  'Bharatdeep',Gwalior
http://deepkraj.blogspot.com
-------------------------
यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘शब्दलेख सारथी’ पर लिखा गया है। अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द लेख पत्रिका
2.दीपक भारतदीप की अंतर्जाल पत्रिका
3.दीपक भारतदीप का चिंतन
४.शब्दयोग सारथी पत्रिका 

५.हिन्दी एक्सप्रेस पत्रिका

Thursday, October 24, 2013

सौदागरों के लफड़े-हिन्दी व्यंग्य कविता(saudagaron ke lafde-hindi vyangya kavita)



शोर मचा है कहीं बाज़ार में
सौदागर काले हाथ करते हुए  पकड़े हैं,
कानून की जंजीरों में अब जकड़े  है,
हैरान है सौदागरों के कारिंदे
यह सोचकर कि अपना काफिला
कैसे आगे चलेगा,
कहंी उनके घर में घी की बजाय
तेल का चिराग तो नहीं जलेगा,
इसलिये नारे लगाते हुए
अपने मालिक की ईमानदारी पर
सीना तानकर खड़े अकड़े हैं।
कहें दीपक बापू
दौलतमंद चाहे कितने भी आगे हों
सारे जहान में
मगर ईमान के रास्ते चलने पर
उनकी नानी हमेशा मरती,
हुकुमत पर काबू रखने का
ख्वाब अच्छा है
मगर उसके आगे चलने की ख्वाहिश भी
उनकी आहें भरती,
यह अलग बात है
कानून अंधा है
कभी कभी चल पड़ता है
अपने ही दोस्तों की तरफ
अपने हाथ बढ़ाते हुए,
खरीदते हैं जो उसे अपने सिक्कों की दम पर
चल पड़ता है डंडा लेकर कभी
उनको डराते हुए,
सौदागरों के हमदर्द
ज़माने के बिखर जाने का खौफ दिखाते हैं
आवाज इतनी जोर से करते
ताकि कोई न पूछे
उनके मालिकों के दूसरे कितने लफड़े हैं।
------------------


लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poem-Deepak Raj Kukreja ""Bharatdeep""
Gwalior, madhyapradesh
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर
poet, Editor and writer-Deepak  'Bharatdeep',Gwalior
http://deepkraj.blogspot.com
-------------------------
यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘शब्दलेख सारथी’ पर लिखा गया है। अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द लेख पत्रिका
2.दीपक भारतदीप की अंतर्जाल पत्रिका
3.दीपक भारतदीप का चिंतन
४.शब्दयोग सारथी पत्रिका 

५.हिन्दी एक्सप्रेस पत्रिका

Monday, October 14, 2013

उनका हिसाब-हिन्दी व्यंग्य कविता (unka hisab-hindi vyangya kavita)



जिनको उम्मीद है कोई तुमसे
उन पर  अपना आसरा
कभी नहीं टिकाना,
वादे पर वादे वह करेंगे
मतलब निकलते ही
बदल लेंगे  अपना ठिकाना।
कहें दीपक बापू
अगर वह चालाक नहीं होते,
गद्देदार पलंग की बजाय जमीन पर सोते,
वफादारी निभाने की अगर उनमें तमीज होती,
तब क्यों उनकी एकदम सफेद कमीज होती,
पसीने की एक बूंद नहीं है शरीर पर जिनके,
आम इंसान होते उनके लिये तिनके,
एक हाथ उठाकर वह एक चीज मांगें
तुम दोनो हाथों से दो चीज देना
किसी के खाते में उनका हिसाब न लिखाना,
आदत नहीं है उनको
मतलब पूरा होने के बाद अपनी शक्ल दिखाना।
--------------------------------



लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poem-Deepak Raj Kukreja ""Bharatdeep""
Gwalior, madhyapradesh
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर
poet, Editor and writer-Deepak  'Bharatdeep',Gwalior
http://deepkraj.blogspot.com
-------------------------
यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘शब्दलेख सारथी’ पर लिखा गया है। अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द लेख पत्रिका
2.दीपक भारतदीप की अंतर्जाल पत्रिका
3.दीपक भारतदीप का चिंतन
४.शब्दयोग सारथी पत्रिका 

५.हिन्दी एक्सप्रेस पत्रिका

Sunday, October 6, 2013

कुदरत की चाल और इंसान की चालाकियां-हिन्दी कविता(kudrat ki chal aur insan ki chalakiyan-hindi kavita)



कुदरत की अपनी चाल है
इंसान की अपनी चालाकियां है,
कसूर करते समय
सजा से रहते अनजान
यह अलग बात है कि
सर्वशक्तिमान की सजा की भी बारीकियां हैं,
दौलत शौहरत और ओहदे की ऊंचाई पर
बैठकर इंसान घमंड में आ ही जाता है,
सर्वशक्तिमान के दरबार में हाजिरी देकर
बंदों में खबर बनकर इतराता है,
आकाश में बैठा सर्वशक्तिमान भी
गुब्बारे की तरह हवा भरता
इंसान के बढ़ते कसूरों पर
बस, मुस्कराता है
फोड़ता है जब पाप का घड़ा
तब आवाज भी नहीं लगाता है।
कहें दीपक बापू
अहंकार ज्ञान को खा जाता है,
मद बुद्धि को चबा जाता है,
अपने दुष्कर्म पर कितनी खुशफहमी होती लोगों को
किसी को कुछ दिख नहंी रहा है,
पता नहीं उनको कोई हिसाब लिख रहा है,
गिरते हैं झूठ की ऊंचाई से लोग,
किसी को होती कैद
किसी को घेर लेता रोग
उनकी हालत पर
जमीन पर खड़े इंसानों को तरस ही जाता है।

लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poem-Deepak Raj Kukreja ""Bharatdeep""
Gwalior, madhyapradesh
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर
poet, Editor and writer-Deepak  'Bharatdeep',Gwalior
http://deepkraj.blogspot.com
-------------------------
यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘शब्दलेख सारथी’ पर लिखा गया है। अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द लेख पत्रिका
2.दीपक भारतदीप की अंतर्जाल पत्रिका
3.दीपक भारतदीप का चिंतन
४.शब्दयोग सारथी पत्रिका 

५.हिन्दी एक्सप्रेस पत्रिका

Thursday, September 26, 2013

नाटकीय अंदाज-हिन्दी व्यंग्य कविता(natkiy andaz-hindi vyangya kavita)



दूसरे को विष देने के लिये सभी तैयार
पर  हर कोई खुद अमृत चखता है,
घर से निकलता है  अपनी  खुशियां ढूंढने
पूरा ज़माना बड़े जोश के साथ
दूसरों को सताने के लिये
दर्द की पुड़िया भी साथ रखता है।
कहें दीपक बापू
बातें बहुत लोग करते हैं
सभी का भला करने की
मगर आमादा रहते
अपना मतलब निकालने के वास्ते,
जुबां से करते गरीबों की मदद की बात
आंखें उनकी ढूंढती अपनी कमीशने के रास्ते,
बेबसों की मदद का नारा लोग  देते,
पहले अपने लिये दान का चारा लेते,
नाटकीय अंदाज में सभी को रोटी
दिलाने के लिये आते वही सड़कों पर
जिनके घर में चंदे से भोजन पकता है।
------------------------

लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poem-Deepak Raj Kukreja ""Bharatdeep""
Gwalior, madhyapradesh
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर
poet, Editor and writer-Deepak  'Bharatdeep',Gwalior
http://deepkraj.blogspot.com
-------------------------
यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘शब्दलेख सारथी’ पर लिखा गया है। अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द लेख पत्रिका
2.दीपक भारतदीप की अंतर्जाल पत्रिका
3.दीपक भारतदीप का चिंतन
४.शब्दयोग सारथी पत्रिका 

५.हिन्दी एक्सप्रेस पत्रिका

Tuesday, September 17, 2013

हादसे होते रहेंगे-हिन्दी व्यंग्य कविता



देश में तरक्की बहुत हो गयी है
यह सभी कहेंगे,
मगर सड़कें संकरी है
कारें बहुत हैं
इसलिये हादसे होते रहेंगे,
रुपया बहुत फैला है बाज़ार में
मगर दौलत वाले कम हैं,
इसलिये लूटने वाले भी
उनका बोझ हल्का कर
स्वयं ढोते रहेंगे।
कहें दीपक बापू
टूटता नहीं तिलस्म कभी माया का,
पत्थर पर पांव रखकर
उस सोने का पीछा करते हैं लोग
जो न कभी दिल भरता
न काम करता कोई काया का,
फरिश्ते पी गये सारा अमृत
इंसानों ने शराब को संस्कार  बना लिया,
अपनी जिदगी से बेजार हो गये लोगों ने
मनोरंजन के लिये
सर्वशक्तिमान की आराधना को
खाली समय
पढ़ने का किस्सा बना लिया,
बदहवास और मदहोश लोग
आकाश में उड़ने की चाहत लिये
जमीन पर यूं ही गिरते रहेंगे।
----------------

लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poem-Deepak Raj Kukreja ""Bharatdeep""
Gwalior, madhyapradesh
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर
poet, Editor and writer-Deepak  'Bharatdeep',Gwalior
http://deepkraj.blogspot.com
-------------------------
यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘शब्दलेख सारथी’ पर लिखा गया है। अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द लेख पत्रिका
2.दीपक भारतदीप की अंतर्जाल पत्रिका
3.दीपक भारतदीप का चिंतन
४.शब्दयोग सारथी पत्रिका 

५.हिन्दी एक्सप्रेस पत्रिका

Monday, September 9, 2013

हिन्दी दिवस पर व्यंग्य कविता-एक दिन की रौशनी (hindi diwas par vyangya kavita-ek din ki roshni



14 सितंबर हिन्दी दिवस के बहाने,
राष्ट्रभाषा का महत्व मंचों पर चढ़कर
बयान करेंगे
अंग्रेजी के सयानो।
कहें दीपक बापू
अंग्रेजी में रंगी जिनकी जबान,
अंग्रेजियत की बनाई जिन्होंने पहचान,
हर बार की तरह
साल में एक बार
हिन्दी का नाम जपते नज़र आयेंगे।
लिखें और बोलें जो लोग हिन्दी में
श्रोताओं और दर्शकों की भीड़ में
भेड़ों की तरह खड़े नज़र आयेंगे,
विद्वता का खिताब होने के लिये
अंग्रेजी का ज्ञान जरूरी है
वरना सभी गंवार समझे जायेंगे,
गुलामी का खून जिनकी रगों में दौड़ रहा है
वही आजादी की मशाल जलाते हैं
वही लोग हमेशा की तरह हिन्दी भाषा के  महत्व पर
एक दिन रौशनी डालने आयेंगे।

लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poem-Deepak Raj Kukreja ""Bharatdeep""
Gwalior, madhyapradesh
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर
poet, Editor and writer-Deepak  'Bharatdeep',Gwalior
http://deepkraj.blogspot.com
-------------------------
यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘शब्दलेख सारथी’ पर लिखा गया है। अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द लेख पत्रिका
2.दीपक भारतदीप की अंतर्जाल पत्रिका
3.दीपक भारतदीप का चिंतन
४.शब्दयोग सारथी पत्रिका 

५.हिन्दी एक्सप्रेस पत्रिका

Wednesday, August 28, 2013

श्रीकृष्ण जन्माष्टमी-श्रीमद्भागवत गीता के जनक को कोटि कोटि नमन(shri krishna janamashtami-shrimadbhawat geeta ke janak ko koti koti naman



                        आज श्रीकृष्ण जन्माष्टमी है।  भारत में धर्मभीरु लोगों के लिये यह उल्लास का दिन है।  इसमें कोई संशय नहीं है कि मनुष्य में मर्यादा का सर्वोत्तम स्तर का मानक जहां भगवान श्रीराम ने स्थापित किया वहीं भगवान श्रीकृष्ण ने अध्यात्मिक ज्ञान के उस स्वर्णिम रूप से परिचय कराया जो वास्तविक रूप से मनुष्यता की पहचान है। भोजन और भोग का भाव सभी जीवो में समान होता है पर बुद्धि की अधिकता के कारण मनुष्य तमाम तरह के नये प्रयोग करने में ंसक्षम है बशर्ते वह उसके उपयोग करने का तरीका जानता हो।  भगवान श्रीकृष्ण ने श्रीमद्भागवत गीता में मनुष्य को बुद्धि पर नियंत्रण करने की कला बताई है। आखिर उन्होंने इसकी आवश्यकता क्यों अनुभव की होगी? इसका उत्तर यह है कि मनुष्य का मन उसकी बुद्धि से अधिक तीक्ष्ण है।  बुद्धि की अपेक्षा  से कहीं उसकी गति तीव्र है।  सबसे बड़ी बात मनुष्य पर उसके मन का  ही नियंत्रण है।  ज्ञान के अभाव में मनुष्य अपनी बुद्धि का उपयोग मन के अनुसार करता है पर जिसने श्रीगीता का अध्ययन कर लिया वह बुद्धि से ही मन पर नियंत्रण कर सफलतापूर्वक जीवन व्यतीत करता है। वही ब्रह्मज्ञानी है।
                        चंचल मन मनुष्य को इधर से उधर भगाता है। बेकाबू मन के दबाव में मनुष्य अपनी बुद्धि का उपयोग केवल उसी के अनुसार करता है। बुद्धि की चेतना उस समय तक सुप्तावस्था में रहती है जब तक मन उस पर अधिकार जमाये रहता है।  ऐसे में जो मनुष्य सांसरिक विषयों में सिद्धहस्त हैं वह सामान्य मनुष्य को भेड़ की तरह भीड़ बनाकर हांकते हुए चले जाते हैं।  सामान्य मनुष्य समाज की सोच का स्तर इसी कारण इतना नीचा रहता है कि वह अधिक भीड़ एकत्रित करने वाले सांसरिक विषयों में  प्रवीण लोगों को ही सिद्ध मानने लगता है।
                        इस देश में अध्यात्मिक ज्ञान और धार्मिक कर्मकांडों का अंतर नहीं किया गया।  जिस हिन्दू धर्म की हम बात करते हैं उसके सभी प्रमाणिक ग्रंथों में  कहीं भी इस नाम से नहीं पुकारा गया। कहा जाता है कि प्राचीन धर्म सनातन नाम से जाना जाता था पर इसका उल्लेख भी प्रसिद्ध ग्रंथों में नहंी मिलता। दरअसल इन ग्रंथों में आचरण को ही धर्म का प्रमाण माना गया हैं।  इस आचरण के सिद्धांतों को धारण करना ही अध्यात्मिक ज्ञान कहा जाता है।  हमारी देह पंच तत्वों से बनी है जिसमें मन, बुद्धि तथा अहंकार तीन प्रवृत्तियां स्वाभाविक रूप से आती हैं। हम अपने ही मन, बुद्धि तथा अहंकार के चक्रव्यूह में फंसी देह को धारण करने वाले अध्यात्म को नहीं पहचानते। अपनी ही पहचान को तरसता अध्यात्म यानि आत्मा जब त्रस्त हो उठता है और पूरी देह कांपने लगती है पर ज्ञान के अभाव में यह समझना कठिन है-यदि ज्ञान हो तो फिर ऐसी स्थिति आती भी नहीं।  यह ज्ञान कोई गुरु ही दे सकता है यही कारण है कि गुरु सेवा को श्रीगीता में बखान किया है।  समस्या यह है कि अध्यात्मिक गुरु किसी धर्म के बाज़ार में अपना ज्ञान बेचते हुए नहीं मिलते। जिन लोगों ने धर्म के नाम पर बाज़ार सजा रखा है उनके पास ज्ञान के नारे तो हैं पर उसका सही अर्थ से वह स्वयं अवगत नहीं है। 
                        हमारे देश में धार्मिक गुरुओं की भरमार है। अधिकतर गुरु आश्रमों के नाम पर संपत्ति तथा गुरुपद प्रतिष्ठित होने के लिये शिष्यों का संचय करते हैं।  गुरु सेवा का अर्थ वह इतना ही मानते हैं कि शिष्य उनके आश्रमों की परिक्रमा करते रहें।  श्रीकृष्ण जी ने गुरुसेवा की जो बात की है वह केवल ज्ञानार्जन तक के लिये ही कही है। शास्त्र मानते हैं कि ज्ञानार्जन के दौरान गुरु की सेवा करने से न केवल धर्म निर्वाह होता है वरन् उनकी शिक्षा से सिद्धि भी मिलती है।  यह ज्ञान भी शैक्षणिक काल में ही दिया जाना चाहिये।  जबकि हमारे वर्तमान गुरु अपने साथ शिष्यों को बुढ़ापे तक चिपकाये रहते हैं।  हर वर्ष गुरु पूर्णिमा के दिन यह गुरु अपने आश्रम दुकान की तरह सजाते हैं।  उस समय धर्म कितना निभाया जाता है पर इतना तय है कि अध्यात्म ज्ञान का विषय उनके कार्यक्रमों से असंबद्ध लगता है।  शुद्ध रूप से बाज़ार के सिद्धांतों पर आधारित ऐसे धार्मिक कार्यक्रम केवल सांसरिक विषयों से संबद्ध होते हैं। नृत्य संगीत तथा कथाओं में सांसरिक मनोरंजन तो होता है  पर अध्यात्म की शांति नहीं मिल सकती।  सीधी बात कहें तो ऐसे गुरु सांसरिक विषयों के महारथी हैं।  यह अलग बात है कि उनके शिष्य इसी से ही प्रसन्न रहते हैं कि उनका कोई गुरु है।
                        हमारे देश में श्रीकृष्ण के बालस्वरूप का प्रचार ऐसे पेशेवर गुरु अवश्य करते हैं। अनेक गुरु तो ऐसे भी हैं जो राधा का स्वांग कर श्रीकृष्ण की आराधना करते हैं।  कुछ गुरु तो राधा के साथ श्याम के नाम का गान करते हैं।  वृंदावन की गलियों का स्मरण करते हैं। महाभारत युद्ध में श्रीमद्भावगत गीता की स्थापना करने वाले उन भगवान श्रीकृष्ण को कौन याद करता है? वही अध्यात्मिक ज्ञानी तथा साधक जिन्होंने गुरु न मिलने पर भगवान श्रीकृष्ण को ही गुरु मानकर श्रीमद्भागवत के अमृत वचनों का रस लिया है, उनका स्मरण मन ही मन करते हैं। उन्होंनें महाभारत युद्ध में हथियार न उठाने का संकल्प लिया पर जब अर्जुन संकट में थे तो चक्र लेकर भीष्म पितामह को मारने दौड़े।  उस घटना को छोड़कर वह पूरा समय रक्तरंजित हो रहे कुरुक्षेत्र के मैदान में कष्ट झेलते रहे। एक अध्यात्मिक ज्ञानी के लिये ऐसी स्थिति में खड़े रहने की सोचना भी कठिन है पर भगवान श्रीकृष्ण ने उस कष्ट को उठाया।  उनका एक ही लक्ष्य था अध्यात्मिक ज्ञान की प्रक्रिया से धर्म की स्थापना करना। यह अलग बात है कि श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर गीता की चर्चा करने की बजाय  उनके बालस्वरूप और लीलाओं पर ध्यान देकर भक्तों की भीड़ एकत्रित करना पेशेवर धार्मिक व्यक्तित्व के स्वामी भीड़ को एकत्रित करना सुविधाजनक मानते हैं।
                        जैसे जैसे आदमी श्रीगीता की साधना की तरफ बढ़ता है वह आत्मप्रचार की भूख से परे होता जाता है। वह अपना ज्ञान बघारने की बजाय उसके साथ जीना चाहता है। न पूछा जाये तो वह उसका ज्ञान भी नहीं देगा। सम्मान की चाहत न होने के कारण वह स्वयं को ज्ञानी भी नहीं कहलाना चाहता। सबसे बड़ी बात वह भीड़ एकत्रित नहीं करेगा क्योंकि जानता है कि इस संसार में सभी का ज्ञानी होना कठिन है।  भीड़ पैसे के साथ प्रसिद्धि दिला सकती है मगर वह  सिद्धि जो उद्धार करती है वह एकांत में ही मिलना संभव है।  गुरु न मिले तो ज्ञान चर्चा से भी अध्यात्म का विकास होता है। श्रीमद्भागवत गीता के संदेश तथा भगवान श्रीकृष्ण का चरित्र भारतीय धरती की अनमोल धरोहर है।  भारतीय धरा को ऐसी महान विरासत देने वाले श्रीकृष्ण के बारे में लिखते या बोलते  हुए अगर होठों पर मुस्कराहट की अनुभूति हो रही हो तो यह मानना चाहिये कि यह उनके रूप स्मरण का लाभ मिलना प्रारंभ हो गया है। ऐसे परमात्मा स्वरूप भगवान श्रीकृष्ण को कोटि कोटि नमन!

लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poem-Deepak Raj Kukreja ""Bharatdeep""
Gwalior, madhyapradesh
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर
poet, Editor and writer-Deepak  'Bharatdeep',Gwalior
http://deepkraj.blogspot.com
-------------------------
यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘शब्दलेख सारथी’ पर लिखा गया है। अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द लेख पत्रिका
2.दीपक भारतदीप की अंतर्जाल पत्रिका
3.दीपक भारतदीप का चिंतन
४.शब्दयोग सारथी पत्रिका 

५.हिन्दी एक्सप्रेस पत्रिका
६.अमृत सन्देश पत्रिका

Wednesday, August 7, 2013

यह बस्ती-हिन्दी कविता




जरूरत का सामान महंगा है
गैर जरूरी है
इसलिये जिंदगी सस्ती है।
देश  हो या देवता की
सच्ची भक्ति करने वालों को पूछता कौन है
जिनके काले चेहरे पर लगी सफेद क्रीम
चाल जिनकी आवारा है
चरित्र पर लगे हैं दाग
उनकी रही हमेशा मस्ती है।
कहें दीपक बापू
दर्द नहीं सीने में जिनके
प्याज से आंखों में आंसू वही लाते हैं,
मर गया है जमीर जिनका
आकाओं के लिये फरिश्तों की तरह
गीत वही गाते है
कदम नहीं पड़ते कभी जमीन पर
जमाने के साथ चलने का दावा करने वालों से
भरी यह बस्ती है।
 
लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poem-Deepak Raj Kukreja ""Bharatdeep""
Gwalior, madhyapradesh
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर
poet, Editor and writer-Deepak  'Bharatdeep',Gwalior
http://deepkraj.blogspot.com
-------------------------
यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘शब्दलेख सारथी’ पर लिखा गया है। अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द लेख पत्रिका
2.दीपक भारतदीप की अंतर्जाल पत्रिका
3.दीपक भारतदीप का चिंतन
४.शब्दयोग सारथी पत्रिका 

५.हिन्दी एक्सप्रेस पत्रिका
६.अमृत सन्देश पत्रिका

यह रचनाएँ जरूर पढ़ें

Related Posts with Thumbnails

हिंदी मित्र पत्रिका

यह ब्लाग/पत्रिका हिंदी मित्र पत्रिका अनेक ब्लाग का संकलक/संग्रहक है। जिन पाठकों को एक साथ अनेक विषयों पर पढ़ने की इच्छा है, वह यहां क्लिक करें। इसके अलावा जिन मित्रों को अपने ब्लाग यहां दिखाने हैं वह अपने ब्लाग यहां जोड़ सकते हैं। लेखक संपादक दीपक भारतदीप, ग्वालियर

यह रचनाएँ जरूर पढ़ें

Related Posts with Thumbnails

विशिष्ट पत्रिकाएँ