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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

Tuesday, February 26, 2013

मन का गुलशन-हिन्दी शायरी (man ka gulshan-hindi shayari)

बालपन की कच्ची माटी में
खिला था गुलशन
उम्र के दौर के साथ मुरझा गया
ख्वाहिशों ने बढ़ाये कदम दिल में
पत्थरों के शहर में सपना सजा नया,
कहें दीपक बापु
उस्ताद के ओहदे पर बैठे लोगों ने
सिखाई केवल मतलबपरस्ती,
दिखाई दौलत के दरिया में मस्ती,
अपनी उम्र से अब वह टूटेबालपन की कच्ची माटी में
खिला था गुलशन
उम्र के दौर के साथ मुरझा गया
ख्वाहिशों ने बढ़ाये कदम दिल में
पत्थरों के शहर में सपना सजा नया,
कहें दीपक बापु
उस्ताद के ओहदे पर बैठे लोगों ने
सिखाई केवल मतलबपरस्ती,
दिखाई दौलत के दरिया में मस्ती,
अपनी उम्र से अब वह टूटे बालपन की कच्ची माटी में
खिला था गुलशन
उम्र के दौर के साथ मुरझा गया
ख्वाहिशों ने बढ़ाये कदम दिल में
पत्थरों के शहर में सपना सजा नया,
कहें दीपक बापु
उस्ताद के ओहदे पर बैठे लोगों ने
सिखाई केवल मतलबपरस्ती,
दिखाई दौलत के दरिया में मस्ती,
अपनी उम्र से अब वह टूटे
हैं उनके ख्वाब आंखों से रूठे हैं,
अब ताक रहे हैं
जवां शार्गिदों के माटी से बने पत्थर दिल में
कब बहेगी नदी बनकर दया।
लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poem-Deepak Raj Kukreja ""Bharatdeep""
Gwalior, madhyapradesh
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर
poet, Editor and writer-Deepak  'Bharatdeep',Gwalior
http://deepkraj.blogspot.com
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Friday, February 1, 2013

दर्द का समंदर सूख गया है-हिन्दी शायरी (dard ka samandar sookh gaya hai-hindi shayri or poem

दर्द का समंदर सूख गया है
आंसुओं की कोई नदी
अब बहकर वहां नहीं आती,
कितना भी दर्दनाक मंजर हो
होठों पर कड़वी
बस यूं ही चली आती।
कहें दीपक बापू
कब तक रोते ज़माने के हाल पर
सभी ने बोये हैं बबूल
आम के लिये मुंह खोले बैठे हैं
स्वाद के लिये ललचाये लोग
चल पड़ते हैं अंधेरी राहों पर
अपनी ही मंजिल की तस्वीर
कभी उनकी आंखों में नहीं आती,
मर गये जज़्बात
सांस भले चलती रहे
पर खुशबू और बदबू  पहचान नहीं पाती।

लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poem-Deepak Raj Kukreja ""Bharatdeep""
Gwalior, madhyapradesh
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर
poet, Editor and writer-Deepak  'Bharatdeep',Gwalior
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