दिवाली का पर्व अनेंक लोगों के लिये मिष्ठान उदरस्थ करने से अधिक कुछ नहीं
है। जब तक देश में असली दूध की नदियां बहतीं थीं तब तक तो ठीक था पर समाचार पत्र
और टीवी चैनलों ने जब से दूध के गंदे नाले बहने की चर्चा शुरु की है मिष्ठान
प्रेमियों का मुंह सूखा सूखा रहता है। इन
समाचारों को पढ़ें या सुने तो लगता है कि शायद ही कोई मिष्ठान पदार्थ शुद्ध हो।
टीवी पर चिकित्सक, खाद्य विशेषज्ञ तथा उद्घोषक मिलकर जिस तरह के
कार्यक्रम प्रस्तुत करते हैं वह दीपावली पर मिठाई के प्रति भारी वीभत्स भाव पैदा
करने वाले हैं। अब तो कहीं मिठाई देखकर ऐसा लगता है जैसे कि उसे उदरस्थ करना विष
का उपभोग करने के समान है।
इन टीवी चैनलों पर खाद्य विशेषज्ञ प्रतिष्ठत मिष्ठान भंडारों के पदार्थ
मिलावटी था अस्वाथ्यकर प्रमाणित कर देते हैं। इधर समाचार पत्र भी मिलावट के संबंध
में इतने समाचार देते हैं कि लगता है कि दीपावली के समय बीत जाने के बाद ही मिठाई खाकर ही जीभ के स्वाद की आकांक्षा पूर्ति
करना श्रेयस्कर है बनिस्पत इस पर्व पर चिंताओं के साथ पर खाकर पेट खराब किया जाये।
मिठाई शुद्ध भी हो तो चिंता तो मन में रहती ही है कि कहीं गड़बड़ न हो-ऐसे में वह
पचेगी भी नहीं क्योंकि चिंता वैसे भी अपच कर ही देती है। कहा भी गया है कि चिंता
सम नास्ति शरीर शोषणम्।
चिकित्सकों ने मिठाई खाने पर किडनी और लीवर खराब होने की चेतावनी दे रहे
हैं। हमें याद आया कि पिछले वर्ष हमने
धनतेरस पर एक ऐसे दुकानदार से मिल्क केक खरीदा था जिसकी प्रतिष्ठित छवि थी। घर आकर हमने उसे खाया और फिर बाज़ार निकल
गये। रात को लौटते समय बुखार का अनुभव
हुआ। सर्दी और जुकाम ने घेर लिया। उस समय हमें लगा कि शायद बदलते मौसम का
दुष्प्रभाव होगा। अगले दिन सुबह तक कुछ
तबियत ठीक लगी फिर वही मिल्क केक खाया तो स्थिति बिगड़ गयी। तब भी इस तरफ ध्यान नहीं गया। अगले दो दिन तक हमने उसका उपयोग किया बावजूद
इसके कि हमारी तबियत ठीक नही चल रहीं थी।
योग साधना के समय प्राणायाम के समय हमारी नाक से जुकाम की नदी बहती रही थी।
अततः सोचा कि इसका सेवन न कर शोध करते हैं।
दिवाली के दिन हमने अपने खराब स्वास्थ्यय के विरुद्ध संघर्ष करते बिताया था। एक तरह से आनंद का समय संकटकारी बन गया
था। मिल्क केक का सेवन बंद किया तो
स्वास्थ्य स्थिर हो गया। दीपावली के दो
दिन बाद जब जुकाम कम हुआ तो एक कान बंद हो
गया। यह कान कम से कम एक महीना बंद रहा। योग साधना के समय जरूर कान खुल जाता फिर वहीं
सांय सांय की आवाज आती थी। चिकित्सक के
पास नहीं जाते थे क्योंकि हमें पता था कि योग साधना के अभ्यास से इस पर निंयत्रण
पा लेंगे। अंततः कान खुल गया।
उस दिन जब एक चिकित्सक ने अशुद्ध तथा मिलावटी मिष्ठान पदार्थ से लीवर तथा
किडनी तक खराब होने की बात कहीं तो हमने पिछले तीन वर्षों के अपने दैहिक इतिहास का
स्मरण किया। दीपावली के बाद हमें अपने अपना एक कान बंद होने या जुकान होने की
शिकायत रही है। चिकित्सकों के अनुसार इसका
एक कारण फेफड़ों का संक्रमित होना है। यह
संभावना हमारे साथ भी है पर इस पर हम योग साधना से नियंत्रित कर सकते हैं पर मिठाई
से किडनी और लीवर पर दुष्प्रभाव होने की चर्चा ने हमारा ध्यान इस तरफ खींचा
है। इस बार दीपावली पर हम मिष्ठान से
विरक्त रहेंगे। दीपावली के बाद भी कम से
कम पंद्रह दिन तक बाज़ार की कोई चीज नहीं खायेंगे।
अगर कान बंद नहीं हुआ तो इसका मतलब यह कि हम अभी तक खराब मिष्ठान का शिकार
होते रहे थे।
इधर अनेक जगह पटाखों की दुकानों में आग लगने की घटनाओं के समाचार भी आ रहे
हैं। जो लोग टीवी चैनलों के समाचार देखने के शौक का शिकार
हैं वह तो तमाम तरह की चिंतायें पालते हैं पर जिन लोगों को बाह्य आनंद की खोज है
वह इसकी परवाह नहीं करते। लोग मिठाई जमकर
खरीद रहे हैं। प्रतिष्ठत मिष्ठान भंडारों
पर शुद्ध दुग्ध निर्मित पदार्थों की आकांक्षा में लोग जा रहे हैं। पटाखे भी लगातर बज रहे हैं। योग तथा श्रीगीता के निंरतर अभ्यास ने हमें
आंतरिक आनंद प्राप्त करने की कला सिखा दी है।
इस पर यह अंतर्जाल हमारा ऐसा साथी बन गया है जो बालपन से लगे अभिव्यक्ति के
हमारे शौक को जीवंत बनाये रखने में सहायक होता है। पाठक सोचते हैं कि यह फोकट में क्यों श्रम कर
रहा है पर हमारा हम इसके विपरीत यह राय रखते हैं कि वह व्यर्थ ही पढ़ने में श्रम
बर्बाद कर रहे हैं। हम तो स्वांत सुखाय
लिखते हैं और कोई पाठ लिखने के बाद कंप्यूटर से ऐसे उठते हैं जैसे कि फिल्म देखकर
सिनेमाहाल से निकलते हैं। जिंदगी जीने का सभी का तरीका अपना है।
इस दीपावली के पावन पर्व पर मित्र ब्लॉग लेखकों तथा पाठकों को ढेर सारी बधाई। मित्र हमने लिख ही दिया क्योंकि पता नहीं इस
आभासी विश्व में कोई है भी कि नहीं। हां, फेसबुक आने से पहले तक
ढेर सारे थे जिनका अब पता नहीं है।
लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poem-Deepak Raj Kukreja ""Bharatdeep""
Gwalior, madhyapradesh
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर
poet, Editor and writer-Deepak 'Bharatdeep',Gwalior
http://deepkraj.blogspot.com
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यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘शब्दलेख सारथी’ पर लिखा गया है। अन्य ब्लाग
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