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Tuesday, November 4, 2014

धवल छवि के लिये परनिंदा-हिन्दी कविता(dhawal chhavi ke liye parninda-hindi poem)



स्वयं के बुरे रहस्य
छिपाने के लिये
दूसरे के दोषों पर
अपने शब्द रचकर
बाज़ार में सुनाने ही होते हैं।

संसार में अपनी धवल छवि
बनाने के लिये
परनिंदा के गीत
भीड़ में गुनगुनाने ही होते हैं।

माया काली हो गया गोरी
जिसके घर आ आये
उसका चमका देती चेहरा,
डराती बहुत
बैठा देती बाहर पहरा,
कांपते हुए गुजारते लोग
आपस में रहते हुए
अलग होते ही
पुराने रिश्ते भी
सनसनी बनाकर  नकद में
उनको भुनाने ही होते हैं।
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लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poem-Deepak Raj Kukreja ""Bharatdeep""
Gwalior, madhyapradesh
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर
poet, Editor and writer-Deepak  'Bharatdeep',Gwalior
http://deepkraj.blogspot.com
-------------------------
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