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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

Monday, July 28, 2014

भागती भीड़-हिन्दी कविता(bhagtee bheed-hindi poem)



ऊंचाई पर पहुंच गये लो
चढ़ने के लिये उठाये कदमों का
उनसे हिसाब कौन पूछता है।

चमकाते रहे अपनी छवि
दूसरों के घर से रंग चुराकर
बेशरमी का हिसाब कौन पूछता है।

अपने से कमजोर पर आजमाते ताकत
सुर्खियों पर करता समाज चर्चा
तोड़े गये दिलों का हिसाब कौन पूछता है।

कहें दीपक बापू सरदार बनने के लिये
काने ढूंढ लेते हैं अंधों की फौज,
सच छिपा करते हैं मौज,
अक्लमंद रहते हैं मौन
भागती भीड़ में गिरे लोगों का
हिसाब कौन पूछता है।
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लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poem-Deepak Raj Kukreja ""Bharatdeep""
Gwalior, madhyapradesh
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर
poet, Editor and writer-Deepak  'Bharatdeep',Gwalior
http://deepkraj.blogspot.com
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Saturday, July 19, 2014

जिंदगी जीने की तमीज-हिन्दी व्यंग्य कविता(zindagi jene ki tamiz-hindi satire poem)



ज़माने में चमकने के लिये
चरित्र ऊंचा हो या नहीं
मगर दिखना जरूरी हैं।

सम्मान पाने के लिये
योग्यता संग्रहण कर सकें या नहीं
चतुराई दिखाना जरूरी है।

स्चच्छ छवि हो तो
कितने भी दाग लगे हों चालचलन पर
छिपाये रखने के लिये
आगे धवल पर्दा दिखाना जरूरी है।

कहें दीपक बापू जिंदगी जीने की तमीज
हमें जिन उस्तादों ने सिखाई
सच की राह हमेशा दिखाई
मगर कभी यह नहीं बताया
भीड़ से अलग हटकर चलने पर
अकेले में तन्हाई झेलने की
अपने दिल में ताकत होना जरूरी है।
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लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poem-Deepak Raj Kukreja ""Bharatdeep""
Gwalior, madhyapradesh
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Wednesday, July 9, 2014

अपना और पराया मसला-हिन्दी व्यंग्य कवितायें(apna aur paraya masla-hinsi satire poem)



पराये मसले पर लोग जमकर बोलते हैं,
अपना राज खुल जाये तो मुंह नहीं खोलते हैं।
कहें दीपक बापू अपनी छवि बनाने के लिये
दूसरों पर  कीचड़ उछालना गुणहीन लोगोें की मजबूरी हैं,
अपनी पर लगे दाग छिपाने के लिये वह यूं ही डोलते हैं।
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गैरों के दर्द पर जो लोग हंसते हैं,
खून के आंसु रोते जब जाल में खुद फंसते हैं।
कहें दीपक बापू कमजोर का जो उड़ाते मजाक
ताकतवर इंसान की बेशरम अदाओं  पर भी
अपनी आंखें नीचे कर जमीन में धंसते हैं।
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किसी के दर्द भी हंसकर लोग दिल बहलाते हैं,
कसते हैं फब्तियां बुद्धिमान स्वयं को कहलाते हैं,
कहें दीपक बापू कामयाबी हज़म करना भी सरल नहीं
चढ़ जाता जिस पर दौलत और शौहरत का नशा
 बदजुबानी से ज़माने का दिल बहलाते हैं
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लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
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Tuesday, July 1, 2014

रौशनी में अंधे अल्फ़ाज-हिन्दी कविता(roshni mein andhe alfaz-hindi poem or kavita)



हर इंसान की जुबान फिसल जाती है चलते चलते,
कामयाबी का नशा सिर चढ़कर जब बोलता है,
अंधे अल्फ़ाज निकलते हैं रौशनी के जलते जलते।
फर्क इतना है ऊंचाई पर आवाज बुलंद हो जाती है,
नीचे बोलने पर नक्कारखाने में तूती की तरह खो जाती है,
मुश्किल यह है कि शिखर पर पहुंचे हैं बौने चरित्र के लोग,
पीछा करते हुए साथ जाते हैं उनकी छोटी औकात के रोग,
कहें दीपक बापू ओहदा दौलत और शौहरत
हर इंसान को यूं ही हजम नहीं होती,
विरले ही है जिनका काबू होता अपने पर
जिनकी नज़र में उगते सूरज के लिये इज्जत है
यह जानकर भी कि खो जायेगा वह शाम ढलते ढलते।
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लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
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