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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

Tuesday, October 28, 2014

मुफ्त की राय और तर्क-हिन्दी कविता(mufta ki ray aur tark-hindi poem)




मस्तिष्क में चलते हमेशा
अंतर्द्वंद का अनवरत दौर
कभी खत्म नहीं होता।

चर्चा करो ज़माने से
छिड़ जाती जोरदार बहस
मचता है शोर
मुफ्त की राय के प्रदर्शन में
तर्क कभी भारी नहीं होता।

कहें दीपक बापू ज्ञानी होने का
भ्रम पाले जी रहे हैं,
आनंद का मार्ग है लापता
निराशा का दर्द सभी पी रहे हैं।
शक्तिशाली आदमी वही कहलाता
अपनी नीयत में हमेशा
जो सच के बीज बोता।
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लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poem-Deepak Raj Kukreja ""Bharatdeep""
Gwalior, madhyapradesh
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर
poet, Editor and writer-Deepak  'Bharatdeep',Gwalior
http://deepkraj.blogspot.com
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Thursday, October 23, 2014

इस दीपावली पर मिष्ठान पदार्थ से विरक्त रहेंगे-हिन्दी व्यंग्य चिंत्तन लेख(is deepawali or diwali par mishthan pardarth se virakt rahenge-hindi satire thoughta article, no sweet use in this divali fesetival)



            दिवाली का पर्व अनेंक लोगों के लिये मिष्ठान उदरस्थ करने से अधिक कुछ नहीं है। जब तक देश में असली दूध की नदियां बहतीं थीं तब तक तो ठीक था पर समाचार पत्र और टीवी चैनलों ने जब से दूध के गंदे नाले बहने की चर्चा शुरु की है मिष्ठान प्रेमियों का मुंह सूखा सूखा रहता है।  इन समाचारों को पढ़ें या सुने तो लगता है कि शायद ही कोई मिष्ठान पदार्थ शुद्ध हो। टीवी पर चिकित्सक, खाद्य विशेषज्ञ तथा उद्घोषक मिलकर जिस तरह के कार्यक्रम प्रस्तुत करते हैं वह दीपावली पर मिठाई के प्रति भारी वीभत्स भाव पैदा करने वाले हैं। अब तो कहीं मिठाई देखकर ऐसा लगता है जैसे कि उसे उदरस्थ करना विष का उपभोग करने के समान है।
            इन टीवी चैनलों पर खाद्य विशेषज्ञ प्रतिष्ठत मिष्ठान भंडारों के पदार्थ मिलावटी था अस्वाथ्यकर प्रमाणित कर देते हैं। इधर समाचार पत्र भी मिलावट के संबंध में इतने समाचार देते हैं कि लगता है कि दीपावली के समय बीत जाने के बाद ही  मिठाई खाकर ही जीभ के स्वाद की आकांक्षा पूर्ति करना श्रेयस्कर है बनिस्पत इस पर्व पर चिंताओं के साथ पर खाकर पेट खराब किया जाये। मिठाई शुद्ध भी हो तो चिंता तो मन में रहती ही है कि कहीं गड़बड़ न हो-ऐसे में वह पचेगी भी नहीं क्योंकि चिंता वैसे भी अपच कर ही देती है। कहा भी गया है कि चिंता सम नास्ति शरीर शोषणम्।
            चिकित्सकों ने मिठाई खाने पर किडनी और लीवर खराब होने की चेतावनी दे रहे हैं।  हमें याद आया कि पिछले वर्ष हमने धनतेरस पर एक ऐसे दुकानदार से मिल्क केक खरीदा था जिसकी प्रतिष्ठित छवि थी।  घर आकर हमने उसे खाया और फिर बाज़ार निकल गये।  रात को लौटते समय बुखार का अनुभव हुआ। सर्दी और जुकाम ने घेर लिया। उस समय हमें लगा कि शायद बदलते मौसम का दुष्प्रभाव होगा।  अगले दिन सुबह तक कुछ तबियत ठीक लगी फिर वही मिल्क केक खाया तो स्थिति बिगड़ गयी।  तब भी इस तरफ ध्यान नहीं गया।  अगले दो दिन तक हमने उसका उपयोग किया बावजूद इसके कि हमारी तबियत ठीक नही चल रहीं थी।   योग साधना के समय प्राणायाम के समय हमारी नाक से जुकाम की नदी बहती रही थी। अततः सोचा कि इसका सेवन न कर शोध करते हैं।  दिवाली के दिन हमने अपने खराब स्वास्थ्यय के  विरुद्ध संघर्ष करते बिताया था।  एक तरह से आनंद का समय संकटकारी बन गया था।  मिल्क केक का सेवन बंद किया तो स्वास्थ्य स्थिर हो गया। दीपावली के  दो दिन बाद जब  जुकाम कम हुआ तो एक कान बंद हो गया।  यह कान कम से कम एक महीना बंद रहा।  योग साधना के समय जरूर कान खुल जाता फिर वहीं सांय सांय की आवाज आती थी।  चिकित्सक के पास नहीं जाते थे क्योंकि हमें पता था कि योग साधना के अभ्यास से इस पर निंयत्रण पा लेंगे।  अंततः कान खुल गया।
            उस दिन जब एक चिकित्सक ने अशुद्ध तथा मिलावटी मिष्ठान पदार्थ से लीवर तथा किडनी तक खराब होने की बात कहीं तो हमने पिछले तीन वर्षों के अपने दैहिक इतिहास का स्मरण किया। दीपावली के बाद हमें अपने अपना एक कान बंद होने या जुकान होने की शिकायत रही है।  चिकित्सकों के अनुसार इसका एक कारण फेफड़ों का संक्रमित होना है।  यह संभावना हमारे साथ भी है पर इस पर हम योग साधना से नियंत्रित कर सकते हैं पर मिठाई से किडनी और लीवर पर दुष्प्रभाव होने की चर्चा ने हमारा ध्यान इस तरफ खींचा है।  इस बार दीपावली पर हम मिष्ठान से विरक्त रहेंगे।  दीपावली के बाद भी कम से कम पंद्रह दिन तक बाज़ार की कोई चीज नहीं खायेंगे।  अगर कान बंद नहीं हुआ तो इसका मतलब यह कि हम अभी तक खराब मिष्ठान का शिकार होते रहे थे।
            इधर अनेक जगह पटाखों की दुकानों में आग लगने की घटनाओं के समाचार भी आ रहे हैं।  जो लोग  टीवी चैनलों के समाचार देखने के शौक का शिकार हैं वह तो तमाम तरह की चिंतायें पालते हैं पर जिन लोगों को बाह्य आनंद की खोज है वह इसकी परवाह नहीं करते।  लोग मिठाई जमकर खरीद रहे हैं।  प्रतिष्ठत मिष्ठान भंडारों पर शुद्ध दुग्ध निर्मित पदार्थों की आकांक्षा में लोग जा रहे हैं।  पटाखे भी लगातर बज रहे हैं।  योग तथा श्रीगीता के निंरतर अभ्यास ने हमें आंतरिक आनंद प्राप्त करने की कला सिखा दी है।  इस पर यह अंतर्जाल हमारा ऐसा साथी बन गया है जो बालपन से लगे अभिव्यक्ति के हमारे शौक को जीवंत बनाये रखने में सहायक होता है।  पाठक सोचते हैं कि यह फोकट में क्यों श्रम कर रहा है पर हमारा हम इसके विपरीत यह राय रखते हैं कि वह व्यर्थ ही पढ़ने में श्रम बर्बाद कर रहे हैं।  हम तो स्वांत सुखाय लिखते हैं और कोई पाठ लिखने के बाद कंप्यूटर से ऐसे उठते हैं जैसे कि फिल्म देखकर सिनेमाहाल से निकलते हैं। जिंदगी जीने का सभी का तरीका अपना है।
            इस दीपावली के पावन पर्व पर मित्र ब्लॉग लेखकों तथा पाठकों  को ढेर सारी बधाई।  मित्र हमने लिख ही दिया क्योंकि पता नहीं इस आभासी विश्व में कोई है भी कि नहीं। हां, फेसबुक आने से पहले तक ढेर सारे थे जिनका अब पता नहीं है।

लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poem-Deepak Raj Kukreja ""Bharatdeep""
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Thursday, October 16, 2014

जीवन यात्रा की यादें-हिन्दी कविता(jeevan ki yaden-hindi poem)




जीवन यात्रा के पथ पर
बढ़ते चरण
कुछ सहयात्राी भी
संयोग से मिल जाते हैं।

जिनका लक्ष्य आया
वह साथ छोड़ गये
फिर भी उनकी याद से
हृदय में फूल खिल जाते हैं।

कहें दीपक बापू जीवन में
संबंधों का रहस्य
समझना कठिन है
जिनसे निभाने की उम्मीद थी
वह मुंह फेर कर चल दिये,
दे गये प्रसन्नता
जो मिले कुछ पल के लिये,
जिनसे संपर्क है निरंतर
उन्हें भूलना भी अच्छा लगता है
मगर कुछ कदम साथ चले जो
उनकी याद में
मरे अपने दिल जाते हैं।
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लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
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Saturday, October 4, 2014

गांधी मैदान पर दशहरा पर्व पर हुई घटना मर्म भेद देती है-हिन्दी चिंत्तन लेख(gaandhi maidan par dashahara parva uh huee ghatna marm bhed detee hai-hindi thought article)

    पटना के गांधी मैदान में तीन अक्टूबर को दशहरा पर्व जो दुर्घटना घटी उसमें अनेक मार्मिक दृश्य सामने आये।  एक महिला अपने खोये बच्चों को ढूंढने मैदान में गयी। वह तो नहीं मिले पर उसे एक छह माह की बच्ची बेहोश हालत में मिली।  उसने उसे उठा लिया और पुलिस के साथ अस्पताल इलाज के लिये चल दी।  खबर टीवी पर आयी तो बच्ची के पिता का भी पता लगा।  पिता के अनुसार बच्ची की मां इस हादसे में मर गयी और वह उसी के इलाज के लिये अस्पताल में था।  बच्ची कों ढूंढने का प्रयास भी उसने किया था।
    अपने बच्चों को ढूंढने गयी वह महिला जब उस बच्ची को गोदी में लेकर अस्पताल जा रही थी उसका टीवी पर प्रसारण देखा। बच्ची और महिला दोनों की भाव भंगिमा मर्म विदीर्ण करने वाली थी। एक मां को अपने बच्चे नहीं मिल पाये पर इस बीच भी  एक लावारिस घायल बच्ची के प्रति उसमें अंदर ममता का भाव आया।  उसने बच्ची को अपनी गोद कुछ पल के लिये उधार दे दी।  यही है भारत की पहचान जिसमें मनुष्य ही मनुष्य का दर्द समझता है।  सबसे बड़ी है मां की ममता! यह ममता अपने बच्चे के लिये ही नहीं वरन्  दूसरे के बच्चे के संकट होने से उस पर भी उमड़ आती है।  धन्य है भारत की मातायें!
    भारत में ऐसी अनेक घटनायें होती हैं जो यहां की मानवीय सभ्यता की संवदेनाओं का सकारात्मक पक्ष उजागर करती हैं। जब वह औरत उस बेहोश बच्ची को ले जा रही थी तो ऐसा लग रहा था कि जैसे उसकी मां हो।  गांधी मैदान पर हुए इस हादसे में 21 महिलाओं तथा 10 बच्चों समेत 33 लोग मारे गये हैं। मेलों के अवसर पर ऐसी दुर्घटनाओं में बच्चों और महिलाओं के लिये भागना कठिन हो जाता है-यह देखा गया है। भीड़ भरे कार्यक्रमों भगदड़ मचने पर जिस तरह महिलाओं, बच्चों और वृद्धों की मृतक संख्या देखने को मिलती है उससे तो यह लगता है कि शक्तिशाली पुरुष वर्ग जब अपने ऊपर संकट देखता है तो सबसे ज्यादा डरपोक बना जाता है और जमीन पर गिरी असहाय महिलाओं, बच्चों और वृद्धों के सीने पर भी चढ़ने में हिचक अनुभव नहीं करता जबकि बचाने का सबसे अधिक दायित्व उसी पर ही होता है।  महत्वपूर्ण बात यह कि हाल ही के इतिहास में यह ऐसी दुर्घटना है जिसमें बिजली की तार गिरने की अफवाह से भगदड़ फैली। इससे पूर्व भी झांसी के निकट रतनगढ़ माता के मंदिर के पास पुल टूटने की घटना की अफवाह पर भी भगदड़ फैली थी तब भी हताहतों की संख्या बहुत थी।  भीड़ में इस तरह का बदहवास वातावरण फैलने की घटनाओं से तो यही सीखा जा सकता है कि जहां तक हो सके ऐसी जगहों पर जाने से बचें। जायें तो यह देखें कि पीठ पीछे भागने का मार्ग है कि नहीं।  बहरहाल इस घटना में हताहत लोगों के प्रति हमारी सहानुभूति है।  भगवान उनकी आत्मा को शांति  तथा परिवार जनों को यह दर्द सहने की शक्ति प्रदान करे।

लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
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