पटना के गांधी मैदान में तीन अक्टूबर को दशहरा पर्व जो दुर्घटना घटी उसमें अनेक मार्मिक दृश्य सामने आये। एक महिला अपने खोये बच्चों को ढूंढने मैदान में गयी। वह तो नहीं मिले पर उसे एक छह माह की बच्ची बेहोश हालत में मिली। उसने उसे उठा लिया और पुलिस के साथ अस्पताल इलाज के लिये चल दी। खबर टीवी पर आयी तो बच्ची के पिता का भी पता लगा। पिता के अनुसार बच्ची की मां इस हादसे में मर गयी और वह उसी के इलाज के लिये अस्पताल में था। बच्ची कों ढूंढने का प्रयास भी उसने किया था।
अपने बच्चों को ढूंढने गयी वह महिला जब उस बच्ची को गोदी में लेकर अस्पताल जा रही थी उसका टीवी पर प्रसारण देखा। बच्ची और महिला दोनों की भाव भंगिमा मर्म विदीर्ण करने वाली थी। एक मां को अपने बच्चे नहीं मिल पाये पर इस बीच भी एक लावारिस घायल बच्ची के प्रति उसमें अंदर ममता का भाव आया। उसने बच्ची को अपनी गोद कुछ पल के लिये उधार दे दी। यही है भारत की पहचान जिसमें मनुष्य ही मनुष्य का दर्द समझता है। सबसे बड़ी है मां की ममता! यह ममता अपने बच्चे के लिये ही नहीं वरन् दूसरे के बच्चे के संकट होने से उस पर भी उमड़ आती है। धन्य है भारत की मातायें!
भारत में ऐसी अनेक घटनायें होती हैं जो यहां की मानवीय सभ्यता की संवदेनाओं का सकारात्मक पक्ष उजागर करती हैं। जब वह औरत उस बेहोश बच्ची को ले जा रही थी तो ऐसा लग रहा था कि जैसे उसकी मां हो। गांधी मैदान पर हुए इस हादसे में 21 महिलाओं तथा 10 बच्चों समेत 33 लोग मारे गये हैं। मेलों के अवसर पर ऐसी दुर्घटनाओं में बच्चों और महिलाओं के लिये भागना कठिन हो जाता है-यह देखा गया है। भीड़ भरे कार्यक्रमों भगदड़ मचने पर जिस तरह महिलाओं, बच्चों और वृद्धों की मृतक संख्या देखने को मिलती है उससे तो यह लगता है कि शक्तिशाली पुरुष वर्ग जब अपने ऊपर संकट देखता है तो सबसे ज्यादा डरपोक बना जाता है और जमीन पर गिरी असहाय महिलाओं, बच्चों और वृद्धों के सीने पर भी चढ़ने में हिचक अनुभव नहीं करता जबकि बचाने का सबसे अधिक दायित्व उसी पर ही होता है। महत्वपूर्ण बात यह कि हाल ही के इतिहास में यह ऐसी दुर्घटना है जिसमें बिजली की तार गिरने की अफवाह से भगदड़ फैली। इससे पूर्व भी झांसी के निकट रतनगढ़ माता के मंदिर के पास पुल टूटने की घटना की अफवाह पर भी भगदड़ फैली थी तब भी हताहतों की संख्या बहुत थी। भीड़ में इस तरह का बदहवास वातावरण फैलने की घटनाओं से तो यही सीखा जा सकता है कि जहां तक हो सके ऐसी जगहों पर जाने से बचें। जायें तो यह देखें कि पीठ पीछे भागने का मार्ग है कि नहीं। बहरहाल इस घटना में हताहत लोगों के प्रति हमारी सहानुभूति है। भगवान उनकी आत्मा को शांति तथा परिवार जनों को यह दर्द सहने की शक्ति प्रदान करे।
1.दीपक भारतदीप की शब्द लेख पत्रिका
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3.दीपक भारतदीप का चिंतन
४.शब्दयोग सारथी पत्रिका
५.हिन्दी एक्सप्रेस पत्रिका
अपने बच्चों को ढूंढने गयी वह महिला जब उस बच्ची को गोदी में लेकर अस्पताल जा रही थी उसका टीवी पर प्रसारण देखा। बच्ची और महिला दोनों की भाव भंगिमा मर्म विदीर्ण करने वाली थी। एक मां को अपने बच्चे नहीं मिल पाये पर इस बीच भी एक लावारिस घायल बच्ची के प्रति उसमें अंदर ममता का भाव आया। उसने बच्ची को अपनी गोद कुछ पल के लिये उधार दे दी। यही है भारत की पहचान जिसमें मनुष्य ही मनुष्य का दर्द समझता है। सबसे बड़ी है मां की ममता! यह ममता अपने बच्चे के लिये ही नहीं वरन् दूसरे के बच्चे के संकट होने से उस पर भी उमड़ आती है। धन्य है भारत की मातायें!
भारत में ऐसी अनेक घटनायें होती हैं जो यहां की मानवीय सभ्यता की संवदेनाओं का सकारात्मक पक्ष उजागर करती हैं। जब वह औरत उस बेहोश बच्ची को ले जा रही थी तो ऐसा लग रहा था कि जैसे उसकी मां हो। गांधी मैदान पर हुए इस हादसे में 21 महिलाओं तथा 10 बच्चों समेत 33 लोग मारे गये हैं। मेलों के अवसर पर ऐसी दुर्घटनाओं में बच्चों और महिलाओं के लिये भागना कठिन हो जाता है-यह देखा गया है। भीड़ भरे कार्यक्रमों भगदड़ मचने पर जिस तरह महिलाओं, बच्चों और वृद्धों की मृतक संख्या देखने को मिलती है उससे तो यह लगता है कि शक्तिशाली पुरुष वर्ग जब अपने ऊपर संकट देखता है तो सबसे ज्यादा डरपोक बना जाता है और जमीन पर गिरी असहाय महिलाओं, बच्चों और वृद्धों के सीने पर भी चढ़ने में हिचक अनुभव नहीं करता जबकि बचाने का सबसे अधिक दायित्व उसी पर ही होता है। महत्वपूर्ण बात यह कि हाल ही के इतिहास में यह ऐसी दुर्घटना है जिसमें बिजली की तार गिरने की अफवाह से भगदड़ फैली। इससे पूर्व भी झांसी के निकट रतनगढ़ माता के मंदिर के पास पुल टूटने की घटना की अफवाह पर भी भगदड़ फैली थी तब भी हताहतों की संख्या बहुत थी। भीड़ में इस तरह का बदहवास वातावरण फैलने की घटनाओं से तो यही सीखा जा सकता है कि जहां तक हो सके ऐसी जगहों पर जाने से बचें। जायें तो यह देखें कि पीठ पीछे भागने का मार्ग है कि नहीं। बहरहाल इस घटना में हताहत लोगों के प्रति हमारी सहानुभूति है। भगवान उनकी आत्मा को शांति तथा परिवार जनों को यह दर्द सहने की शक्ति प्रदान करे।
लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poem-Deepak Raj Kukreja ""Bharatdeep""
Gwalior, madhyapradesh
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poem-Deepak Raj Kukreja ""Bharatdeep""
Gwalior, madhyapradesh
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर
poet, Editor and writer-Deepak 'Bharatdeep',Gwalior
http://deepkraj.blogspot.com
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