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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

Sunday, November 23, 2014

हम आश्रम नहीं बना सकते-हिन्दी हास्य कविता(ham ashram nahin bana sakate-hindi comedy poem)



मंदिर में मिलते ही बोला फंदेबाज
‘‘दीपक बापू तुमने इतना लिखा
फिर भी फ्लाप रहे,
पता नहीं किसके शाप सहे,
इससे तो अच्छा होता तुम
कोई संत बन जाते,
खेलते माया के साथ
शिष्य की बढ़ती भीड़ के साथ
जगह जगह आश्रम बनाते,
कुछ सुनाते कवितायें,
दिखाते कभी गंभीर
कभी हास्य अदायें,
हल्दी लगती न फिटकरी
प्रचार जगत के सितारे बन जाते।

हंसकर बोले दीपक बापू
‘‘यह तुम्हारी सहृदयता है
या दिल में छिपा कोई बुरा भाव,
हमें उत्थान की राह दिखाते हो
या पतन पर लगवा रहे हो दांव,
अपनी चिंता के बोझ से ही
हो जाते हैं बोर
भीड़ की भलाई सोचते हुए
बुद्धि से भ्रष्ट हो जाते,
कितना भी ज्ञान क्यों न हो
माया है महाठगिनी
अपने ही इष्ट भी खो जाते,
अनाम रहने से
स्वतंत्रता छिन नहीं जाती,
मुश्किल होती है जब
नाम के साथ बदनामी
लेकर आती संकट
घिन हर कहीं छाती,
प्रसिद्धि का शिखर
बहुत लुभाता है,
गिरने पर उसी का
छोटा पत्थर भी कांटे  चुभाता है,
सत्य का ज्ञान
होने पर भी
अपने आश्रम महल बनाकर
माया के अंडे हर ज्ञानी पाता है,
मगर होता है जब भ्रष्ट
अपनी सता से
तब अपने पीछे लगा
डंडे का हर दानी पाता है,
तुम्हारी बात मान लेते
हम इस धरती पर
चमकते भले ही पहले
मगर बाद में बिचारे बन जाते।
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लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poem-Deepak Raj Kukreja ""Bharatdeep""
Gwalior, madhyapradesh
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर
poet, Editor and writer-Deepak  'Bharatdeep',Gwalior
http://deepkraj.blogspot.com
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Wednesday, November 12, 2014

छवि की चिंता-हिन्दी व्यंग्य कविता(chhani ki chinta-hindi satire poem)



प्रचार के इस युग में
जो देवपद पर पर बैठा
या रहे दैत्य कर्म में लिप्त
जमकर प्रचार पाता है।

उत्पादों के विज्ञापन का
वाहन खींच सके
गधा हो तब भी
महान कहलाता है।

कहें दीपक बापू आकर्षक कार्य से
अधिक छवि बनाने की इच्छा में
मनुष्य जुटा रहता है सदैव
एक बार पर्दे पर चेहरा आये
या कागज पर नाम छाये
सस्ती औकात वाला भी
अनमोल हो जाता है।
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लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poem-Deepak Raj Kukreja ""Bharatdeep""
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Tuesday, November 4, 2014

धवल छवि के लिये परनिंदा-हिन्दी कविता(dhawal chhavi ke liye parninda-hindi poem)



स्वयं के बुरे रहस्य
छिपाने के लिये
दूसरे के दोषों पर
अपने शब्द रचकर
बाज़ार में सुनाने ही होते हैं।

संसार में अपनी धवल छवि
बनाने के लिये
परनिंदा के गीत
भीड़ में गुनगुनाने ही होते हैं।

माया काली हो गया गोरी
जिसके घर आ आये
उसका चमका देती चेहरा,
डराती बहुत
बैठा देती बाहर पहरा,
कांपते हुए गुजारते लोग
आपस में रहते हुए
अलग होते ही
पुराने रिश्ते भी
सनसनी बनाकर  नकद में
उनको भुनाने ही होते हैं।
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लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poem-Deepak Raj Kukreja ""Bharatdeep""
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