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Sunday, March 29, 2015

पाखंडी दाम पाते हैं-हिन्दी कविता(pakhandi dam paate hain-hindi poem)


रक्षा के लिये बने हथियार
कत्ल करने के ही
काम आते हैं।

उगाते हैं कई लोग उद्यान में
पेड़ पौद्ये माली बनकर
मगर अखबार में कातिलों के ही
नाम आते हैं।

कहें दीपक बापू योगी बनकर
 जो धरा पर आनंद की
बहाते अनवरत धारा
 प्रचार से परे
चिंत्तन पर देते ध्यान सारा,
समाज सेवक की उपाधि
लगाकर दान के पैसे से
विज्ञापन कर पाखंडी ही
दाम पाते हैं।

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लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poem-Deepak Raj Kukreja ""Bharatdeep""
Gwalior, madhyapradesh
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर
poet, Editor and writer-Deepak  'Bharatdeep',Gwalior
http://deepkraj.blogspot.com
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