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Friday, June 19, 2015

योग साधना का औषधि जैसे महत्व का प्रचार संकीर्णता का परिचायक-21 जून अंतर्राष्टीय योग दिवस विश्व योग दिवस पर विशेष हिन्दी चिंत्तन लेख


                             21 जून 2015 को अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के अवसर पर हमारे देश में प्रचार का दौर चल रहा है वह बहुत जोरों पर है।  जहां पूरे विश्व में योग दिवस की तैयारियां चल रही हैं वहीं भारत में कहीं उबाऊ तो कहीं रुचिकर बहस भी जारी है।  जहां योग समर्थक हल्के तथा नारेयुक्त तर्कों से प्रचार पाने के मोह में प्रचाररत हैं तो अनेक लोग उनका विरोध करते हुए अनेक आजीबोगरीब तर्क भी दे रहे हैं। योग के विरोधी अनेक  ऐसे योग समर्थकों की चर्चा करते हैं जो मूलतः भारतीय चिकित्सा पद्धतियों के समर्थक होते हुए भी अंततः अस्वस्थ होने पर अंग्रेजी चिकित्सा पद्धति की शरण में गये हैं। इनमेें तो एक विश्व प्रसिद्ध योग शिक्षक भी हैं जो भूख हड़ताल के बाद कमजोर होने पर अंग्रेजी पद्धति वाले चिकित्सालय में भर्ती हुए-हमारा मानना है कि वह योगी होते हुए भी असहज योग की राह चलने के कारण उन्हें इस दशा का सामना करना पड़ा तो क्षणिक तनाव की वजह से उन्होंने अपनाया था।
                              बहरहाल योग के साथ चिकित्सा पद्धति की चर्चा करना ही  हमें व्यर्थ लगता है पर एक योग तथा ज्ञान साधक होने के कारण हम इस प्रयास में है कि 21 जून तक हम अपने अनुभव बांटते रहें इसलिये प्रतिदिन योग चर्चा करते हैं। हमारा अनुभव कहता है कि योगासन के समय बीमारियों की चर्चा करना एकदम बेकार है।   यह अलग बात है कि कुछ पेशेवर येागाचार्य चिकित्सक की तरह भी अपनी भूमिका निभा रहे हैं। अनेक बार तो स्थिति यह दिखती है कि बीमारियों के दूर करने वाले विशेष योग शिविर आयोजित किये जाते हैं।  हमारा मानना है कि ऐसे अवसरों पर साधक के दिमाग में अपनी बीमारी की बात रहती है जो उसे योग के निष्काम भाव से दूर कर देती है। दूसरी बात यह कि चाहे भले ही कोई भारतीय अध्यात्मिक दर्शन का प्रचारक होने का दावा करते हुए भारतीय योग तथा चिकित्सा पद्धति का समर्थन करे पर उसे अपनी प्रतिबद्धता दिखाने के लिये उससे संबंध प्रतिदिन रखना चाहिये।  जो प्रतिदिन योग साधना करेगा वह अस्वस्थ होने पर अंग्रेजी पद्धति और आयूर्वेद की बात तो छोड़िये घरेलू इलाज से भी ठीक हो जायेगा-ऐसा हमारा मत है।  जो इतना अस्वस्थ हो जाता है कि उसे अंग्र्रेजी पद्धति की शरण में जाना पड़े तो मान लेना चाहिये कि वह प्रतिदिन योगाभ्यास नहीं करता या फिर ज्ञान की राह से भटक कर उसने अपने अभ्यास में कमी ला दी है।
                              जिन लोगों को योग से विरोध है वह इसे न करें-हमें उनसे कोई गिला नहीं है।  वह ऐसे योग समर्थकों की सूची भी जारी करें जो भारतीय अध्यात्मिक दर्शन का दावा करने के बाद भी अंग्रेजी संस्कृति, शिक्षा, संस्कार तथा चिकित्सा पद्धति की शरण में चले जाते हैं-इस पर भी कोई आपत्ति नहीं है। हमारा कहना है कि योग तो जीवन जीने की कला है। करो तो जानो।
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लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poem-Deepak Raj Kukreja ""Bharatdeep""
Gwalior, madhyapradesh
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर
poet, Editor and writer-Deepak  'Bharatdeep',Gwalior
http://deepkraj.blogspot.com
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