सामान से भरी बंद बोरी
सौदागर मूंह मांगे दाम
बेच जाते हैं।
सपनों के खरीददार
जेब खाली करते
खोलने पर कबाड़ पाते हैं।
कहें दीपकबापू आग पर
धोखे की हांडी चढ़ती देखी
हमने कई बार
वह रोज मालिक बदलती
हम कहां ताड़ पाते हैं।
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