समस्त ब्लॉग/पत्रिका का संकलन यहाँ पढें-

पाठकों ने सतत अपनी टिप्पणियों में यह बात लिखी है कि आपके अनेक पत्रिका/ब्लॉग हैं, इसलिए आपका नया पाठ ढूँढने में कठिनाई होती है. उनकी परेशानी को दृष्टिगत रखते हुए इस लेखक द्वारा अपने समस्त ब्लॉग/पत्रिकाओं का एक निजी संग्रहक बनाया गया है हिंद केसरी पत्रिका. अत: नियमित पाठक चाहें तो इस ब्लॉग संग्रहक का पता नोट कर लें. यहाँ नए पाठ वाला ब्लॉग सबसे ऊपर दिखाई देगा. इसके अलावा समस्त ब्लॉग/पत्रिका यहाँ एक साथ दिखाई देंगी.
दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

Monday, June 30, 2008

बांट लेते हैं रौशनी भी-हिंदी शायरी


कभी तृष्णा तो कभी वितृष्णा
मन चला जाता है वहीं इंसान जाता
जब सिमटता है दायरों में ख्याल
अपनों पर ही होता है मन निहाल
इतनी बड़ी दुनिया के होने बोध नहीं रह जाता
किसी नये की तरह नजर नहीं जाती
पुरानों के आसपास घूमते ही
छोटी कैद में ही रह जाता

अपने पास आते लोगों में
प्यार पाने के ख्वाब देखता
वक्त और काम निकलते ही
सब छोड़ जाते हैं
उम्मीदों का चिराग ऐसे ही बुझ जाता

कई बार जुड़कर फिर टूटकर
अपने अरमानों को यूं हमने बिखरते देखा
चलते है रास्ते पर
मिल जाता है जो
उसे सलाम कहे जाते
बन पड़ता है तो काम करे जाते
अपनी उम्मीदों का चिराग
अपने ही आसरे जलाते हैं जब से
तब से जिंदगी में रौशनी देखी है
बांट लेते हैं उसे भी
कोई अंधेरे से भटकते अगर पास आ जाता
....................................

दीपक भारतदीप

Saturday, June 28, 2008

दर्द की खबर देते, अपने वास्ते बेदर्द होते-हिन्दी शायरी



खबरों की खबर वह रखते हैं
अपनी खबर हमेशा ढंकते हैं
दुनियां भर के दर्द को अपनी
खबर बनाने वाले
अपने वास्ते बेदर्द होते हैं

आखों पर चख्मा चढ़ाये
कमीज की जेब पर पेन लटकाये
कभी कभी हाथों में माइक थमाये
चहूं ओर देखते हैं अपने लिये खबर
स्वयं से होते बेखबर
कभी खाने को तो कभी पानी को तरसे
कभी जलाती धूप तो कभी पानी बरसे
दूसरों की खबर पर फिर लपक जाते हैं
मुश्किल से अपना छिपाते दर्द होते हैं

लाख चाहे कहो
आदमी से जमाना होता है
खबरची भी होता है आदमी
जिसे पेट के लिये कमाना होता है
दूसरों के दर्द की खबर देने के लिये
खुद का पी जाना होता है
भले ही वह एक क्यों न हो
उसका पिया दर्द भी
जमाने के लिए गरल होता
खबरों से अपने महल सजाने वाले
बादशाह चाहे
अपनी खबरों से जमाने को
जगाने की बात भले ही करते हों
पर बेखबर अपने मातहतों के दर्द से होते हैं

कभी कभी अपना खून पसीना बहाने वाले खबरची
खोलते हैं धीमी आवाज में अपने बादशाहों की पोल
पर फिर भी नहीं देते खबर
अपने प्रति वह बेदर्द होते हैं
----------------------------
दीपक भारतदीप

Thursday, June 26, 2008

वह तुम ही होते-हिंदी शायरी

बेजान पत्थरों में ढूंढते हैं आसरा
फिर भी नहीं जिंदगी में मसले हल नहीं होते
कोई हमसफर नहीं होता इस जिंदगी में
अपने दिल की तसल्ली के लिये
हमदर्दों की टोली होने का भ्रम ढोते
सभी जानते हैं यह सच कि
अकेले ही चलना है सभी जगह
पर रिश्तों के साथ होने का
जबरन दिल को अहसास करा रहे होते
कहें महाकवि दीपक बापू
क्यों नहीं कर लेते अपने अंदर बैठे
शख्स से दोस्ती
जिससे हमेशा दूर होते
वह तुम ही होते
........................................

दीपक भारतदीप

Monday, June 23, 2008

इश्क में भी अब आ गया है इंकलाब-हिन्दी शायरी

इश्क में भी अब आ गया है इंकलाब
हसीनाएं ढूंढती है अपने लिए कोई
बड़ी नौकरी वाला साहब
छोटे काम वाले देखते रहते हैं
बस माशुका पाने का ख्वाब

वह दिन गये जब
बगीचों में आशिक और हसीना
चले जाते थे
अपने घर की छत पर ही
इशारों ही इशारों में प्यार जताते थे
अब तो मोबाइल और इंटरनेट चाट
पर ही चलता है इश्क का काम
कौन कहता है
इश्क और मुश्क छिपाये नहीं छिपते
मुश्क वाले तो वैसे हुए लापता
इश्क हवा में उडता है अदृश्य जनाब
जाकर कौन देख सकता है
जब करने वाले ही नहीं देख पाते
चालीस का छोकरा अटठारह की छोकरी को
फंसा लेता है अपने जाल में
किसी दूसरे की फोटो दिखाकर
सुनाता है माशुका को दूसरे से गीत लिखाकर
मोहब्बत तो बस नाम है
नाम दिल का है
सवाल तो बाजार से खरीदे उपहार और
होटल में खाने के बिल का है
बेमेल रिश्ते पर पहले माता पिता
होते थे बदनाम
अब तो लडकियां खुद ही फंस रही सरेआम
लड़कों को तो कुछ नहीं बिगड़ता
कई लड़कियों की हो गयी है जिंदगी खराब
------------------------------
दीपक भारतदीप

Sunday, June 22, 2008

हमारी जिन्दगी में आये वह हवा बनकर-हिन्दी शायरी



हमारी जिंदगी में आये वह हवा बनकर
इसलिये छोड़ जायेंगे कभी
इसका तो अनुमान था
पर छोड़ जायेंगे अपने पीछे
एक बहुत बड़ा तूफान
हमारे लड़ने के लिये
इसका गुमान न था

आये थे तो वह आहिस्ता आहिस्ता
कदम अपने बढ़ाते हुए
अपनी कमर मटकाते हुए
हमें देख रहे थे आंखें नचाते हुए
कुछ पल के साथ में लगा कि
कि वह उम्र भर नहीं जायेंगे
सदा पास रह जायेंगे
पर अपना काम निकलते ही
जो उन्होंने अपना मूंह फेरा
जिंदगी घिर गयी झंझावतों में
जिसका कभी पूर्वानुमान न था
..................................................
दीपक भारतदीप

Saturday, June 21, 2008

आता कहर भी टल जाता है-हिन्दी शायरी


यूं तो हम भी दोस्तों के लिये
अपनी जान देने के लिये खड़े थे
पर दोस्त भी हमें बचाने के लिये
कुर्बान होने पर अड़े थे

‘पहले मै’ ‘पहले मैं’ के झगड़े में
मुसीबत का काफिला गुजर गया
पता ही नहीं चला
एक दूसरे को कृतार्थ करने का वक्त यूं ही टला
जज्बात हों कुर्बानी के लिये दिल में तो
आता कहर भी टल जाता है
जिंदगी बहती है हवा में
झौंका भी आ जाये दिल में
दोस्त का साथ निभाने का
तो दुश्मन हो शहर तब भी डर जाता है
बुरे वक्त में तकलीफ का दर्द भी कम जाता है
इसी सोच के साथ दोस्त और हम वहां खड़े थे
...............................


एक सपना लेकर
सभी लोग आते हैं सामने
दूर कहीं दिखाते हैं सोने-चांदी से बना सिंहासन

कहते हैं
‘तुम उस पर बैठ सकते हो
और कर सकते हो दुनियां पर शासन

उठाकर देखता हूं दृष्टि
दिखती है सुनसान सारी सृष्टि
न कहीं सिंहासन दिखता है
न शासन होने के आसार
कहने वाले का कहना ही है व्यापार
वह दिखाते हैंे एक सपना
‘तुम हमारी बात मान लो
हमार उद्देश्य पूरा करने का ठान लो
देखो वह जगह जहां हम तुम्हें बिठायेंगे
वह बना है सोने चांदी का सिंहासन’

उनको देता हूं अपने पसीने का दान
उनके दिखाये भ्रमों का नहीं
रहने देता अपने मन में निशान
मतलब निकल जाने के बाद
वह मुझसे नजरें फेरें
मैं पहले ही पीठ दिखा देता हूं
मुझे पता है
अब नहीं दिखाई देगा भ्रम का सिंहासन
जिस पर बैठा हूं वही रहेगा मेरा आसन
..........................
दीपक भारतदीप

Friday, June 20, 2008

सनसनी गद्दारी से फैलती है वफादारी से नहीं-व्यंग्य

जब शाम को घर पहुंचने के बाद आराम कर रहा था तो पत्नी ने कहा-‘आज इंटरनेट का बिल भर आये कि नहीं!
मैंने कहा-‘तुम बाजार चली जाती तो वहीं भर जाता। मेरे को काम की वजह से ध्यान नहीं रहता।’
पत्नी ने कहा-‘घर पर क्या कम काम है? बाजार जाने का समय ही कहां मिलता है? अब यह बिल भरने का जिम्मा मुझ पर मत डालो।’
मैंने कहा-‘तुम घर के काम के लिये कोई नौकर या बाई क्यों नहीें रख लेती।’
मेरी पत्नी ने कहा-‘क्या कत्ल होने या करने का इरादा है। वैसे भी तुम जिस तरह कंप्यूटर से रात के 11 बजे चिपकने के बाद सोते हो तो तुम्हें होश नहीं रहता। कहीं मेरा कत्ल हो जाये तो सफाई देते परेशान हो जाओगे। अभी मीडिया वाले पूछते फिर रहे हैं कि आठ फुट की दूरी से किसी को अपने बेटी की हत्या पर कोई चिल्लाने की आवाज कैसे नहीं आ सकती। अगर मेरा कत्ल हो जाये तो तुम तो आठ इंच की दूरी पर आवाज न सुन पाने की सफाई कैसे दोगे? मीडिया वाले कैसे तुम पर यकीन करेंगे? यही सोचकर चिंतित हो जाती हूं। ऐसे में तुम नौकर या बाई रखने की बात सोचना भी नहीं। वैसे अगर स्वयं काम करने की आदत छोड़ दी तो फिर हाथ नहीं आयेगा। समय से पहले बुढ़ापा बुलाना भी ठीक नहीं है।
मैंने कहा-‘इतने सारे नौकर काम कर रहे हैं सभी के घर कत्ल थोड़े ही होते हैं। तुम कोई देख लो। मैं फिर उसकी जांच कर लूंगा।’
मेरी पत्नी ने हंसते हुए कहा-‘कहां जांच कर लोगे? अपनी जिंदगी में कभी कोई नौकर रखा है जो इसका अभ्यास हो।’

मैंने कहा-‘तुम तो रख लो। हम तो बड़े न सही छोटे सेठ के परिवार में पैदा हुए इसलिये जानते हैं कि नौकर को किस तरह रखा जाता है।’

मेरी पत्नी ने कहा-‘दुकान पर नौकर रखना अलग बात है और घर में अलग। टीवी पर समाचार देखो ऐसे नौकरों के कारनामे आते हैं जिनको घर के परिवार के सदस्य की तरह रखा गया और वह मालिक का कत्ल कर चले गये।’
मैंने कहा-‘क्या आज कोई इस बारे में टीवी पर कोई कार्यक्रम देखा है?’
उसने कहा-‘हां, तभी तो कह रही हूं।’
मैंने कहा-‘तब तो तुम्हें समझाना कठिन है। अगर तुम कोई टीवी पर बात देख लेती हो तो उसका तुम पर असर ऐसा होता है कि फिर उसे मिटा पाना मेरे लिये संभव नहीं है।’

बहरहाल हम खामोश हो गये। वैसे घर में काम के लिये किसी को न रखने का यही कारण रहा है कि हमने जितने भी अपराध देखे हैं ऐसे लोगों द्वारा करते हुए देखे हैं जिनको घर में घुस कर काम करने की इजाजत दी गयी । सात वर्ष पहले एक बार हमारे बराबर वाले मकान में लूट हो गयी। उस समय मैं घर से दूर था पर जिन सज्जन के घर लूट हुई वह मेरे से अधिक दूरी पर नहीं थी। कोई बिजली के बिल के बहाने पड़ौसी के घर में गया और उनकी पत्नी चाकू की नौक पर धमका कर हाथ बांध लिये और सामान लूट कर अपराधी चले गये। मेरी पत्नी अपनी छत पर गयी तो उसे कहीं से घुटी हुई आवाज में चीखने की आवाज आई। वह पड़ौसी की छत पर गयी और लोहे के टट्र से झांक कर देख तो दंग रह गयी। वह ऊपर से चिल्लाती हुई नीचे आयी। उसकी आवाज कर हमारे पड़ौस में रहने वाली एक अन्य औरत भी आ गयी। दोनो पड़ौसी के घर गयी और उस महिला को मुक्त किया। उनके टेलीफोन का कनेक्शन काट दिया गया था सो मेरी पत्नी ने मुझे फोन कर उस पड़ौसी को भी साथ लाने को कहा।
मैं एक अन्य मित्र को लेकर उन पड़ौसी के कार्यालय में उनके पास गया। सबसे पहले उन्होंने अपनी पत्नी का हाल पूछा तो मैने अपनी पत्नी से बात करायी। तब वह बोले-‘यार, अगर पत्नी ठीक है तो मैं तो पुलिस में रपट नहीं करवाऊंगा।’
वह अपने एक मित्र को लेकर स्कूटर पर घर की तरफ रवाना हुए और मैं अपनी साइकिल से घर रवाना हुआ। चलते समय मेरे मित्र ने कहा-‘ अगर यह पुलिस में रिपोर्ट नहीं लिखवाते तो ठीक ही है वरना तुम्हारी पत्नी से भी पूछताछ होगी।’
हम भी घर रवाना हुए। वहां पहुंचे तो पुलिस वहां आ चुकी थी। मेरी पत्नी ने पड़ौसी के भाई को भी फोन किया था और उन्होंने वहीं से पुलिस का सूचना दी। अधिक सामान की लूट नहीं हुई पर सब दहशत में तो आ ही गये थे।

एक दो माह बीता होगा। उस समय घर में किसी को काम पर रखने का विचार कर रहे थे तो पता लगा कि पड़ौसी के यहां लूट के आरोपी पकड़े गये और उनमें एक ऐसा व्यक्ति शामिल था जो उनके यहां मकान बनते समय ही फर्नीचर का काम कर गया था। इससे हमारी पत्नी डर गयी और कहने लगी तब तो हम कभी भी किसी ऐसे व्यक्ति को घुसने ही न दें जिसे हम नहीं जानते। यही हमारे लिये अच्छा रहेगा।’
यह घटना हमारे निकट हुई थी उसका प्रभाव मेरी पत्नी पर ऐसा पड़ा कि फिर घर में किसी बाई या नौकर को घुसने देने की बात सोचने से ही उसका रक्तचाप बढ़ जाता है। फिर उसके बाद जब भी कभी वह काम अधिक होने की बात करती हैं मैं किसी को काम पर रखने के लिये कहता हूं पर टीवी पर अक्सर ऐसी खबरें आती हैं कि अपना विचार स्थगित कर देती हैं।’

उस दिन कहने लगी-‘पता नहीं लोग अपना काम स्वयं क्यों नहीं करते। नौकर रख लेते हैं।
मैंने कहा-‘तुम भी रख सकती हो। अगर यह टीवी चैनल देखना बंद कर दो। कभी सोचती हो कि ग्यारह सौ वर्ग फुट के भूखंड पर बने मकान की सफाई में ही जब तुम्हारा यह हाल है तो पांच-पांच हजार वर्ग फुट पर बने मकान वाले कैसे उसकी सफाई कर सकते हैं? मुझसे बार बार कहती हो कि छोटा प्लाट लेते। क्या जरूरी था कि इतना बड़ा पोर्च और आंगन भी होता। तब उन बड़े लोगों की क्या हालत होगी जो जमाने को दिखाने के लिये इतने बड़े मकान बनाते हैं। वह अपनी पत्नियों के तानों का कैसे सामना कर सकते हैं जब मेरे लिये ही मुश्किल हो जाता है।’
हमारी पत्नी सोच में पड़ गयी। इधर सास-बहू के धारावाहिकों का समय भी हो रहा था। वह टीवी खोलते हुए बोली-‘इन धारावाहिकों में तो नौकर वफादार दिखाते हैं।
मैंने हंसते हुुए कहा-‘तो रख लो।’
फिर वह बोली-‘पर वह न्यूज चैनल तो कुछ और दिखा रहे है।
मैंने कहा-‘तो फिर इंतजार करो। जब दोनों में एक जैसा ‘नौकर पुराण दिखाने लगें तब रखना। वैसे समाचार हमेशा सनसनी से ही बनते हैं और गद्दारी से ही वह बनती है वफदारी से नहीं। इसलिये दोनों ही जगह एक जैसा ‘नौकर पुराण’ दिखे यह संभव नहीं है। इसलिये मुझे नहीं लगता कि तुम किसी को घर पर काम पर रख पाओगी।’
मेरी पत्नी ने मुस्कराते हुए पूछा-‘तुम्हारे ब्लाग पर क्या दिखाते हैं?’

मैंने कहा-‘अब यह तो देखना पड़ेगा कि किसने टीवी पर क्या देखा है? बहरहाल मैंने तो कुछ नहीं देखा सो कुछ भी नहीं लिख सकता। सिवाय इसके कि वफदारी से नहीं गद्दारी से फैलती है सनसनी।’
मेरी पत्नी ने पूछा-‘इसका क्या मतलब?’
मैंने कहा-‘मुझे स्वयं ही नहीं मालुम

दीपक भारतदीप

Thursday, June 19, 2008

अपनी ही कहानियां मस्तिष्क से निकल जातीं-हिन्दी शायरी

यूं तो वक्त गुजरता चला जाता
पर आदमी साथ चलते पलों को ही
अपना जीवन समझ पाता
गुजरे पल हो जाते विस्मृत
नहीं हिसाब वह रख पाता

कभी दुःख तो कभी होता सुख
कभी कमाना तो कभी लुट जाना
अपनी ही कहानियां मस्तिष्क से
निकल जातीं
जिसमें जी रहा है
वही केवल सत्य नजर आती
जो गुजरा आदमी को याद नहीं रहता
अपनी वर्तमान हकीकतों से ही
अपने को लड़ता पाता

हमेशा हानि-लाभ का भय साथ लिये
अपनों के पराये हो जाने के दर्द के साथ जिये
प्रकाश में रहते हुए अंधेरे के हो जाने की आशंका
मिल जाता है कहीं चांदी का ढेर
तो मन में आती पाने की ख्वाहिश सोने की लंका
कभी आदमी का मन अपने ही बोझ से टूटता
तो कभी कुछ पाकर बहकता
कभी स्वतंत्र होकर चल नहीं पाता

तन से आजाद तो सभी दिखाई देते हैं
पर मन की गुलामी से कोई कोई ही
मुक्त नजर आता
सत्य से परे पकड़े हुए है गर्दन भौतिक माया
चलाती है वह चारों तरफ
आदमी स्वयं के चलने के भ्रम में फंसा नजर आता
.....................................

दीपक भारतदीप

Friday, June 6, 2008

यौन साहित्य में कोई मलाई नहीं होती-व्यंग्य



किसी भी भाषा में यौन शिक्षा इतनी लोकप्रियता नहीं पाता जितनी चर्चा उसकी की जाती है। दरअसल इस साहित्य का प्रचार प्रसार बढ़ा केवल इसलिये कि अब शादी बड़ी आयु में होने लगी है और जब तक शादी नहीं हो युवा वर्ग इसके प्रति आकर्षक रहता है। इसी वर्ग में पाठक और दर्शक अधिक होते है इसलिये फिल्म, टीवी कार्यक्रम और समाचार पत्र अपने ग्राहक ढूंढते हैं और कुछ लेखक-जिनको यौन और यौवन की जानकारी सामान्य आदमी से अधिक नहीं होती- अपनी रचनाओं के पाठक बनाते हैं।

पिछली बार मेरे एक लेख पर एक ब्लाग लेखक ने बड़ी जोरदार टिप्पणी की थी हालांकि उसने वह लेख पूरा पढ़ा नहीं था। मैंने एक आलेख में लिखा था कि ‘पशु-पक्षियों और अन्य जीवों में यौन संबंध बनाये जाते हैं पर उनको किसी यौन शिक्षा की आवश्यकता नहीं होती।‘ टिप्पणी करने वाले ने लिखा कि ‘कुत्ते बिल्ली भी खाना खाते हैं पर उनको पाक कला की शिक्षा नहीं दी जाती।’
यह टिप्पणी व्यंग्यात्मक थी और उसका जवाब देने का मन होने के बावजूद मैंने नहीं दिया। मेरा वह आलेख मनुष्य की समस्त इंद्रियों के बारे में था। जहां तक आदमी के पाक कला में प्रवीण होने का सवाल है तो यह जरूरी नहीं है कि वह कहीं इसके लिये प्रशिक्षण लेने जाये। लड़कियां अपनी मां को देखते हुए ही सीख लेतीं हैं। अगर पाक कला सिखाने वाले केंद्र न भी हों तो चल जायेगा। कुत्ते बिल्ली इसलिये नहीं बनाते क्योंकि वह अपने मां बाप को ऐसा करते हुए नहीं देखते। मतलब साफ है कि देह में स्थित इंद्रियों के लिऐ किसी प्रशिक्षण की आवश्यकता नहीं है। फिर भी अगर पाक कला सीखने कोई जाता है तो उसमें मूर्खता की गुंजायश कम है। वहां लड़के लड़कियां साथ भी पाक कला सीखें तो कोई बात नहीं है। फिर पाक कला में भोजन और अन्य खाद्य सामग्रियां-जहां तक मेरी जानकारी है-सिखाईं जाती हैं। कम अधिक भोजन बन जाये तो चल जायेगा। नमक मिर्ची कम है तो भी पाक कला केंद्र में चल जायेगा। फिर भोजन तो चाहे जब खाया जा सकता है मगर यौन के लिए रात्रि का समय तय है। भोजन तो आदमी बचपन से लेकर पचपन तक करता है पर यौन संबंध की सीमायें हैं। अगर लोगों के लिए यौन शिक्षा केंद्र खोल दिये जायें और वहां भी भोजन की तरह शिक्षा दी जाये तो क्या हाल होगा? यह बताने की आवश्यकता नहीं है।
यह तो था उनकी बात का जवाब। यौन साहित्य लिखने वाले मानसिक रूप से बीमार होते हैं। यह इसलिये मै कह रहा हूं कि एक बार मैं खुद लोकप्रियता और पैसा प्राप्त करने के लिऐ यौन साहित्य लिखने का प्रयास कर रहा था। वह तो मेरे अध्यात्मिक संस्कार इतने प्रबल है कि चाहे जिस दुव्र्यसन में पड़ जाऊं निकल आता हूं-हां, आजकल तंबाकू से निकलने का प्रयास कर रहा हूं। उस समय की मुझे याद है कि मेरे मन की क्या हालत हो जाती थी? कुछ लोगों ने भ्रम फैला रखा है कि भारत में यौन शिक्षा का अभाव अनेक तरह की व्याधियों का जन्म दे रहा है। सिवाय मूर्खता के यह बातें और कुछ नहीं है। मैं पहले भी कह चुका हूं कि दक्षिण एशिया को उष्णकटिबंधीय क्षेत्र माना जाता है-तेज गर्मी से यहां लोगों में आलस अधिक रहता है और इसलिये उनके आर्थिक विकास पर भी इसका प्रभाव पड़ता है। गरीबी से जूझते लोगो के लिये लंबे समय तक यौन संबंध ही एक मनोरंजन का साधन रहा है। वैसे पश्चिम में कोई कामदेव नहीं हुआ है इसलिये यौन शिक्षा की आवश्यकता पड़ती है पर अपने देश में तो कामदेव पूजे जाते हैं और उनकी कृपा से लोगों की शक्ति अधिक होती है। इसके बावजूद यहां यौन साहित्य इसलिये अधिक प्रचलित हो गया है क्योंकि हमारा सभ्य समाज पश्चिमी शैली अपनाने लगा है। पहले छोटी ही आयु में शादी हो जाती थी और परिवार के लोग ही यौन शिक्षक की भूमिका बखूबी निभा लेते थे। अब बढ़ती शिक्षा के साथ बड़ी आयु में विवाह हो रहा है। फिर उस पर पश्चिम में अविष्कार की गयी चीजें यहां लोगों के लिये दहेज का सामान बन गयी हैं इसलिये चालीस तक की आयु के लड़के-विवाह न होने के कारण वह लड़के ही कहलाते है- उचित मूल्य न मिलने के कारण कुंवारे बैठे रहते हैं तो लड़कियों के पालक भी किसी राजकुमार की तलाश में रहते है और उनकी उमर भी बढ़ती जाती है। अपनी इंद्रियों पर जब बड़े-बड़े ऋषि मुनि नियंत्रण नहीं रख पाते तो आम आदमी की स्थिति ही क्या कही जा सकती है।

ऐसे मे यौन साहित्य वालों की बन आती है। मैंने एक ऐसे नाम को अपने सभी ब्लाग/पत्रिकाओं पर पाठों का पुंछल्ला बनाया जहां लोग यौन साहित्य की तलाश में जाते हैं और एक दो ब्लाग@पत्रिका का मुख ही बना दिया-बाद में नारद और चिट्ठाजगत की वजह से दो जगह से हटा लिया। आजकल मै देख रहा हूं वहां से पाठक आते हैं। उन ब्लाग/पत्रिकाओं पर भी आते हैं जो ब्लागवाणी पर नहीं है। मुझे प्रयोग करने होते हैं तो मैं अपने ब्लाग पर ही करता हूं इसलिये मैंने अनुभव किया कि लोगों की यौन साहित्य की भूख कम नहीं है। शरीर के अंगों के नाम पढ़कर कितने खुश होते है जैसे कोई मलाई खा रहे हों। वह अंग जो चोबीस घंटे उनके साथ हैं फिर भी उनको पढ़कर अपना विवेक खोते हुए भ्रमित होकर ऐसे साहित्य की तरफ जाते हैं। इसका कारण यह है कि बड़ी आयु के युवा वर्ग के लिऐ यौन क्रीड़ा एक रहस्यमय चीज होती है-केवल उन लोगों के लिए जो अनैतिक कामों में नही लगे रहते-और मनोरंजन के नाम पर उसे उनको पढ़ना अच्छा लगता है।

यौन साहित्य भी नंबर एक का कचड़ा है। अकल है नहीं और अंगों के नाम लिखकर अपने आपको श्रेष्ठ समझते हैं। एक दिलचस्प बात यह है कि सभी छद्म नाम से लिख रहे हैं। जो असली नाम से लिख रहे हैं उसमें ऐसा कुछ नहीं होता जिसे यौन साहित्य कहा जाये? ब्लागस्पाट के ब्लाग पर गलती से व्यस्क सामग्री दिखाने की सूचना पर हां लिख देते हैं फिर कहते हैं कि किसी ने चेतावनी लगा दी है। उस दिन एक चर्चा पढ़ी थी। सारे ब्लागर लगे थे उसे सहानुभूति जताने के लिये कि उसके ब्लाग पर तो कोई ऐसी सामग्री नहीं है जो आपत्तिजनक है। सैक्स शब्द ही ऐसा है कि आदमी की अकल पर ताला लगा देता है। जब मैंने पढ़ा तो लिख कर आया कि भाई जरा अपना ब्लाग चेक करो। सैटिंग में जाओ और व्यस्क सामगी पर नहीं लिखो। एक दिन लिख कर आया फिर दूसरे दिल वही चर्चा । भगवान ही जानता है कि इस बहाने प्रचार कर रहे है या भ्रमित है। किसी ने कहा डोमेन ले लो। वह ब्लाग लेखक डोमेन भी ले आया मगर चेतावनी नहीं हटी। अब बताओं जब ब्लाग स्पाट के ब्लाग पर ही डोमेन है तो वह काम तो अपने नियम से करेगा। हो सकता है कि यह डोमेन और ब्लाग का प्रचार हो क्योंकि यह चर्चा केवल ब्लाग लेखकों के पास ही जाती है और वहीं डोमेन के ग्राहक हो सकते हैं। मुझे तो लगा कि सैक्स के नाम से ऐसे ही प्रचार हो रहा है जैसे कभी ब्लाग लिखवाने के लिये ऐसे कथित सैक्स संबंधी ब्लाग लिखे गये। सच क्या है यह मैं नहीं जानता। सैक्स शब्द ही ऐसा है कि अच्छे भले आदमी का दिमाग काम करना बंद कर देता है।

आशय यह है कि जिनके लिये वास्तविक यौन संबंध कठिन है वही ऐसे यौन साहित्य के चक्कर में पड़कर अपना समय और बुद्धि नष्ट करते हैं। मगर किया क्या जाये? लोगों ने स्वयं अपनी यूवावस्था में जो आनंद उठाया पर एक उमर के बाद भूल गये और अपने बच्चों की मन की स्थिति पर दृष्टिपात नहीं करते। अपनी सामाजिक स्थिति बनाये रखने के लिए दहेज की रकम कम करने के लिए तैयार नहीं होता। सो समाज में ऐसे युवाओं का प्रतिशत बढ़ रहा है जो भ्रामक साहित्य का शिकार हो जाता है। हैरान तो तब होती है जहां यौन साहित्य की भनक हो वहां लोग ऐसे दौड़े जाते है जैसे कि मलाई मिल रही हो। वही हाल लेखकों और प्रकाशकों का भी है। वह सामग्री प्रचार भी ऐसे धीमे और प्रभावी स्वर में करते है जैसे मलाई बेच रहे हों। यौन साहित्य हो यौवन साहित्य इसकी आवश्यकता इतनी नहीं है जितनी बताई जाती है। फिर अंतर्जाल पर लिखने से क्या फायदा यहां तो ऐसी तस्वीरें वैसे ही खुलेआम उपलब्ध हैं जिनको कोई हिंदी ब्लाग लेखक शायद अपने ब्लाग पर दिखाना चाहे। मैंने जब से अपने ब्लाग/पत्रिकाओं के लिए फोटो छांटने का काम शुरू किया है तब से ऐसी तस्वीरे देखकर मेरा मन भी विचलित हो जाता है कि आंखें बंद कर अगले पृष्ठ के लिए क्लिक कर देता हूं। वह लोग अगर सोचते हैं कि अगर इस तरह गंदी गालियां लिखकर हिट हो रहे हैं तो सोचते रहें। वैसे हिट होने या धन कमाने का अर्थ यह कदापि नहीं है कि उनके पाठक अधिक है क्योंकि यहां दस पाठक भी इतने ताकतवार है कि वह हजार का आंकड़ा पार लगा सकते है-ऐसा अनेक ब्लाग लेखक अपने पाठों में लिख चुके हैं। बहरहाल जिस नाम के सहारे यहा यौन साहित्य अंतर्जाल चल रहा है वहां अपना बोर्ड भी लगा रखा है और वहां मेरे सारे ब्लाग सत्साहित्य के साथ मौजूद हैं। इसमें संदेह नहीं है कि वहां पाठक् अधिक आते हैं पर संभव है कि जब उनको उत्कृष्ट साहित्य-मेरे कुछ ब्लाग लेखक मेरे साहित्य को भी इसी श्रेणी में रखते हैं इसलिये लिख रहा हूं-पढ़ने को मिल जाये तो वह उसकी तरफ मुड़ जायें। मेरा मानना है कि यौन साहित्य से अधिक सत्साहित्य पढ़ने वालों की संख्या अधिक है।

यह रचनाएँ जरूर पढ़ें

Related Posts with Thumbnails

हिंदी मित्र पत्रिका

यह ब्लाग/पत्रिका हिंदी मित्र पत्रिका अनेक ब्लाग का संकलक/संग्रहक है। जिन पाठकों को एक साथ अनेक विषयों पर पढ़ने की इच्छा है, वह यहां क्लिक करें। इसके अलावा जिन मित्रों को अपने ब्लाग यहां दिखाने हैं वह अपने ब्लाग यहां जोड़ सकते हैं। लेखक संपादक दीपक भारतदीप, ग्वालियर

यह रचनाएँ जरूर पढ़ें

Related Posts with Thumbnails

विशिष्ट पत्रिकाएँ