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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

Thursday, June 26, 2008

वह तुम ही होते-हिंदी शायरी

बेजान पत्थरों में ढूंढते हैं आसरा
फिर भी नहीं जिंदगी में मसले हल नहीं होते
कोई हमसफर नहीं होता इस जिंदगी में
अपने दिल की तसल्ली के लिये
हमदर्दों की टोली होने का भ्रम ढोते
सभी जानते हैं यह सच कि
अकेले ही चलना है सभी जगह
पर रिश्तों के साथ होने का
जबरन दिल को अहसास करा रहे होते
कहें महाकवि दीपक बापू
क्यों नहीं कर लेते अपने अंदर बैठे
शख्स से दोस्ती
जिससे हमेशा दूर होते
वह तुम ही होते
........................................

दीपक भारतदीप

2 comments:

Anonymous said...

क्यों नहीं कर लेते अपने अंदर बैठे
शख्स से दोस्ती
जिससे हमेशा दूर होते
वह तुम ही होते
........................................sahi kaha,apna andar ka man hi apna sachha sathi hota hai,bahut sundar

Anonymous said...

क्यों नहीं कर लेते अपने अंदर बैठे
शख्स से दोस्ती
जिससे हमेशा दूर होते
वह तुम ही होते
bhut badhiya. jari rhe.

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