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Saturday, September 20, 2008

कदम कदम पर बिकती है भलाई यहाँ-हिन्दी शायरी

हर जगह सर्वशक्तिमान के दरबार में
बैठा कोई एक सिद्ध

आरजू लिए कोई वहां
उसे देखता है जैसे शिकार देखता गिद्द
लगाते हैं नारा
"आओ शरण में दरबार के
अपने दु:ख दर्द से मुक्ति पाओ
कुछ चढ़ावा चढ़ाओ
मत्था न टेको भले ही सर्वशक्तिमान के आगे
पर सिद्धों के गुणगान करते जाओ
जो हैं सबके भला करने के लिए प्रसिद्ध

इस किनारे से उस किनारे तक
सिद्धो के दरबार में लगते हैं मेले
भीड़ लगती है लोगों की
पर फिर भी अपना दर्द लिए होते सब अकेले
कदम कदम पर बिकती है भलाई
कहीं सिद्ध चाट जाते मलाई
तो कहीं बटोरते माल उनके चेले
फिर भी ख़त्म नहीं होते जमाने से दर्द के रेले
नाम तो रखे हैं फरिश्तों के नाम पर
फकीरी ओढे बैठे हैं गिद्द
उनके आगे मत्था टेकने से
अगर होता जमाने का दर्द दूर
तो क्यों लगते वहां मेले
ओ! अपने लिए चमत्कार ढूँढने वालों
अपने अन्दर झाँक कर
दिल में बसा लो सर्वशक्तिमान को
बन जाओ अपने लिए खुद ही सिद्ध

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दीपक भारतदीप की शब्दयोग पत्रिका पर लिख गया यह पाठ मौलिक एवं अप्रकाशित है। इसके कहीं अन्य प्रकाश की अनुमति नहीं है।
कवि एंव संपादक-दीपक भारतदीप

1 comment:

Anonymous said...

आप जैसे लोग ही इन गिद्धों से छुटकारा दिला कर उन्हें स्वम सिद्ध बनने को प्रोत्साहित कर सकते है /काश आपकी बात कोई मानता और अमल करता -लेकिन आप भी क्या करें "" डूबने वाले को जब मैंने दिया साहिल पे हाथ ,वो मुझे भी डूबने का मशविरा देने लगा

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