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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

Wednesday, January 21, 2009

चमचे और दोस्त-व्यंग्य कविता

घूमते हुए एक शख्स के पीछे

दो ही प्रकार के लोग नहीं उकताते

एक होते अजीज दोस्त

दूसरे चमचे कहलाते

अजीज तो दिल की

धड़कनों में बसते हैं

उनसे दूरी बहुत सताती है

पर चमचे जब तक मिलता माल है

तभी तक अपने घर के चक्कर लगाते

कभी कभी कर तारीफों के ऐसे पुल भी

बांध जाते हैं

जिससे सुनकर अपने दोस्त भी शरमा जाते

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