आज से दस पंद्रह वर्ष पूर्व तक अपने देश में पश्चिम में मनाये जाने वाले वैलंटाइन डे (शुभेच्छु दिवस) और फ्रैंड्स डे (मित्र दिवस) का नाम नहीं सुना था पर व्यवसायिक प्रचार माध्यमों ने इसे सुनासुनाकर लोगोें के दिमाग में वह सब भर दिया जिसे उनके प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष प्रायोजकों को युवक और युवतियों एक उपभोक्ता के रूप में मिल सकें।
मजेदार बात यह है कि वैलंटाईन डे को मनाने का क्या तरीका पश्चिम में हैं, किसी को नहीं पता, पर इस देश में युवक युवतियां साथ मिलकर होटलों में मिलकर नृत्य कर इसे मनाने लगे हैं। प्रचार माध्यमों का मुख्य उद्देश्य देश के युवा वर्ग में उपभोग की प्रवृत्ति जाग्रत करना है जिससे उसकी जेब का पैसा बाजार में जा सके जो इस समय मंदी की चपेट में हैं। आप गौर करें तो इस समय पर्यटन के लिये प्रसिद्ध अनेक स्थानों पर लोगों के कम आगमन की खबरें भी आती रहती हैं और प्रचार और विज्ञापनों पर निर्भर माध्यमों के लिये यह चिंता का विषय है।
बहरहाल हम इसके विरोध और समर्थन से अलग विचार करें। इस समय बसंत का महीना चल रहा है। बसंत पंचमी बीते कुछ ही दिन हुए हैं। यह पूरा महीना ही प्रेम रस पीने का है। जो कभी कभार सोमरस पीने वाले हैं वह भी इस समय उसका शौकिया सेवन कर लेते हैं। पश्चिम में शायद लोगों को समय कम मिलता है इसलिये उन्होंने आनंद मनाने के लिये दिन बनाये हैं पर अपने देश में तो पूरा महीना ही आनंद का है फिर एक दिन क्यों मनाना? अरे, भई यह तो पूरा महीना है। चाहे जैसा आनंद मनाओ। बाहर जाने की क्या जरूरत है? घर में ही मनाओ।
दरअसल संकीर्ण मानसिकता ने संस्कृति और संस्कारों के नाम पर लोगों की सोच को विलुप्त कर दिया। हालत यह है कि बच्चे शराब पीते हैं पर मां बाप को पता नहीं। बाप के सामने बेटे का पीना अपराध माना जाता है। सच बात तो यह है कि परिवार में अपने से छोटों से जबरन सम्मान कराने के नाम पर कई बुराईयां पैदा हो गयी हैं। कहा जाता है कि जिस प्रवृत्ति को दबाया जाता है वह अधिक उबर कर सामने नहीं पाती।
एक पिता को पता लगा कि‘उसका पुत्र शराब पीता है।’
पिता समझदार था। उसने अपने पुत्र से कहा-‘बेटा, अगर तूने शराब पीना शुरु किया है तो अब मैं तुम्हें रोक नहीं सकता! हां, एक बंदिश मेरी तरफ से है। वह यह कि जितनी भी पीनी है यहां घर में बैठकर पी। मुझसे दूसरे काम के लिये पैसे लेकर शराब पर मत खर्च कर। तेरी शराब की बोतल मैं ले आऊंगा।’
लड़के की मां अपने पति से लड़ने लगी-‘आप भी कमाल करते हो? भला ऐसा कहीं होता है। बेटे को शराब पीने से रोकने की बजाय उसे अपने सामने बैठकर पीने के लिये कह रहे हो। अरे, शराब पीने में बुराई है पर उसे अपने बड़ों के सामने पीना तो अधिक बुरा है। यह संस्कारों के विरुद्ध है।
पति ने जवाब दिया-‘याद रखना! बाहर शराब के साथ दूसरी बुराईयां भी आयेंगी। शतुरमुर्ग मत बनो। बेटा बाहर पी रहा हो और तुम यहां बैठकर सबसे कहती हो ‘मेरा बेटा नहीं पीता‘। तुम यह झूठ अपने से बोलती हो यह तुम्हें भी पता है। उसे अपने सामने बैठकर पीने दो। कम से कम बाहरी खतरों से तो बचा रहेगा। ऐसा न हो कि शराब के साथ दूसरी बुरी आदतें भी हमारे लड़के में आ जायें तब हमारे लिये हालात समझना कठिन हो जायेगा।’
इधर बेटे ने एक कुछ दिन घर में शराब पी। फिर उसका मन उचट गया और वह फिर उस आदत से परे हो गया। पिता ने एक बार भी उसे शराब पीने से नहीं रोका।
अगर आदमी की बुद्धि में परिपक्वता न हो तो स्वतंत्रता इंसान को अनियंत्रित कर देती है और जिस तरह अनियंत्रित वाहन दुर्घटना का शिकार हो जात है वैसे ही मनुष्य भी तो सर्वशक्तिमान का चलता फिरता वाहन है और इस कारण उसके साथ यह भय रहता है।
भारतीय अध्यात्म ज्ञान और हिंदी साहित्य में प्रेम और आनंद का जो गहन स्वरूप दिखता है वह अन्यत्र कहीं नहीं है। वेलंटाईन डे पर अंग्रेज क्या लिखेंगे जितना हिंदी साहित्यकारों ने बंसत पर लिखा है। बसंत पंचमी का मतलब एक दिन है पर बसंत तो पूरा महीना है। वैलंटाईन डे का समर्थन करने वालों से कुछ कहना बेकार है क्योंकि नारों तक उनकी दुनियां सीमित हैं पर जो इसका विरोध करते हैं उनको भी जरा बसंत पर कुछ लिखना चाहिये जैसे कवितायें और कहानियां। उन्हें बसंत का महात्म्य भी लिखना चाहिये। इस मौसम में न तो सर्दी अधिक होती है न गर्मी। हां आजकल दिन गर्म रहने लगे हैं पर रातें तो ठंडी हो जाती हैं-प्रेमरस में रत रहने और सोमरस को सेवन करने अनुकूल। किसी की खींची लकीर को छोटा करने की बजाय अपनी बड़ी लकीर खींचना ही विद्वता का प्रमाण है। वैलंटाईन डे मनाने वालों को रोकने से उसका प्रचार ही बढ़ता है इससे बेहतर है कि अपने बंसत महीने का प्रचार करना चाहिये। वैसे आजकल के भौतिक युग में बाजार अपना खेल दिखाता ही रहेगा उसमें संस्कृति और संस्कारों की रक्षा शारीरिक शक्ति के प्रदर्शन से नहीं बल्कि लोगों अपनी ज्ञान की शक्ति बताने से ही होगी।हां, यह संदेश उन लोगों को नहीं दिया जा सकता जिनको आनंद मनाने के लिये किस्मत से एक दिन के मिलता है या उनकी जेब और देह का सामथर््य ही एक दिन का होता है। सच यही है कि आनंद भी एक बोतल में रहता है जिसे हर कोई अपने सामथर््य के अनुसार ले सकता है। अगर आनंद में सात्विक भाव है तो वह परिवार वालों के सामने भी लिया जा सकता है। अंतिम सत्य यह है कि आंनद अगर समूह में मनाया जाये तो बहुत अच्छा रहता है क्योंकि उससे अपने अंदर आत्म विश्वास पैदा होता है। वैलंटाईन डे और फ्रैंड्स डे जैसे पर्व दो लोगों को सीमित दायरे में बांध देते हैं। इस अवसर पर जो क्षणिक रूप से मित्र बनते हैं वह लंबे समय के सहायक नहीं होते।
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कवि एंव संपादक-दीपक भारतदीप
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