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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

Wednesday, September 16, 2009

मुर्दाखानों में जिंदगी की रौशनी की तलाश-हिंदी साहित्य कविता (The search of light of life in dead mines - Hindi literature, poetry)

जमींदौज या राख हो चुके इंसानों के
राहों पर छपे कदमों को चूम कर
उसके निशान जमाने को दिखाते हैं।
गुजरते समय के साथ
बदलते जमाने को अपने ही
नजरिये से चलाने की कोशिश करते
वह लोग
मुर्दाखानों में जिंदगी की रौशनी जलाते हैं।
जितनी जिंदगियां चलती हैं
उतनी ही कहानियां पलती हैं
इस रंगबिरंगी दुनियां में
बस एक सूरज की रौशनी ही जलती है
बाकी चिराग तो
उधार पर अपना काम निभाते हैं।
हर चैहरे पर नाक और कान अलग अलग
सभी के अलग हैं शरीर
सबकी अपनी तकदीर और तब्दीर
पैरों और हाथों के निशान एक नहीं होते
यह सच जानने और समझने वाले ही
जिंदगी में अमन से रह पाते हैं।

...............................

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