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Sunday, November 1, 2009

कर्मजोग और धर्मजुद्ध-हिंदी व्यंग्य कविता (karmyog aur dharamuyddh-hindi vyangya kavita)

वह धर्मजुद्ध से करने निकले
जमाने भर की सफाई।
अमन का नारा लगाते किया शोर
शीतलता के लिये चहुं ओर आग लगाई।।

तलवार से लड़ते धर्मजुद्ध तो
धरा पर सिर कटकर गिरते हैं,
शब्द घौंपते है खंजर की तरह तो
भले इंसानों के दिल भी हिलते हैं,
एक पल भी मोहब्बत का नहीं जुटाते
कर लेते हैं धर्मजोद्धा नाम की कमाई।।

कहें दीपक बापू
इतिहास भरा पड़ा है
पहले से ही तयशुदा धर्मजुद्धों से
मिले जहां दो धर्मजोद्धा
बन जाते हैं इंसानियत के पुरोधा
बांटकर आपस में किताबें
कहीं शाब्दिक शास्त्रार्थ करते
कहीं तलवार से प्रहार करते
सारे जमाने को लोगों का सिर कट जाये
या दिल फट जाये
पर धर्मजोद्धाओं ने अपनी
जान कभी न गंवाई,
उनके जाल में फंसा वही
जिसकी खुद की मति काम न आई।
ओ भलेमानसों!
धर्मजुद्धों से कभी इंसानियत पैदा नहीं होती,
उनके बुरे नतीजों से
हर बार दुनियां रोती,
कर्मजोगी इसलिये देते हैं
हमेशा अहिंसा, प्रेम और दया की दुहाई।
धर्मजोद्धाओं के जुद्ध में
कभी न दिखलाओ अपनी दिलचस्पी
अपने कर्मजुद्ध का मोर्चा संभाले रहो
यह दुनियां कर्मजोगियों ने ही चलाई।

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कवि लेखक एंव संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
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1 comment:

Unknown said...

बहुत खूब !
वाह........

__शानदार भाषा में जानदार बात !

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