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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

Tuesday, May 17, 2011

अपने बदन उघाड़ डाले-हिन्दी व्यंग्य कविता (apane badan ughad dale-hindi vyangya kavita)

महल बनाने के लिये
उन्होंने कई घर उजाड़ डाले,
पैसा उनका भगवान है
उसकी बंदगी करते हुए
कई बंदों के घर उन्होंने उजाड़ डाले,
खौफ उनके पैसे का है
उनके खरीदे हथियारबंदों ने
दया के मंदिर ही उखाड़ डाले।

फिर भी नहीं की
अक्लमंदों ने भगवान मानकर
उनकी बंदगी
तो उन्होंने फरिश्ते का भेष उतारकर
शैतान की तरह डराने के लिये
ज़माने के सामने
अपने बदन उघाड़ डाले।
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संकलक लेखक  एवं संपादक-दीपक   'भारतदीप',ग्वालियर 
Editor and writer-Deepak  'Bharatdeep',Gwalior
http://deepkraj.blogspot.com
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