तुम सुनना नहीं चाहते, पर तुम्हारे कान बंद करने से
जमाने के लोगों की दर्दीली आवाज बंद नहीं हो जायेगी,
देखना नहीं चाहते किसी की पीड़ा, पर आंखें बंद करने से
लोगों के जिस्म की भूख, केवल वादों से नहीं मिट जायेगी,
चाहे जब छिप जाओ तुम वातानुकूलित कमरों में
बाहर की आग और आंधी दीवारें उनको भी कभी ढायेगी।
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न खेलो इस ज़माने से
लोगों को खिलौना मानकर,
दूसरों के दर्द को
अनदेखा न करो अच्छी तरह जानकर।
अपने हाथ से किये कसूरों पर
चाहे कितनी सफाई देते रहो
कोई यकीन नहीं करेगा,
भले ही डर से कोई
सामने नहीं कहेगा,
कभी न कभी न उठेगा
तुम्हारे किये कसूरों का तूफान
गिरा देगा तुम्हारे महल
तब रहो आराम से चादर तानकर।
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जमाने के लोगों की दर्दीली आवाज बंद नहीं हो जायेगी,
देखना नहीं चाहते किसी की पीड़ा, पर आंखें बंद करने से
लोगों के जिस्म की भूख, केवल वादों से नहीं मिट जायेगी,
चाहे जब छिप जाओ तुम वातानुकूलित कमरों में
बाहर की आग और आंधी दीवारें उनको भी कभी ढायेगी।
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न खेलो इस ज़माने से
लोगों को खिलौना मानकर,
दूसरों के दर्द को
अनदेखा न करो अच्छी तरह जानकर।
अपने हाथ से किये कसूरों पर
चाहे कितनी सफाई देते रहो
कोई यकीन नहीं करेगा,
भले ही डर से कोई
सामने नहीं कहेगा,
कभी न कभी न उठेगा
तुम्हारे किये कसूरों का तूफान
गिरा देगा तुम्हारे महल
तब रहो आराम से चादर तानकर।
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संकलक लेखक एवं संपादक-दीपक 'भारतदीप',ग्वालियर
Editor and writer-Deepak 'Bharatdeep',Gwalior
http://deepkraj.blogspot.com
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