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Saturday, January 28, 2012

किकेट मैच के लिये पांच गुना शक्ति वाला च्यवनप्राश लायें-लघु हिन्दी व्यंग्य (cricket match and chyavanprash-hindi vyangya or satire)

           च्यवनप्राश में तीन गुना शक्ति होती है-ऐसा कहना है बीसीसीआई क्रिकेट टीम के कप्तान का! अब इस तीन गुना शक्ति का पैमाना नापा जाये तो उसके सेवन से तीन दिन तक ही क्रिकेट खेलने लायक ही हो सकती है। गनीमत है कप्तान ने च्यवनप्राश के विज्ञापन में यह नहीं कहा कि इस च्यवनप्राश के सेवन से पांच गुना शक्ति मिलती है। वरना कंपनी पर उपभोक्ता फोरम में मुकदमा भी हो सकता था। फर्जी प्रचार से वस्तुऐं बेचना व्यापार की दृष्टि से अनुचित माना जाता है।
           बीसीसीआई की क्रिकेट टीम (indian cricket team and his australia tour)विदेश में पांच दिन के मैच खेलने  के लिये मैदान पर उतरती है पर तीन दिन में निपट जाती है। देश के शेर बाहर ढेर हो जाते हैं। सामने वाली टीम के तीन दिन में पांच विकेट जाते हैं और इनके बीस विकेट ढह जाते हैं। क्या करें? एक दिन खेलने की क्षमता है, च्यवनप्राश खाने पर तीन गुना ही शक्ति तो बढ़ती है। बाकी दो दिन कहां से दम दिखायें? इससे अच्छा है तो दो दिन मिलने पर तैराकी करें! क्लब में जायें। जश्न मनायें कि तीन दिन खेल लिये।
         च्यवनप्राश के नायक कप्तान ने तो यहां तक कह दिया है कि टेस्ट अब बंद होना चाहिये। उसकी खूब आलोचना हो रही है। हमारे समझ में नहीं आया कि उसका दोष क्या है? सब जानते हैं कि हमारे देश में शक्तिवर्द्धक के नाम पर च्यवनप्राश ही एक चीज है। अगर उसमें तीन गुना शक्ति आती है तो खिलाड़ी से अपेक्षा कैसे की जा सकती है कि पांच गुना शक्ति अर्जित करे। इधर बीसीसीआई की क्रिकेट टीम की पांच दिन नहीं चली तो देश में हायतौबा मच गया है। यह हायतौबा मचाने वाले वह पुराने क्रिकेटर हैं जो विज्ञापनों के बोझ तले नहीं दबे। उनको नहीं मालुम कि अधिक धन का बोझ उठाना भी हरेक आदमी के बूते का काम नहीं है। शुद्ध रूप से क्रिकेट एक व्यवसाय है। टीम में वही खिलाड़ी होते हैं जिनके पास कंपनियों के विज्ञापन है। कंपनियां ही इस खेल की असली स्वामी है सामने भले ही कोई भी चेहरा दिखता हो। यही कारण है कि कंपनियों के चहेते खिलाड़ियों को टीम से हटाना आसान नहीं है। पुराने हैं तो फिर सवाल ही नहीं है क्योंकि एक नहीं दस दस कंपनियों के विज्ञापनों के नायक होते हैं। मैच के दौरान वही विज्ञापन आते हैं। इन्हीं कपंनियों के बोर्ड मैदान पर दिखते हैं। क्रिकेट सभ्य लोगों का खेल है और सभ्य लोगों के व्यवसाय और खेल कंपनी के बोर्ड तले ही होते हैं।
          बीसीसीआई की क्रिकेट टीम के विदेश में लगातार आठ बार हारने पर देश भर में रोना रहा है पर वहां क्रिकेट खिलाड़ियों को इसकी परवाह नहीं होगी। उनके पास तो इतना समय भी नहीं होगा कि वह हार के बारे में सोचें। मैच के बचे दो दिन वह अपने व्यवसाय की कमाई का हिसाब किताब जांच रहे होंगे। नये विज्ञापनों का इंतजार कर रहे होंगे। कंपनियां भी आश्वस्त होंगी यह सोचकर कि कोई बात नहीं देश के शेर है फिर यहां करिश्मा दिखाकर लोगों का गम मिटा देंगे। वैसे ही कहा जाता है कि जनता की याद्दाश्त कमजोर होती है।
        बहरहाल कुछ लोग बीसीसीआई की क्रिकेट टीम की दुर्दशा के लिये पूरे संगठन को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं। हम इस राय के खिलाफ हैं। इससे अच्छा है तो यह है कि ऐसा च्यवनप्राश बनवाना चाहिए जो पांच गुना शक्ति दे सके। इसके लिये अपने यहां अनेक योग भोग चिकित्सक हैं उनकी सहायता ली जा सकती है। क्या इसकी दुगुनी खुराक लेकर छह गुना शक्ति पाई जा सकती है, इस विषय पर भी अनुंसधान करना चाहिए। बीसीसीआई की क्रिकेट टीम के कप्तान ने तो पूरी तरह से ईमानदारी से अपना काम किया है। उसने एक दिवसीय क्रिकेट में जमकर खेला है और च्यवनप्राश के सेवन से तीन गुना शक्ति प्राप्त कर तीन दिन तक पांच दिवसीय क्रिकेट में अपना किला लड़ाया है। अब यह अपने देश के आयुर्वेद विशेषज्ञों की गलती है कि उन्होंने पांच या छह गुना शक्ति वाला च्यवनप्राश नहीं बनाया जिसका विज्ञापन उसे दिया जाता। उससे आय पांच गुना होती तो खेलने का उत्साह भी उतना ही बढ़ता। जब नये संदर्भों में भारतीय अध्यात्म का नये तरह से विश्लेषण हो रहे हैं तो आयुर्वेद को भी इससे पीछे नहीं रहना चाहिए। बिचारे खिलाड़ियों को पांच या छह गुना शक्ति बढ़ाने वाला च्यवनप्राश नहीं दिया गया तो वह क्या करते? सो इस हार को भी व्यंग्य का हाजमोला खाकर हज़म कर लो।
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर

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