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Wednesday, August 6, 2014

इसलिये लोगों से सच छिपाते हैं-हिन्दी कविता(isliye logon se sach chhipate hain-hindi poem)



अपने साथ हुए हादसे
हंसी या सनसनी का कारण न बने
इसलिये लोगों से छिपाते हैं।

दिल से कोई हमदर्द बने
इसकी उम्मीद नहीं रहती
इसलिये अपने घाव का दर्द
मुस्कराहट के पीछे छिपाते हैं।

अपने हालातों से बेजार ज़माना
अफसाने ढूंढ रहा है
अपना गम भूलाने के लिये
न हो अपनी चर्चा चुटकुले की तरह
अपनी भूल इसलिये खुद से भी छिपाते हैं।

कहें दीपक बापू मकान मजबूत
मगर घर कमजोर हो गये हैं
कोई नहीं बन सकता पक्का हमराज
अपने दिल दिमाग में बसे सच
इसलिये दीवारों के पीछे छिपाते हैं।
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लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poem-Deepak Raj Kukreja ""Bharatdeep""
Gwalior, madhyapradesh
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर
poet, Editor and writer-Deepak  'Bharatdeep',Gwalior
http://deepkraj.blogspot.com
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