कोई इंसान वातानुकूल यंत्र की
ठंडी हवा लेते हुए
राजमहल में पल रहा है।
कोई सूरज की जलती किरणों में
रोटी के लिये सामान बेचता हुआ
सड़क पर आग में जल रहा है।
कोई समाजवाद का
झंडा उठाये अपने हाथ में
अपने कर्म से भाग्य बदल रहा है।
कोई पूंजीवाद के लिये
उदारीकरण का नारा लगाता
विकास के सांचे में
प्रतिभावान बुत की तरह ढल रहा है।
कहें दीपक बापू चमकीली रातों में
गुजारने की ख्वाहिशें
इंसानियत को अंधेरे में खड़ा कर देंगी
बढ़ती लालच की उष्मा में संसार का
पूरा दिल जल रहा है।
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लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poem-Deepak Raj Kukreja ""Bharatdeep""
Gwalior, madhyapradesh
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poem-Deepak Raj Kukreja ""Bharatdeep""
Gwalior, madhyapradesh
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर
poet, Editor and writer-Deepak 'Bharatdeep',Gwalior
http://deepkraj.blogspot.com
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