उनके घर क्या जायें
जहां दिल के
दरवाजे बंद हैं।
क्या आशा करें उनसे
जो मतलबपरस्ती के
हमेशा पाबंद हैं।
कहें दीपकबापू फिर भी
निराशा नहीं होती
कभी इस जहान के रवैये से
जहां दरियादिल बसते
चाहे संख्या में चंद हैं।
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जहां दिल के
दरवाजे बंद हैं।
क्या आशा करें उनसे
जो मतलबपरस्ती के
हमेशा पाबंद हैं।
कहें दीपकबापू फिर भी
निराशा नहीं होती
कभी इस जहान के रवैये से
जहां दरियादिल बसते
चाहे संख्या में चंद हैं।
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