सजे कक्ष में बैठे काजू के साथ जाम पीते, मजा लेकर सवाल पूछें गरीब कैसे जीते।
‘दीपकबापू’ अंग्रेजी से न शिक्षित रहे न गंवार, फ टे अर्थतंत्र में भ्रष्टाचार के पैबंद सीते।।
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माया के बंधक इंसानों पर भरोसा न करें, बेवफाई और दगा पर किसे कोसा न करें।
‘दीपकबापू’ फरिश्ते का मुखौट पहनते हैं, कहें अपने मन में शैतान पालापोसा न करें।।
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चौराहों पर वफादारी की दुकानें सजी हैं, दागदारों के घर चैर की बंसियां बजी हैं।
‘दीपकबापू’ अपने कंधे बनाते किसी की सीढ़िया, लात पड़ने से जमीन पर सजी हैं।।
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राम का नाम जपते ओटने लगे कपास, ऐसे भक्तों से क्या करें अपने भले की आस।
‘दीपकबापू’ जमा करते रहे बरसों ईंट पत्थर, ऊंची दीवारों के बीच बनाया अपना वास।।
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