जैसा मंजर सामने वैसा दिल होता,
इश्क देख मचले कत्ल से रोता।
कहें दीपकबापू रसों का स्वाद जानो
लगाओ हास्य रस में गोता।
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काम करो ढेर सवाल उठते हैं,
नाकामी पर बवाल उठते हैं।
कहें दीपकबापू चादर ढंककर सोयें
लालची लोग लोभ में लुटते हैं।
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बाज़ार नये नये सामाज से सजे हैं,
उधार पैसा ले लो मजे ही मजे हैं।
कहें दीपकबापू कर्ज में डूबी सोच
हाथ में मोबाईल पूछें कितने बजे हैं।
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अपने रास्ते चलना भी नहीं है तय,
आगे पीछे चलता हादसे का भय।
कहें दीपकबापू जमाना बदहवास
धूमिल चरित्र टूटी चाल की लय।
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हम न कभी उनसे पैसा मांगें न प्यार,
फिर भी दर पर जज़्बात के सौदागर आ ही जाते हैं।
न गुलाब न कमल उनके पास
सुगंध के वादे साथ लाते हैं।
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उपाधि बड़ी पर प्रतिभा पर शक है,
नकल से भी जो मिल रहा हक है।
कहें दीपकबापू अंग्रेजी पढ़े बेकार
उनकी दौड़ केवल नौकरी तक है।
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भ्रष्टाचार पर इतना ही झगड़ा हैं,
आपस में हिस्सा बांटने मुद्दा तगड़ा है।
कहें दीपकबापू वह ईमानदार दिखे
जिसने अकेले नियम को रगड़ा है।
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मत पूछना हिसाब में बच्चे हैं,
नारों के खिलाड़ी अंकों में कच्चे हैं।
कहें दीपकबापू डंडे थामे हैं वह
डर के बोलें सभी आप सच्चे हैं।
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