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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका
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Saturday, June 21, 2008
आता कहर भी टल जाता है-हिन्दी शायरी
यूं तो हम भी दोस्तों के लिये
अपनी जान देने के लिये खड़े थे
पर दोस्त भी हमें बचाने के लिये
कुर्बान होने पर अड़े थे
‘पहले मै’ ‘पहले मैं’ के झगड़े में
मुसीबत का काफिला गुजर गया
पता ही नहीं चला
एक दूसरे को कृतार्थ करने का वक्त यूं ही टला
जज्बात हों कुर्बानी के लिये दिल में तो
आता कहर भी टल जाता है
जिंदगी बहती है हवा में
झौंका भी आ जाये दिल में
दोस्त का साथ निभाने का
तो दुश्मन हो शहर तब भी डर जाता है
बुरे वक्त में तकलीफ का दर्द भी कम जाता है
इसी सोच के साथ दोस्त और हम वहां खड़े थे
...............................
एक सपना लेकर
सभी लोग आते हैं सामने
दूर कहीं दिखाते हैं सोने-चांदी से बना सिंहासन
कहते हैं
‘तुम उस पर बैठ सकते हो
और कर सकते हो दुनियां पर शासन
उठाकर देखता हूं दृष्टि
दिखती है सुनसान सारी सृष्टि
न कहीं सिंहासन दिखता है
न शासन होने के आसार
कहने वाले का कहना ही है व्यापार
वह दिखाते हैंे एक सपना
‘तुम हमारी बात मान लो
हमार उद्देश्य पूरा करने का ठान लो
देखो वह जगह जहां हम तुम्हें बिठायेंगे
वह बना है सोने चांदी का सिंहासन’
उनको देता हूं अपने पसीने का दान
उनके दिखाये भ्रमों का नहीं
रहने देता अपने मन में निशान
मतलब निकल जाने के बाद
वह मुझसे नजरें फेरें
मैं पहले ही पीठ दिखा देता हूं
मुझे पता है
अब नहीं दिखाई देगा भ्रम का सिंहासन
जिस पर बैठा हूं वही रहेगा मेरा आसन
..........................
दीपक भारतदीप
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2 comments:
सुंदर
पहले मै’ ‘पहले मैं’ के झगड़े में
मुसीबत का काफिला गुजर गया
पता ही नहीं चला
एक दूसरे को कृतार्थ करने का वक्त यूं ही टला
जज्बात हों कुर्बानी के लिये दिल में तो
आता कहर भी टल जाता है
अच्छा है ..
bhut hi bhavnatmak rachana.
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