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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

Tuesday, February 3, 2009

शायरी का पोस्टमार्टम-लघु व्यंग

सड़क पर रोज लड़का उस लड़की को देखता था। बात करने की हिम्मत जुटा नहीं पाता था। आखिर उसने अपने मित्र से पूछकर एक रास्ता निकाला। एक बच्चे को एक कागज पकड़+ा दिया और उसे चाकलेट का लालच देकर उसे उस लड़की को देने के लिये कहा।

बच्चे ने वह कागज लिया और उस लड़की को पकड़ाते हुए लड़के की तरफ इशारा करते हुए कहा-‘उसने दिया है।’
लड़की ने उस बच्चे के हाथ से वह कागज ले लिया और घूरकर उस लड़के को देखने लगी। उसे हाथ में आते ही लड़का वहां से खिसक लिया। लड़के ने उसमें लिखा था कि ‘मैं तुम्हें बहुत मोहब्बत करता हूं। तुम्हारी वजह से मेरी रात की नींद और दिन का चैन हराम हो गया है। मैं तो बस एक ही बात कहना हूं कि
चांदनी चांद से होती है सितारों से नहीं
मोहब्बत एक से होती है हजारों से नहीं

तुम्हारा बस तुम्हारा
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लड़की ने उसे पढ़ा और अगले दिन रास्ते से अपने मंगेतर को साथ लेकर निकली और उस लड़के के पास गयी और एक कागज का टुकड़ा उसके हाथ में थमा दिया
उसमें लिखा था कि
तुम भी किस जमाने में रह रहे हो। तुम्हारा यह पत्र मैंने अपने मंगेतर को दिखाया जो पोस्टमार्टम करता है। उसने तुम्हारी शायरी का पोस्टमार्टम कुछ इस तरह किया है।
न चांद में होती है न सितारों में होती है
रौशनी उनमें तो सूरज की आग से ही होती है
आदमी चाहे चेहरे बदल कर रोज करे
पर एक बार में मोहब्बत तो बस एक से ही हेाती है

याद रखना मेरे साथ मंगेतर था। इस बार वह खामोश रहा अगली बार वह जवाब लिख कर लायेगा। वह पुरानी शायरियों का पोस्टमार्टम करता है।
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दीपक भारतदीप की शब्दयोग पत्रिका पर लिख गया यह पाठ मौलिक एवं अप्रकाशित है। इसके कहीं अन्य प्रकाश की अनुमति नहीं है।
कवि एंव संपादक-दीपक भारतदीप

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1 comment:

रंजना said...

ha ha ha...bahut badhiya...nahle par dahla.

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