‘ बहुत कोशिश पर भी इतने दिनों में
अपने बेटे की
शादी नहीं करवा पाये,
कमाता कौड़ी भी नहीं है
पर कमाऊ दिखाने के लिये
अपने बैंक खाते भी उसके नाम करवाये।
जानने वाले लोग पोल खाते हैं
इसलिये क्यों न अब उसके लिये स्वयंवर
आयोजित किया जाये।
नयी परंपरा है
लोग दौड़े चले आयेंगे
हो सकता है कि काम बन जाये।’
पत्नी ने कहा
‘हां, अच्छा है
अपना बेटा भी भगवान राम की तरह ही गुणवान है,
भले ही कमाता नहीं पर अपनी शान है,
सीता जैसी बहू मिल जाये
तो जीवन धन्य हो जाये,
पर समधी भी जनक जैसा हो,
दहेज देने में झिझके नहीं, ऐसा हो,
पर किसी पर यकीन नहीं करना
अपने कार्यक्रम में ऐसे ही लोगों को
आमंत्रित करना जिनके पास माल हो,
ऐसा न कि बाद में बुरा हाल हो,
घुसने से पहले सभी को
अपनी मांग बता देना,
उनकी हालत भी पता कर लेना,
सभी खोये रहें इस नयी स्वयंवर परंपरा में
पर तुम कम दहेज पर सहमत न होना
कोई कितना भी समझाये।’
कवि लेखक एंव संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
------------------------
दीपक भारतदीप की शब्दयोग पत्रिका पर लिख गया यह पाठ मौलिक एवं अप्रकाशित है। इसके कहीं अन्य प्रकाश की अनुमति नहीं है।
अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द पत्रिका
2.अनंत शब्दयोग
3.दीपक भारतदीप की शब्दयोग-पत्रिका
4.दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान पत्रिका
No comments:
Post a Comment