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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

Tuesday, November 16, 2010

ब्लागर की आभासी दुनियां-हिन्दी हास्य व्यंग्य (blogger ki aabhasi duniya-hindi hasya vyangya)

दो हिन्दी ब्लाग लेखक आपस में मिले। बुलाया तो तीसरा भी था मगर वह छद्म नाम के साथ लिखने और चेहरा छिपाने वाला था। दोनों का सम्मेलन शुरु हुआ।
एक ब्लाग लेखक ने कहा-‘यार, टीवी और समाचार पत्र पत्रिकाओं की तरह कुछ सनसनीखेज लिखो।’
दूसरे ने कहा-‘पर यहां अपने को पढ़ता कौन है, इस तकनीकी युग में सभी मौन हैं।’
पहले ब्लाग लेखक ने कहा-‘ऐसी कवितायें मुझे मत सुनाओ। अच्छी छापो भले ही कहीं से चुराओ।’
दूसरे ने कहा-‘जब भी लिखूंगा, मौलिक ही दिखूंगा।’
पहले ने कहा-‘छोड़ो यार, यह कव्वाली टाईप बहस लेकर बैठ गये। अब हम कोई अच्छा सब्जेक्ट चुने और उस पर लिखें।’
दूसरे ने कहा-‘यह हिन्दी अखबारनुमा भाषा मेरे सामने मत कहो। इसी भाषा से बचने के लिये यहां लिखता हूं। भले ही हास्य कविता लिखते जोकर जैसा दिखता हूं। तुम सीधे कहो कि हमें कोई अच्छा, शुद्ध और पवित्र विषय चुनना है।’
पहले ने कहा-‘यार, तुम यहां अपना अध्यात्मिकनुमा प्रवचन मत दो। सीधी सी बात यह है कि हम कोई विषय चुने। जैसे तुम घोटालों के विषय पर लिखो तो मैं यौन जैसे लोकप्रिय विषय पर लिखता हूं।
दूसरे ने कहा-‘मुझे फंसा रहे हो। घोटालों पर लिखने से तो मेरे बहुत सारे दुश्मन बन जायेंगे। मुझे यौन पर लिखने दो, इस बुढ़ापे में कुछ जवान दिखने दो।
पहले ने कहा-‘ठीक है, मैं घोटालों पर लिखूंगा और तुम यौन पर लिखना।
दोनों के बीच शिखर सम्मेलन समाप्त हुआ और घोषणा पर सहमति हो गयी।
दोनों ने अलग अलग राह पकड़ी। छिपकर देखने वाले तीसरे ब्लाग लेखक भी जाने वाला था पर अचानक उसे विचार आया कि जब यहां आया हूं तो बिना कारिस्तानी के कैसे चला जाऊं।
उसने दूसरे ब्लाग लेखक को जाकर रोका और कहा-‘मित्र, मेरा नाम और ब्लाग का पता मत पूछना क्योंकि इतने नामों से इतने ब्लाग पर लिखता हूं कि मुझे भी याद नहीं रहते। फिर कभी कभी चोरी कर भी छाप देता हूं इसलिये शंका है कि कहीं तुम्हारी रचना भी न चुराई हो।’
दूसरा ब्लाग लेखक उसकी बात सुनकर अपनी कमीज की आस्तीन चढ़ाने लगा और बोला-‘यह विवरण मत दो। यकीनन तुम ही वह चोर हो जिसने मेरी बैचेन रहने की आदत चुरा ली थी। आज तुम्हारे गाल पर अपना पंजा और पीठ पर घूंसा टंकित करता हूं।’
वह तीसरे ब्लाग लेखक की तरफ बढ़ा तो वह बोला-‘यार, यह क्या मामूली लोगों की तरह लड़ते हो। मैं पैदाइशी बैचने रहने की आदत का मालिक हूं। तुम्हारी बैचेन रहने की आदत कैसे चुरा सकता हूं।’
दूसरा ब्लाग लेखक बोला-‘अबे, वह मेरी कविता का शीर्षक है।’
तीसरा ब्लाग लेखक बोला-‘नहीं, मैने वह रचना नहीं चुराई। पहले मेरी बात सुना यह जो तुम्हारे साथ पहला ब्लाग लेखक था न! उसने चुराई है। दरअसल वह बहुत चालाक है। वह घोटालों पर खुद लिखना चाहता था इसलिये पहने तुम्हें उसका प्रस्ताव दिया उसे मालुम था कि ब्लाग लेखक होने के कारण तुम उल्टी बात करोगे। घोटालों पर वह क्या लिखेगा? जहां भी कमीशन दिखेगा, वह जाकर बिकेगा। तुम यौन पर लिखोगे, आवारा जैसे दिखोगे। अभी हास्य कविताओं में जोकराई करते हुए ठीक लगते हो पर जब आवारा जैसी छवि बन जायेगी तब तुम्हारी अपनी इज्जत से ही ठन जायेगी।’
दूसरा ब्लाग लेखक बोला-‘अबे कमबख्त, मेरी नकल करेगा। इस तुकबंदी पर मेरा सर्वाधिकार सुरक्षित है।’
तीसरा ब्लाग लेखक बोला-‘अच्छा ठीक है, मैं नहीं बोलूंगा। हां, इस पहले ब्लाग लेखक से बचकर रहना। तुम घोटालों पर लिखो उसे यौन पर लिखने के लिये कहो।’
दूसरा ब्लाग लेखक बोला-‘पर मुझे लिखना नहीं आयेगा।’
तीसरा बोला-‘उसकी चिंता मत करो। इस मामले में मैं उस्ताद हूं। कहीं से भी उठाकर तुम्हारे पास ईमेल से भेज दूंगा।’
दूसरा बोला-‘पर यह शिखर सहमति जो हुई उसका क्या करें?’
तीसरा बोला-‘काहेकी शिखर सहमति? ऐसी पता नहीं मैं कितनी कर तोड़ चुका हूं।’
दूसरा ब्लाग लेखक बोला-‘ठीक है, वैसे तुम्हारी बात यकीन करने लायक है। उसने मेरी बैचेन रहने की आदत चुराई है उसका बदला लेने का यही अवसर है।’
तीसरा ब्लाग लेखक बोला-‘हां, अब हुई न यह बात!
दूसरे ब्लाग लेखक ने कहा-‘ठीक है, मैं तुम्हारी बात मान गया। आज से तुम और मैं दोस्त हुए। अब तुम अपना असली नाम और ब्लाग बता दो।’
दूसरा ब्लाग अचकचाकर उसे देखने लगा और फिर बोला-‘अरे बाप रे, मैं भी अपना असली नाम भूल गया। अब तो मुझे अपने किसी ब्लाग का नाम तक याद नहीं आ रहा। जाकर घर पर कंप्यूटर खोलकर सबसे पहले अपना अस्तित्व ढूंढना पड़ेगा। वैसे इस इंटरनेट की आभासी दुनियां में सच किसी से पूछो न तो अच्छा ही है क्योंकि लोग अपना चेहरा तक भूल जाते हैं’
ऐसा कहकर वह गायब हो गया। अब दूसरे ब्लाग लेखक की भी स्थिति अज़ीब हो गयी। वह सोचने लगा कि वाकई तीसरा ब्लाग लेखक वहां आया था या केवल आभास था।
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कवि लेखक एंव संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
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दीपक भारतदीप की शब्दयोग पत्रिका पर लिख गया यह पाठ मौलिक एवं अप्रकाशित है। इसके कहीं अन्य प्रकाश की अनुमति नहीं है।
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