मगर देखने वाला कौन है?
सुना है स्तंभों की तरह खड़े थे
बड़े बड़े ओहदे
जिन पर पहरेदार भी जमे थे,
मगर शहर का धणीसांईं कौन है,
इस पर हर आदमी मौन हैं।
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कोई नहीं धणीसांईं
इसलिये ओहदेदारों को ही
मान लेते हैं,
लुटता है शहर,
आतंक बरसाता है कहर,
इसे सर्वशक्तिमान की इच्छा
समझकर
उसकी लीला जान लेते हैं।
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कवि लेखक एंव संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
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