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Sunday, September 25, 2016

देवताओं जैसे सुंदर वस्त्र पहने हैं, असुरों की माया के क्या कहने हैं-दीपकबापूवाणी (Devtaon Jaise Vastra pahane hain-DeepakBapuwani


महल में आकर आदमी फूल जाता, छोटे मकान का दर्द भूल जाता।
‘दीपकबापू’ न करें कभी शिकायत,  माया मद मे हर दिल झूल जाता।।
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अहंकारी को नम्रता क्या सिखायें, जड़ को कौनसा मार्ग दिखायें।
‘दीपकबापू’ स्वार्थ के कूंऐं में गिरे, नाम अपना परमार्थी लिखायें।।
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परायी पीड़ा के घाव सामने लाते, अपने ही दिल का दुुुुुुःख बताते।
‘दीपकबापू’ नहीं झांकते घर से बाहर, वाणी विलास में सुख जताते।।
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देवताओं जैसे सुंदर वस्त्र पहने हैं, असुरों की माया के क्या कहने हैं।
‘दीपकबापू’ किस किससे लड़ते रहें, मान लो भाग्य में दर्द भी सहने हैं।
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समझें नहीं इशारों में कही बात, अहंकार से करें स्वयं पर घात।
‘दीपकबापू’ नासमझों की यारी करते, चैन न पायें दिन हो या रात।।
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उनके लिये धूप में चले पर उन्होंने धन्यवाद नहीं दिया।
निहारतेे उनकी राह जिसका रुख उन्होंने फिर नहीं किया।।
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कितना अजीब है दिल कुछ सोचता जुबान कुछ और बोलती है।
कितने छिपायेगा कोई अपने राज आंखें भी नीयत खोलती हैं।
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चिंतायें बेचते महंगे दाम-हिन्दी कविता
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सोचते सभी
मगर कर नहीं पाते
भलाई का काम।

कहते सभी निंदा स्तुति
मगर कर नहीं पाते
बढ़ाई का काम।

कहे दीपकबापू चिंत्तन से
जी चुराते मिल जाते 
हर जगह लोग
चिंतायें बेचते महंगे दाम
करते लड़ाई का काम।
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