अपने कुछ लोग खो गए
इस शहर की भीड़ में
उनके पते लिखे हैं
बहुत से कागजों पर
जो पड़े हैं फाईलों की भीड़ में
किसे ढूंढें और क्यों
ढेर सारे सवाल आते हैं सामने
किसी से मिलने की वजह
चाहिए हमको
जाएं मिलने तो वह भी
उठाते आने की वजह के प्रश्न सामने
समय निकला जाता है
जूझते हुए प्रश्नों की भीड़ में
अपने ही जाल में उलझे लोग
फुरसत नहीं पाते
जीवन की इस भागमभाग से
ओढ़ लिया है दिमाग में तनाव
कब ले सकते हैं दिल से काम
नहीं आता समझ में
खोये हुए है लोग
अपनी समस्याओं की भीड़ में
हम भीड़ में कहाँ तलाशें उनको
जो छोड़ नहीं पाते उसको
डरते हैं अपनी तन्हाई से
जीतने की क्या सोचेंगे वह
हारे हैं हर पल जिन्दगी के लड़ाई से
अकेले में अपने पहचाने का डर
उनके मन में रहता है
खोए रहना चाहते हैं भीड़ में
अकेले ही खडे देख रहे हैं उनको
वहाँ हाँफते और कांपते
जबरन हंसने की कोशिश करते हुए
कभी हमारे तन्हाई पर भी
हँसते हैं दूसरों के साथ
दूर रखते हैं हमारे से अपना हाथ
पर हम भी हँसते हैं
साथी है हमारी यह तन्हाई
भला कौन खुश रहा है इस भीड़ में
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Sunday, February 10, 2008
भला कौन खुश रहा है इस भीड़ में-कविता साहित्य
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2 comments:
आपाधापी भरी ज़िन्दगी में तनाव ही इतना हावी रहता है कि हम अपने काम के अलावा कुछ सोच ही नहीं पाते हैँ। किसी के पास जाने का हमारे पास समय नहीं होता और कोई अगर हमसे मिलने आ जाए तो हम उसके आने की वजह ढूंढते हैँ।....
जिन्दगी की भागमभाग में संगी साथी कब छूट गए...कुछ खबर नहीं...
कहने को तो बहुत कुछ दिया है ऊपरवाले ने लेकिन कई बार लगता है कि हम यूँ ही बेमतलब... बेवजह जिए चले जा रहे हैँ।
haan yahii hain zindagii ke lamhe... good explanation.
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