राम बुलावा भेजिया, दिया कबीरा रोय
जो सुख साधू संग में, सो वैकुण्ठ में न होय
संत शिरोमणि कबीर दास जी कहते हैं की जब मेरे को लेन हेतु रामजी ने बुलावा भेजा तो रोना आ गया क्योंकि जो सुख साधू और संतों की संगत से जो सुख मिलता है वह भला वैकुण्ठ में कहाँ मिलता है।
लुट सके तो लूट ले, संत नाम की लूट
पीछे फिर पछताओगे, प्राण जाहिं जब छूट
संत कबीरदास जी कहते हैं की भगवान के नाम का स्मरण कर ले नहीं तो समय व्यतीत हो जाने पर पश्चाताप करने से कुछ लाभ नहीं है।
जो सुख साधू संग में, सो वैकुण्ठ में न होय
संत शिरोमणि कबीर दास जी कहते हैं की जब मेरे को लेन हेतु रामजी ने बुलावा भेजा तो रोना आ गया क्योंकि जो सुख साधू और संतों की संगत से जो सुख मिलता है वह भला वैकुण्ठ में कहाँ मिलता है।
लुट सके तो लूट ले, संत नाम की लूट
पीछे फिर पछताओगे, प्राण जाहिं जब छूट
संत कबीरदास जी कहते हैं की भगवान के नाम का स्मरण कर ले नहीं तो समय व्यतीत हो जाने पर पश्चाताप करने से कुछ लाभ नहीं है।
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