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Sunday, March 9, 2008

संत कबीर वाणी:निन्दकों तुम जुग-जुग जियो

निन्दक हमरा जनि मरो, जीवो आदि जुगादि
कबीर सतगुरु पाइया, निन्दक के परसादि


संत शिरोमणि कबीरदास जी कहते हैं कि हमारे निंदक तुम कभी मत मरो बल्कि युगों तक जियो क्योंकि तुम्हारे प्रसाद से ही हम सतगुरु को प्राप्त कर सकेंगे।

वर्तमान संदर्भ में व्याख्या-अक्सर कोई हमारी आलोचना करता है तो हम उत्तेजित हो जाते हैं और इतना तनाव ओढ़ लेते हैं कि अपने काम में गलतिया करते जाते हैं। हमें अपने आलोचकों से सीखना चाहिए। वह जो बात हमसे कहते हैं उसका सामने भले ही प्रतिवाद करें पर अकेले में आत्मचिन्तन अवश्य जरूर करना चाहिऐ। निन्दकों ने हमारा जो दुर्गुण हमें बताया हो उसे अपने अन्दर से हटाने की कोशिश करना चाहिए।

भक्ति मार्ग पर चलते हुए तो ऐसी आलोचना का सामना करना ही पड़ता है कि ''ढोंग कर रहे हो', 'तुम्हें तो और कोई काम ही नहीं है', और 'ऐसे भक्ति नहीं होती, हमारी तरह करो' आदि-आदि। कई बार तो लोग हंसी उडाते हैं। ऐसे में हमें आत्मचिन्त्तन जरूर करना चाहिए कि क्या वाकई उनका कहाँ सही है और क्या हमारा मार्ग गलत है। अगर नहीं तो सतत उस पर चलते हुए और अधिक मन लगाकर करना चाहिए।
इसी तरह अगर हम कोई काम कर रहे हैं और कोई आलोचक उसमें दोष निकालता है हमें उसे सुनना चाहिऐ और अपना दोष दूर करने का प्रयास करना चाहिए। इसके अलावा कोई हमारी कार्य प्रणाली में दोष बताता है हो तो उस पर सोचना चाहिए। हो सकता है कि उसमें बदलाव से अधिक सफलता मिले। कुल मिलाकर निन्दकों से विचलित नहीं होना चाहिए। कम से कम वह उन चाटुकारों से अच्छे होते हैं जो झूठी प्रशंसा कर हमें किसी बदलाव के लिए प्रेरित नहीं करते।

2 comments:

परमजीत सिहँ बाली said...

बिल्कुल सही प्रस्तुति।

Udan Tashtari said...

सही कह रहे हैं..निन्दक नियरे राखिये...

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