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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

Sunday, April 6, 2008

कोई दूसरा लगता हैं शख्स-हिन्दी क्षणिकाएँ

कभी किसी की बरात में
तो कभी किसी की शवयात्रा में
और कभी किसी की तबीयत का
हाल जानने अस्पताल में
जहां कदम ले जायें
वहीं हम भी चले जाते हैं
पर जानते हैं कि
जहां खुशियां करती बसेरा
वहीं गम भी आशियाना बनाते है
किसी की खुशी में पागल न हो
किसी का गम देख बदहाल न हो
इसलिये कहीं दिल साथ नहीं ले जाते हैं
...............................................................

कभी-कभी वह दिन
हमें याद आते हैं
जब ढलने को होता सूरज
लहराती थी शाम
हमारे हाथ में होता था जाम
हम थे नशे के गुलाम
अब भी तन्हाई में आती है याद
अपना ही देखते अक्स
कोई दूसरा लगता है शख्स
जिसके हाथ में होता था जाम
जो होता पियक्कड़ और बदनाम
फिर सोचते उससे हमें क्या काम

1 comment:

राज भाटिय़ा said...

किसी की खुशी में पागल न हो
किसी का गम देख बदहाल न हो
इसलिये कहीं दिल साथ नहीं ले जाते हैं
दीपक भाई कविता के रुप मे पुरी जिन्दगी का खुलासा कर दिया आप ने ओर यह तीन पक्तिया उस खुलासे का निचोड हे धन्यवाद

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