कल से क्रिकेट का कोई टूर्नामेंट शुरू हो रहा है अखबारों और टीवी पर उसका धूंआधार प्रचार होते देख एसा लगा कि क्रिकेट अब मुझसे अलविदा कह रही है।
पिछली बार इन्हीं दिनों ं मैने विश्व कप में भारत के हारने पर एक कविता लिखी थी अलविदा किकेट। उस समय सादा हिंदी फोंट में होने के कारण कोई उसे पढ़ नहीं पाया बाद में मैने इसे स्कैन कर एक ब्लाग रखा तो एक साथी ब्लागर ने लिखा कि ‘‘क्रिकेट तो मजे के लिये देखना चाहिए। कोई भी टीम हो हमें तो खेल का आनंद उठाना चाहिए। उन्होंने सभी टीमों के नाम भी गिनाए और उनमें एक भी टीम इसमें नहीं है। अगर मेरा वह यह लेख पढ़ें और उन्हें याद आये तो वह भी मानेंगे कि इस खेल से वह अब अपने को जोड़ नहीं पायेंगे।
एक अरब से अधिक आबादी वाले इस देश में बच्चा-बूढ़ा-जवान, स्त्री-पुरुष, डाक्टर-मरीज, प्रेमी-प्रेमिका, अमीर-गरीब, और सज्जन-दुर्जन सबके लिये यह खेल एक जुनून था तो केवल इसलिये कि कहीं न कहीं इसके साथ खेलने वाली टीमों के साथ उनका भावनात्मक लगाव था पर लगता है कि वह खत्म हो गया है। ऐसा लगता है कि क्रिकेट की यह प्रतियोगिता मेरी हास्य कविता का जवाब हो जैस कह रही हो ‘अलविदा प्यारे अब नहीं हम तुम्हारे’।
कोई आठ टीमें हैं जिनके नाम मैंने पढ़ें। उनमें से किसी के साथ मेरा तो क्या उन शहरों या प्रदेशें लोगों के जज्वात भी नही जुड़ सकते जिनके नाम पर यह टीमें हैं। क्या वहां लोग संवेदनहीन है जो उनको यह आभास नहीं होगा कि देश के क्रिकेट प्रेमियों का एक बहुत बड़ा हिस्सा इससे अलग हो गया है। कहते हैं कि क्रिकेट ने इस देश को एक किया और विभाजित क्रिकेट को देखकर क्या कहें?
लोगों के पास बहुत सारे संचार और प्रचार माध्यम हैं और सब जानने लगे हैं। लोगों को एक रखने के लिये वैसे भी क्रिकेट की जरूरत नहीं थी पर जिस तरह यह प्रतियोगिता शुरू हो रही है और उसमें जबरन लोगों की दिलचस्पी पैदा करने की जो कोशिश हो रही है वह विचारणीय है। अखबारों ने लिखा है कि इस पर करोड़ों रुपये को खेल होगा। कहने की जरूरत नहीं है कि इसमें वह सब कुछ खुलेआम होगा जो पहले पर्दे के पीछे होता था। अब आम क्रिकेट प्रेमी को किसी प्रकार की शिकायत का अधिकार नहीं है क्योंकि कौन देश के नाम उपयोग कर रहा है? पहले जिसे देखो वही टीम इंडिया की हार को भी शक से देख रहा है तो जीत को भी। तमाम चेहरे जो चमके उन पर लोग कालिख के निशान देखने लगते। अब उनका यह अधिकार नहीं है। शुद्ध रूप से मनोरंजन के लिये यह सब हो रहा है। अब यह फिल्म है या क्रिकेट हमारे पूछने या जानने का हक नहीं है।
इसके बावजूद कुछ ऐसे मुद्दे हैं जिनकी तरफ ध्यान देना जरूरी है। इसके सामान्य क्रिकेट पर क्या प्रभाव होंगे? चाहे कितना भी किया जाये अगर राष्ट्रीय भावनायें नहीं जुड़ने से आम क्रिकेट प्रेमी तो इससे दूर ही होगा तो फिर इसके साथ कौन जुड़ेगा? इसका अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर खेले जाने वाले मैचों पर क्या अच्छा या बुरा प्रभाव होगा? कहने को कहते हैं कि निजी क्षेत्र तो जनता की मांग के अनुसार काम करता है पर अब सारी शक्तियां निजी क्षेत्र के हाथ में है तो वह अपने अनुसार लोगों की मांग निर्मित करना चाहता है। देखा जाये तो टीवी चैनलो और अखबारों में इसके प्रचार का लोगों पर कोई अधिक प्रभाव परिलक्षित नहीं हो रहा तो क्या वह इसकी खबरों को प्रमुखता देकर इसके लिये लोग जुटाने के प्रयास में लगे रहेंगे? हर क्रिकेट प्रेमी के दिमाग में एक शब्द था ‘भारत’ जिससे क्रिकेट को भाव का विस्तार होता था तो क्या नयी क्रिकेट के पास ऐसा कोई अन्य शब्द है जो फिर उसे विस्तार दे।
बीस ओवर की प्रतियोगिता में भारत की जीत के बाद मेरा मन कुछ देर के लिये क्रिकेट की तरफ गया था पर अब फिर वही हालत हो गयी। कल शुरू होने वाली प्रतियोगिता के लिये जो टीमों की सूची देखी तो मैं अपने आपसे पूछ रहा था ‘‘यह कौनसी क्रिकेट’’। आखिर कौन लोग इसे देखकर आनंद उठायेंगे। इस देश में आमतौर से लोग कहते है कि‘‘हमारे पास टाईम नहीं है’’पर क्रिकेट के लिए उनके पास टाईम और पैसे आ जाते हैं। मतलब यह कि कुछ लोगों के पास पैसे हैं पर उसके खर्च करने और टाईम पास करने के लिए कोई बहाना नहीं है और उनके लिए यह एक स्वर्णिम अवसर होगा।
जो मैच टीवी पर दिखता है उसको देखने के लिये भूखे प्यासे मैदान पर पहुंच जाते है ऐसे लोगों की इस देश में कमी नहीं है। जहां तक उनकी क्रिकेट में समझ का सवाल है तो अधिकतर टीवी पर अपनी शक्ल दिखाते हुए यह कहते हैं कि हम अपने हीरो को देखने आये थे। अब वहां जाकर कोई पूछ नहीं सकते कि क्या वह तुम को टीवी पर नहीं दिखाई देता।
खैर, कुल मिलाकर क्रिकेट अब खेल नहीं मनोरंजन बन गया है यह अलग बात है कि हम जैसे ब्लागर के लिये तो ऐसे मैचों से अच्छा यही होगा कि कोई फालतू कविता लिखकर मजा ले लें आखिर छहः सो रुपया हम इस पर खर्च कर रहे है।
यह अव्यवसायिक ब्लॉग/पत्रिका है तथा इसमें लेखक की मौलिक एवं स्वरचित रचनाएं प्रकाशित है. इन रचनाओं को अन्य कहीं प्रकाशन के लिए पूर्व अनुमति लेना जरूरी है. ब्लॉग लेखकों को यह ब्लॉग लिंक करने की अनुमति है पर अन्य व्यवसायिक प्रकाशनों को यहाँ प्रकाशित रचनाओं के लिए पूर्व सूचना देकर अनुमति लेना आवश्यक है. लेखक संपादक-दीपक भारतदीप,ग्वालियर
समस्त ब्लॉग/पत्रिका का संकलन यहाँ पढें-
पाठकों ने सतत अपनी टिप्पणियों में यह बात लिखी है कि आपके अनेक पत्रिका/ब्लॉग हैं, इसलिए आपका नया पाठ ढूँढने में कठिनाई होती है. उनकी परेशानी को दृष्टिगत रखते हुए इस लेखक द्वारा अपने समस्त ब्लॉग/पत्रिकाओं का एक निजी संग्रहक बनाया गया है हिंद केसरी पत्रिका. अत: नियमित पाठक चाहें तो इस ब्लॉग संग्रहक का पता नोट कर लें. यहाँ नए पाठ वाला ब्लॉग सबसे ऊपर दिखाई देगा. इसके अलावा समस्त ब्लॉग/पत्रिका यहाँ एक साथ दिखाई देंगी.
दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका
दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका
Thursday, April 17, 2008
यह कौनसी क्रिकेट-हास्य व्यंग्य
Labels:
abhivyakti,
bharatdeep,
cricket,
hasya-vyangy,
hindi,
मस्तराम,
सन्देश,
संपादकीय,
समाज
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
हिंदी मित्र पत्रिका
यह ब्लाग/पत्रिका हिंदी मित्र पत्रिका अनेक ब्लाग का संकलक/संग्रहक है। जिन पाठकों को एक साथ अनेक विषयों पर पढ़ने की इच्छा है, वह यहां क्लिक करें। इसके अलावा जिन मित्रों को अपने ब्लाग यहां दिखाने हैं वह अपने ब्लाग यहां जोड़ सकते हैं।
लेखक संपादक दीपक भारतदीप, ग्वालियर
लोकप्रिय पत्रिकायें
विशिष्ट पत्रिकाएँ
-
मत का अधिकार था भगवान हुए मतदाता-दीपकबापूवाणी (Matadata ka Adhikar thaa Bhagwan hue Matdata-DeepakBapuwani) - *---ज़माने पर सवाल पर सवालसभी उठाते, अपने बारे में कोई पूछे झूठे जवाब जुटाते।‘दीपकबापू’ झांक रहे सभी दूसरे के घरों में, गैर के दर्द ...5 years ago
-
भ्रमजाल फैलाकर सिंहासन पा जाते-दीपकबापूवाणी (bhramjal Failakar singhasan paa jaate-DeepakbapuWani - *छोड़ चुके हम सब चाहत,* *मजबूरी से न समझना आहत।* *कहें दीपकबापू खुश होंगे हम* *ढूंढ लो अपने लिये तुम राहत।* *----* *बुझे मन से न बात करो* *कभी दिल से भी हंसा...5 years ago
-
राम का नाम लेते हुए महलों में कदम जमा लिये-दीपक बापू कहिन (ram nam japte mahalon mein kadam jama dtla-DeepakBapukahin) - *जिसमें थक जायें वह भक्ति नहीं है* *आंसुओं में कोई शक्ति नहीं है।* *कहें दीपकबापू मन के वीर वह* *जिनमें कोई आसक्ति नहीं है।* *---* *सड़क पर चलकर नहीं देखते...6 years ago
-
रंक का नाम जापते भी राजा बन जाते-दीपक बापू कहिन (Rank ka naam jaapte bhi raja ban jate-DeepakBapuKahin) - *रंक का नाम जापते भी राजा बन जाते, भलाई के दावे से ही मजे बन आते।* *‘दीपकबापू’ जाने राम करें सबका भला, ठगों के महल भी मुफ्त में तन जाते।।* *-----* *रुपये से...6 years ago
-
पश्चिमी दबाव में धर्म और नाम बदलने वाले धर्मनिरपेक्षता का नाटक करते रहेंगे-हिन्दी लेख (Convrted Hindu Now will Drama As Secularism Presure of West society-Hindi Article on Conversion of Religion) - हम पुराने भक्त हैं। चिंत्तक भी हैं। भक्तों का राजनीतिक तथा कथित सामाजिक संगठन के लोगों से संपर्क रहा है। यह अलग बात है ...6 years ago
1 comment:
Hello. This post is likeable, and your blog is very interesting, congratulations :-). I will add in my blogroll =). If possible gives a last there on my blog, it is about the Placa de Vídeo, I hope you enjoy. The address is http://placa-de-video.blogspot.com. A hug.
Post a Comment