बरसात की अंधेरी रात में
वह मिले और बिछड़े
तब सोचा था कि
चंद्रमा की रौशनी होने पर
हम उनको जरूर ढूंढ पायेंगे
देखा नहीं था उनका चेहरा
इसलिये जब भी चांद निकलता है
उसमें उनका चेहरा नजर आता है
इंतजार है अब इसका
कभी अंधरे में फिर टकरायेंगे
तभी कोई रिश्ता जोड़ पायेंगे
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दीपक भारतदीप
1 comment:
बहुत बढिया रचना है दीपक जी।
कभी अंधरे में फिर टकरायेंगे
तभी कोई रिश्ता जोड़ पायेंगे
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