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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

Monday, July 21, 2008

अपने अहसास अपने से छिपाते हो-हिंदी शायरी

इस भीड़ में तुम क्यों

अपनी आवाज जोड़ कर

शोर मचाते हो

लोगों के कान खुले लगते हैं

पर बंद पर्दे उनके तुम

अपनी आंखों से भला कहां देख पाते हो

कौन सुनेगा तुम्हारी कहानी

किसे तुम अपना दर्द सुनाते हो

सड़क पर जमा हों या महफिल में

लोग बोलने पर हैं आमादा

अपनी असलियत सब छिपा रहे हैं

भल तुम क्यों छिपाते हो

तुम्हें लगता है कोई देख रहा है

कोई तुम्हारी सुन रहा है

पर क्या तुम वही कर रहे हो

जिसकी उम्मीद दूसरों से कर रहे हो

भला क्यों अपने अहसास अपने से छिपाते हो
.........................................

दीपक भारतदीप लेखक संपादक

1 comment:

Udan Tashtari said...

वाह! बहुत खूब!

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