वह खा जाते
मतलब निकाल गया
कुछ इसने खाया तो कुछ उसने
खास आदमी के दरबारी खेल को
आम आदमी भला कहां समझ पाते
हर बार उनकी दरबार में
समूह में केक की तरह सज जाते
इशारा मिलते ही खुद ही
छूरी बनकर अपने टुकड़े किये जाते
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खास आदमी के
पद,पैसे और वैभव को देखकर
आम आदमी उनकी
अक्ल की तारीफ के पुल बांधे जाते
न हो जिनके पास वह
अक्ल होते हुए भी
अपने घर में ही बैल माने जाते
इसलिये अक्लमंद आम आदमी
खामोशी में अपने लिये अमन और चैन पाते
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दीपक भारतदीप की शब्दयोग पत्रिका पर लिख गया यह पाठ मौलिक एवं अप्रकाशित है। इसके कहीं अन्य प्रकाश की अनुमति नहीं है।
कवि एंव संपादक-दीपक भारतदीप
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लेखक संपादक-दीपक भारतदीप
1 comment:
खास आदमी के
पद,पैसे और वैभव को देखकर
आम आदमी उनकी
अक्ल की तारीफ के पुल बांधे जाते
न हो जिनके पास वह
अक्ल होते हुए भी
अपने घर में ही बैल माने जाते
इसलिये अक्लमंद आम आदमी
bahut sunder
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