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Wednesday, December 31, 2008

नहीं जानते कौन देवता कहां से आया-हास्य कविता

नववर्ष की पूर्व संध्या पर
फंदेबाज अग्रिम बधाई देने
घर आया और बोला
‘‘दीपक बापू, इधर कई बरसों से
सांताक्लाज का नाम बहुत सुनने में आया
हालत यह हो गयी सभी
हिंदी के सारे टीवी चैनल और
पत्र-पत्रिकाओं में यह नाम छाया
सुना है बच्चों को तोहफे देता है
हम बच्चे थे तो कभी वह नहीं आया
यह कहां का देवता है
जिसकी कृपा दृष्टि में यह देश अभी आया’

सुनकर पहले चौंके फिर
अपनी टोपी घुमाकर
कंप्यूटर पर उंगलियां नचाते हुए
बोले दीपक बापू
‘हम भी ज्यादा नहीं जानते
पहले अपने देवताओं के बारे में
पूरा जान लें, जिनको खुद मानते
मगर यह बाजार के विज्ञापन का खेल है
जो कहीं से लेता डालर
कहीं से खरीदता तेल है
इस देश के सौदागर जिससे माल कमाते हैं
उसके आगे सिर नवाते हैं
साथ में वहां के देवता की भी
जय जयकार गाते हैं
अपने देश के पुराने देवताओं की
कथायें सुना सुनाकर
ढोंगी संत अपना माल बनाते हैं
बाजार भी मौका नहीं चूकता पर
सभी दिन तो देश के देवताओं के
नाम पर नहीं लिखे जाते हैं
पर सौदागरों को चाहिऐ रोज नया देवता
इसलिये विदेश से उनका नाम ले आते हैं
अपने देश का उपभोक्ता और
विदेशी सेठ दोनों को करते खुश
एक तीर से दो शिकार कर जाते है
वैसे देवता भला कहां आते जाते
हृदय से याद करो देवता को
तो उनकी कृपा के फूल ऐसे ही बरस जाते
हम तो हैं संवेदनशील
जीते हैं अपने विश्वास के साथ
नहीं जानना कि कौन देवता कहां से आया
...............................................
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Sunday, December 28, 2008

प्रतियोगिता से कहीं अधिक वजन जंग में आता है-लघू व्यंग्य

अपने वाद्ययंत्रों के साथ सजधजकर वह घर से बाहर निकला और अपनी मां से बोला-‘‘मां, आशीर्वाद दो जंग पर जा रहा हूं।’
मां घबड़ा गयी और बोली-‘बेटा, मैंने तुम्हें तो बड़ा आदमी बनने का सपना देखा था । भला तुम फौज में कब भर्ती हो गये? मुझे बताया ही नहीं। हाय! यह तूने क्या किया? बेटा जंग में अपना ख्याल रखना!’
बेटे ने कहा-‘तुम क्या बात करती हो? मैं तो सुरों की जंग में जा रहा हूं। अंग्रेजी में उसे कांपटीनशन कहते हैं।’
मां खुश हो गयी और बोली-‘विजयी भव! पर भला सुरों की जंग होती है या प्रतियोगिता?’
बेटे ने कहा-‘मां अपने प्रोग्राम को प्रचार में वजन देने के लिये वह प्रतियोगिता को जंग ही कहते हैं और फिर आपस में लड़ाई झगड़ा भी वहां करना पड़ता है। वहां जाना अब खेल नहीं जंग जैसा हो गया है।’
वह घर से निकला और फिर अपनी माशुका से मिलने गया और उससे बोला-‘मैं जंग पर जा रहा हूं। मेरे लौटने तक मेरा इंतजार करना। किसी और के चक्कर में मत पड़ना! यहां मेरे कई दुश्मन इस बात का इंतजार कर रहे हैं कि कब मैं इस शहर से निकलूं तो मेरे प्रेम पर डाका डालें।’

माशुका घबड़ा गयी और बोली-‘देखो शहीद मत हो जाना। बचते बचाते लड़ना। मेरे को तुम्हारी चिंता लगी रहेगी। अगर तुम शहीद हो गये तो तुम्हारे दुश्मन अपने प्रेम पत्र लेकर हाल ही चले आयेंगे। उनका मुकाबला मुझसे नहीं होगा और मुझे भी यह शहर छोड़कर अपने शहर वापस जाना पड़ेगा। वैसे तुम फौज में भर्ती हो गये यह बात मेरे माता पिता को शायद पसंद नहीं आयेगी। जब उनको पता लगेगा तो मुझे यहां से वापस ले जायेंगे। इसलिये कह नहीं सकती कि तुम्हारे आने पर मैं मिलूंगी नहीं।’
उसने कहा-‘मैं सीमा पर होने वाली जंग में नहीं बल्कि सुरों की जंग मे जा रहा हूं। अगर जीतता रहा तो कुछ दिन लग जायेंगे।’

माशुका खुश हो गयी और बोली-अरे यह कहो न कि सिंगिंग कांपटीशन में जा रहा हूं। अरे, तुुम प्रोगाम का नाम बताना तो अपने परिवार वालों को बताऊंगी तो वह भी देखेंगे। हां, पर किसी प्रसिद्ध चैनल पर आना चाहिये। हल्के फुल्के चैनल पर होगा तो फिर बेकार है। हां, पर देखो यह जंग का नाम मत लिया करो। मुझे डर लगता है।’
उसने कहा-‘अरे, आजकल तो गीत संगीत प्रतियोगिता को जंग कहा जाने लगा है। लोग समझते हैं यही जंग है। अगर किसी से कहूं कि प्रतियोगिता में जा रहा हूंे तो बात में वजन नहीं आता इसलिये ‘जंग’ शब्द लगाता हूं। प्रतियोगिता तो ऐसा लगता है जैसे कि कोई पांच वर्ष का बच्चा चित्रकला प्रतियागिता में जा रहा हो। ‘जंग’ से प्रचार में वजन आता है।’
माशुका ने कहा-‘हां, यह बात ठीक लगती है। तुम यह कांपटीशन से जीतकर लौटोगे तो मैं तुम्हारा स्वागत ऐसा ही करूंगी कि जैसे कि जंग से लौटे बहादूरों का होता है। विजयी भव!
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Saturday, December 20, 2008

स्वर्ग में जगह दिलाने के लिए-हास्य कविता

एजेंट ने कहा उस बुजुर्ग आदमी से कि
"अपने जीवन का बीमा कराईये
और अपने मरने की बाद की चिंताओं से
हमेशा मुक्ति पाईये"
आदमी ने खुश होकर कहा
"बाकी चिंताओं से मुक्त हो गया हूँ
अपने सारे बोझ ढो गया हूँ
बस फिक्र मरने के बाद की है
देख रहा हूँ कई बच्चे
अच्छी तरह अपने बाप का
अन्तिम संस्कार नहीं करते
श्राद्ध करने के मामले पर आपस में लड़ते
बाप को स्वर्ग में जगह दिलाने के लिए
कुछ नहीं करते
आपकी इस बारे में क्या योजना है
पहले विस्तार से बताईये"

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Wednesday, December 17, 2008

बाजार में बिक सके वही मोहब्बत करना-व्यंग्य कविता

खूब करो क्योंकि हर जगह
लग रहे हैं मोहब्बत के नारे
बाजार में बिक सकें
उसमें करना ऐसे ही इशारे
उसमें ईमान,बोली,जाति और भाषा के भी
रंग भरे हों सारे
जमाने के जज्बात बनने और बिगड़ने के
अहसास भी उसमें दिखते हांे
ऐसा नाटक भी रचानां
किसी एकता की कहानी लिखते हों
भले ही झूठ पर
देश दुनियां की तरक्की भी दिखाना
परवाह नहीं करना किसी बंधन की
चाहे भले ही किसी के
टूटकर बिखर जायें सपने
रूठ जायें अपने
भले ही किसी के अरमानों को कुचल जाना
चंद पल की हो मोहब्बत कोई बात नहीं
देखने चले आयेंगे लोग सारे
हो सकती है
केवल जिस सर्वशक्तिमान से मोहब्बत
बैठे है सभी उसे बिसारे

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Thursday, December 11, 2008

बन जाए कोई आदमी एक चुटकुला-व्यंग्य कविता

अपने दर्द का बयाँ किससे करें
जबरन सब हँसते को तैयार हैं
ढूंढ रहे हैं सभी अपनी असलियत से
बचने के लिए रास्ते
खोज में हैं सभी कि मिल जाए
अपना दर्द सुनाकर
बन जाए कोई आदमी एक चुटकुला
दिल बहलाने के वास्ते
करते हैं लोग
ज़माने में उसका किस्सा सुनाकर
अपने को खुश दिखाने की कोशिश
इसलिए बेहतर है
खामोशी से देखते जाएँ
अपना दर्द सहते जाएँ
कोई नहीं किसी का हमदर्द
सभी यहाँ मतलब के यार हैं

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Wednesday, December 10, 2008

मोहब्बत है विज्ञापन के लिए-व्यंग्य कविता

जगह-जगह नारे लगेंगे
आज प्यार के नारे
बाहर ढूंढेंगे प्यार घर के दुलारे
प्यार का दिवस वही मनाते
जो प्यार का अर्थ संक्षिप्त ही समझ पाते
एक कोई साथी मिल जाये जो
बस हमारा दिल बहलाए
इसी तलाश में वह चले जाते

बदहवास से दौड़ रहे हैं
पार्क, होटल और सड़क पर
चीख रहे हैं
बधाई हो प्रेम दिवस की
पर लगता नहीं शब्दों का
दिल की जुबान से कोई हो वास्ता
बसता है जो खून में प्यार
भला क्या वह सड़क पर नाचता
अगर करे भी कोई प्यार तो
भला होश खो चुके लोग
क्या उसे समझ पाते
प्यार चाहिऐ और दिलदार चाहिए के
नारे लगा रहे
पर अक्ल हो गयी है भीड़ की साथी
कैसे होगी दोस्त और दुश्मन की पहचान
जब बंद है दिमाग से दिल की तरफ
जाने का रास्ता
अँधेरे में वासना का नृत्य करने के लिए
प्यार का ढोंग रचाते
यह प्यार है बाजार का खेल
शाश्वत प्रेम का मतलब
क्या वाह जानेंगे जो
विज्ञापनों के खेल में बहक जाते

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Monday, December 8, 2008

हर नशा बना देता है बेहया-व्यंग्य शायरी

सुबह का भूला शाम को
घर वापस आ जाता है
पर रात को जो भटका
वह सुबह तक वापस
नहीं आये तो घर में
तूफ़ान मच जाता है
घर में भूख का डेरा
शराब से नशे में चूर
आदमी की आंखों में
मदहोशी का अँधेरा
किसी गटर में गिरकर
या किसी वाहन से कुचलकर
जीवन की जो दे जाता है आहुति
उस पर भला कौन तरस खाता है
शराब मत पियो यारो शराब
उसका नशा तुम्हारी जिन्दगी को
खुद ही पी जाता है
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शराब का नशा आख़िर
दिमाग से उतर जाता है
पर दौलत, शौहरत और सोहबत का नशा
सिर चढ़कर बोले
आदमी को बेहया बना देता है
ज्ञान के अंधे से बुरा है
किसी का अज्ञान में मदांध होना
जो आदमी को शैतान बना देता है
जो निर्धन हैं और
पूंजी जोडे हैं विनम्रता की
उनसे दोस्ती भली
अपनी अमीरी, पहुंच और सोहबत के
नशे में चूर अहंकारी से दूरी भली
पीठ में छुरा घौपने में
उनमें तनिक भय नहीं आता है

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Friday, December 5, 2008

पेट भरा होते भी इंसान रोटी की जुगाड़ में जुट जाता-व्यंग्य शायरी

हमें पूछा था अपने दिल को
बहलाने के लिए किसी जगह का पता
उन्होने बाजार का रास्ता बता दिया
जहां बिकती है दिल की खुशी
दौलत के सिक्कों से
जहाँ पहुंचे तो सौदागरों ने
मोलभाव में उलझा दिया
अगर बाजार में मिलती दिल की खुशी
और दिमाग का चैन
तो इस दुनिया में रहता
हर आदमी क्यों इतना बैचैन
हम घर पहुंचे और सांस ली
आँखें बंद की और सिर तकिये पर रखा
आखिर उस नींद ने ही जिसे हम
ढूढ़ते हुए थक गये थे
उसका पता दिया

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सांप के पास जहर है
पर डसने किसी को खुद नहीं जाता
कुता काट सकता है
पर अकारण नहीं काटने आता
निरीह गाय नुकीले सींग होते
हुए भी खामोश सहती हैं अनाचार
किसी को अनजाने में लग जाये अलग बात
पर उसके मन में किसी को मरने का
विचार में नहीं आता
भूखा न हो तो शेर भी
कभी शिकार पर नहीं जाता
हर इंसान एक दूसरे को
सिखाता हैं इंसानियत का पाठ
भूल जाता हां जब खुद का वक्त आता
एक पल की रोटी अभी पेट में होती है
दूसरी की जुगाड़ में लग जाता
पीछे से वार करते हुए इंसान
जहरीले शिकारी के भेष में होता है जब
किसी और जीव का नाम
उसके साथ शोभा नहीं पाता
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