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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

Thursday, December 11, 2008

बन जाए कोई आदमी एक चुटकुला-व्यंग्य कविता

अपने दर्द का बयाँ किससे करें
जबरन सब हँसते को तैयार हैं
ढूंढ रहे हैं सभी अपनी असलियत से
बचने के लिए रास्ते
खोज में हैं सभी कि मिल जाए
अपना दर्द सुनाकर
बन जाए कोई आदमी एक चुटकुला
दिल बहलाने के वास्ते
करते हैं लोग
ज़माने में उसका किस्सा सुनाकर
अपने को खुश दिखाने की कोशिश
इसलिए बेहतर है
खामोशी से देखते जाएँ
अपना दर्द सहते जाएँ
कोई नहीं किसी का हमदर्द
सभी यहाँ मतलब के यार हैं

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