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Friday, December 5, 2008

पेट भरा होते भी इंसान रोटी की जुगाड़ में जुट जाता-व्यंग्य शायरी

हमें पूछा था अपने दिल को
बहलाने के लिए किसी जगह का पता
उन्होने बाजार का रास्ता बता दिया
जहां बिकती है दिल की खुशी
दौलत के सिक्कों से
जहाँ पहुंचे तो सौदागरों ने
मोलभाव में उलझा दिया
अगर बाजार में मिलती दिल की खुशी
और दिमाग का चैन
तो इस दुनिया में रहता
हर आदमी क्यों इतना बैचैन
हम घर पहुंचे और सांस ली
आँखें बंद की और सिर तकिये पर रखा
आखिर उस नींद ने ही जिसे हम
ढूढ़ते हुए थक गये थे
उसका पता दिया

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सांप के पास जहर है
पर डसने किसी को खुद नहीं जाता
कुता काट सकता है
पर अकारण नहीं काटने आता
निरीह गाय नुकीले सींग होते
हुए भी खामोश सहती हैं अनाचार
किसी को अनजाने में लग जाये अलग बात
पर उसके मन में किसी को मरने का
विचार में नहीं आता
भूखा न हो तो शेर भी
कभी शिकार पर नहीं जाता
हर इंसान एक दूसरे को
सिखाता हैं इंसानियत का पाठ
भूल जाता हां जब खुद का वक्त आता
एक पल की रोटी अभी पेट में होती है
दूसरी की जुगाड़ में लग जाता
पीछे से वार करते हुए इंसान
जहरीले शिकारी के भेष में होता है जब
किसी और जीव का नाम
उसके साथ शोभा नहीं पाता
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कवि एंव संपादक-दीपक भारतदीप

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