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Wednesday, January 9, 2008

संत कबीर वाणी:भेष ने अलख को भुला दिया

चतुराई से हरी न मिलै, ए बातां की बात
एक निस प्रेही निरधार का गाहक गोपीनाथ


संत शिरोमणि कबीरदास जी कहते हैं कि कितनी भी चतुराई कर लो उसके सहारे हरि मिलने का नहीं है, चतुराई की तो केवल दिखावे की बात है जबकि गोपीनाथ तो उसी के अपने होते हैं जो निस्पृह और निराधार होता है।

पघ से बूढी पृथमी, झूठे कुल की लार
अलघ बिसारियो भेष में, बूड़े काली धार


संत शिरोमणि कबीरदास जी कहते हैं कि किसी न किसी प्रकार के पक्षों को लेकर और वाद-विवाद में पड़कर कुल की परम्पराओं पर चलते हुए सब डूब रहे हैं। भेष ने अलख को भुला दिया। तब काली धर में तो डूबना ही था।

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