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Sunday, January 6, 2008

क्रिकेट में बेईमानी:ज़रा चाणक्य नीति देख लें

आस्ट्रेलिया में जो बीसीसीआई की टीम से जो व्यवहार हुआ उस पर सब चैनल दिखा रहे हैं और अपने देश के पुराने विद्वान खिलाड़ी अपनी-अपनी राय दे रहे हैं-उनकी बातें समझ में नहीं आ रहीं है । इस हालत में क्या करना चाहिए? मैंने सोचा क्यों न चाणक्य नीति देखी जाये। यहाँ मैं बता दूं कि महापुरुषों के सन्देश ज्ञान बघारने के लिए नहीं बल्कि स्वाध्याय करने के लिए लिखता हूँ। आज मैंने पुन: अपना लिखा ढूँढा उसमें मुझे कुछ वाक्य सही लगे और उन्हें प्रस्तुत कर रहा हूँ।

1.किसी भी व्यक्ति का सम्मान जिस क्षेत्र में न हो उसे त्याग देना चाहिऐ क्योंकि सम्मान के बिना जीवन का कोई अर्थ नहीं रह जाता।

मैं सोच रहा था कि क्या वहाँ बीसीसीआई की टीम का सम्मान कहीं रह गया है जो वहाँ अभी भी रुकी हुई है।

2.अपने कर्तव्य से विमुख होकर होकर कहीं भी सम्मान नहीं पाता है। अपने सम्मान के रक्षा स्वयं करनी होती है।

क्या उसकी टीम जो अपने देश के नाम को धारण किये बैठी है देश के सम्मान की रक्षा का कर्तव्य निर्वाह कर रही है और अपमानित करने वालों के खिलाफ कहीं कोई कार्यवाही की है।

3.ऐसा धन जो बैरियों की शरण में जाने पर मिलता है उसे त्याग देना चाहिए।
जिस तरह आस्ट्रेलिया में खिलाडियों और अंपायरों ने उसके साथ व्यवहार किया है क्या उसे बैरियों जैसा नहीं है और अब भी यह टीम तीसरे टेस्ट के लिए तैयार हो गयी है। क्या यह व्यवासायिक मजबूरी निभाना अब भी जरूरी है।

1 comment:

राज भाटिय़ा said...

**क्या यह व्यवासायिक मजबूरी निभाना अब भी जरूरी है।** बिलकुल नही, सम्मान बचाने के लियॆ सब कुछ भी खोना पडे तो मन्जुर हे, कल सर तो मान से उठा पऎगे,

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