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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

Tuesday, January 1, 2008

अपने लिए खुद ही बहाओ खुशी का झरना

मौसम की तरह लोग भी
बदल जाते हैं
सर्दी में गर्मी की यादें नहीं आती
मुसीबत की घडी में जो साथ दें
खुशियों के पल में
उनकी स्मृति दिमाग से परे हो जाती

तुमने अगर किसी को
दिया हो उसके तकलीफों में तो भूल जाओ
सदियों से कहते आ रहे हैं
नेकी कर दरिया में डाल
तुम भले ही अपने मन में रखो
पर नेकी के रास्ते का
भूलने के दरिया की तरफ ही है ढाल
वह खुद ही चलकर जायेगी
इसलिए तू ही उसे खुद डाल
तुम भी वैसी चलते जाओ
जैसे घडी की सुई चलती जाती
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भरोसा तोड़ देते हैं लोग
इसलिए छोड़ दें करना
बिखर जायेंगे खुद ही वरना
किसी का काम कर भूल जाओ
उधार देकर मांगने मत जाओ
अपने लिए खुद ही बहाओ खुशी का झरना

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