जिन कागजों पर लिखे शब्दों से
बहकता है ज़माना
ढूँढता है लड़ने का बहाना
हम उन्हें नहीं पढ़ पायेंगे
अपनी जिन्दगी अपने ही शब्दों से सजायेंगे
ऐसी किताबों पर यकीन जताते लोग
जो खुद कभी पढ़ और समझ नहीं पाते
मतलब समझने के लिए सयानों के
घर के दरवाजे खटखटाते
अपनी अक्ल गिरवी रख आते
हम अपने यकीन के चिराग खुद ही जलायेंगे
अपनी जिन्दगी में रौशनी के लिए सब
किसी और से दियासलाई मांगते उधार
जैसे भलाई का होता हो व्यापार
कोई खरीदता है सिर झुकाकर
कोई देता हैं आकाश से लाकर
तय कर लो अपने यकीन से
अपनी जिन्दगी की नैया पार लगायेंगे
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Monday, March 17, 2008
अपनी जिन्दगी की नैया पार लगायेंगे-कविता
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2 comments:
bahut hi sundar,sahi apna aashavad hume khud ban jana chahiye.
बहुत बढ़िया लिखा है-
कोई खरीदता है सिर झुकाकर
कोई देता हैं आकाश से लाकर
तय कर लो अपने यकीन से
अपनी जिन्दगी की नैया पार लगायेंगे
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