बरसों पहले कृश्न चंदर का उपन्यास देख ‘एक गधे की आत्मकथा’। पूरा नहीं पढ़ा क्योंकि उसमें गधे का बोलना-चालना समझ में नहीं आ रहा था। मैंने अपने जीवन में पढ़ने की शूरूआत पंचतंत्र की कहानियों और रामचरित मानस से की है इसलिये मुझे कई ऐसे उपन्यास भी नहीं समझ में आते जो बहुत प्रसिद्ध हैं। हां, ‘स्वर्णलता’ मेरा प्रिय उपन्यास है। बंगाली भाषा में लिखे गये इस उपन्यास का हिंदी अनुवाद मैने पढ़ा और मुझे बहुत पंसद आया जिन लोगों ने इसे पढ़ा होगा वह समझ सकते हैं कि वह मुझे क्यों पसंद आया। मुझे संघर्ष करने वाले पात्र पसंद है और वह भी जब कहीं न कहीं विजेता होते हैं। कृश्न चंदर के उस उपन्यास को मैने अपने बचपन में पढ़ने की बहुत कोशिश की पर नहीं पढ़ सका। हां, तब ख्याल आता था कि अगर जिंदगी में अच्छा लेखन नहीं कर पाये तो आत्म कथा जरूर लिखेंगे।
अभी भी कई बार ख्याल आता है कि आत्मकथा लिख डालें पर होता यह कि हमें उस उपन्यास की याद आ जाती है और तब सोचते हैं कि उसमें लिखें क्या? उसका शीर्षक क्या लिखे? कहीं न कहीं तो लिखना पड़ेगा कि आत्मकथा। अपना नाम लिखें या मेरी आत्मकथा लिख ही काम चलाये। मुख्य मुद्दा तो है उसमें लिखने वाली संभावित सामग्री। हम उसमें लिखेंगे तो अपने तन और मन पर जो बोझ उठाते हुए ही दिखेंगे। हमारी जिन्दगी भी मस्खरी से कम नहीं रही। लिखने की दृष्टि से भी अपनी भाषा शैली कृश्न चंदर जैसी नहीं हो सकती। वैसे तो ब्लाग लेखक के रूप में कोई नाम नहीं है और लेखक के रूप में भी कोई पहचान नहीं है पर मान लीजिये कोई थोड़ा बहुत नाम पढ़कर किताब ले भी तो वह कहेगा यह तो आदमी की कम गधे की आत्मकथा अधिक लगती है। अपने तन और मन पर इतना बोझ तो कोई गधा ही उठा सकता है। इतना अपमान सहन करने की ताकत तो केवल गधे में ही होती है। ऐसी बहस तो केवल तो कोई गधा ही कर सकता है। एक के बाद एक गल्तियां तो कोई गधा ही कर सकता है।
हम खुद बदनाम हों तो कोई बात नहीं है पर अगर हमने वाकई उसमें कई सच लिखे तो कई ऐसे लोग बदनाम हो जायेगे जिनके मूंह पर हमने कभी उनकी मूर्खताऐं और बेईमानियां उनके मूंह पर नहीं कही। आदमी दूसरे को धोखा देता है या खुद खाता है इस प्रश्न की खोज अगर हमने अपनी आत्मकथा में दिखाई तो ऐसे लोगों पर कीचड़ के छींटे गिरेंगे जिनको वह हमसे छिपाने की आशा करते हैं। जीवन के सत्य के साथ भी बहूत लोग जीते हैं यह हमने देखा है पर अधिकतर लोग बनावटी जिन्दगी जीते हैं। अपने भ्रम को दूसरे शिक्षा और संस्कार के नाम पर थोपते हैं। चारों तरफ जीवन का ज्ञान देने वाले लोग अपने जीवन में जिस अज्ञान के अंधेरे में रहते हैं उसे देखकर उन पर कभी हंसी तो कभी तरस आता है। हमारे आसपास अपने जीवन के झंझावतों में फंसे लोग यह आशा तो करते हैं कि हम उनकी मदद करें पर उनकी शर्तों के अनुसार। हमने देखा है कि हमने ही दूसरों की शर्तें मानी पर हमारा अवसर आया तो अपनी शर्तें थोपीं फिर भी वैसी मदद भी नहीं की जैसी हमने अपेक्षा की थी।
मतलब यह कि अपनी आत्मकथा लिखने से अच्छा है कि किश्तों में कहानियों और व्यंग्यों में अपनी बात कहते रहें। इतनी बड़ी किताब लिखें और फिर अपने पैसे लेकर प्रकाशक ढूंढें और इस बात की कोई गारंटी नहीं कि कोई उसे पढ़ेगा। हमारे एक मित्र से जब हमने आत्मकथा लिखने की बात की तो वह बोला-‘‘अभी तुम अपने व्यंग्यों में हम पर बहुत फब्तियां कस जाते हो और किताब में भी कोई अपनी गल्तियां थोड़े ही लिखोगे हमारे ऊपर ही सब लिखोगे। मत लिखो क्योंकि अपने को जितना सही साबित करने की करोगे उतना ही झूठे माने जाओगे। अपनी रचनाओं में तुम अपनी चर्चा नहीं करते इसलिये कोई तुम्हारे नाम से अधिक चर्चा नहीं करता पर आत्मकथा में सब तुम्हें झूठा ही समझेंगे।’’
सो तमाम विचार कर हमने आत्मकथा लिखने का कार्यक्रम स्थगित कर दिया।
यह अव्यवसायिक ब्लॉग/पत्रिका है तथा इसमें लेखक की मौलिक एवं स्वरचित रचनाएं प्रकाशित है. इन रचनाओं को अन्य कहीं प्रकाशन के लिए पूर्व अनुमति लेना जरूरी है. ब्लॉग लेखकों को यह ब्लॉग लिंक करने की अनुमति है पर अन्य व्यवसायिक प्रकाशनों को यहाँ प्रकाशित रचनाओं के लिए पूर्व सूचना देकर अनुमति लेना आवश्यक है. लेखक संपादक-दीपक भारतदीप,ग्वालियर
समस्त ब्लॉग/पत्रिका का संकलन यहाँ पढें-
पाठकों ने सतत अपनी टिप्पणियों में यह बात लिखी है कि आपके अनेक पत्रिका/ब्लॉग हैं, इसलिए आपका नया पाठ ढूँढने में कठिनाई होती है. उनकी परेशानी को दृष्टिगत रखते हुए इस लेखक द्वारा अपने समस्त ब्लॉग/पत्रिकाओं का एक निजी संग्रहक बनाया गया है हिंद केसरी पत्रिका. अत: नियमित पाठक चाहें तो इस ब्लॉग संग्रहक का पता नोट कर लें. यहाँ नए पाठ वाला ब्लॉग सबसे ऊपर दिखाई देगा. इसके अलावा समस्त ब्लॉग/पत्रिका यहाँ एक साथ दिखाई देंगी.
दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका
दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका
Monday, March 31, 2008
इसलिए आत्मकथा नहीं लिखते-व्यंग्य
Labels:
bharatdeep,
hasya-vyangy,
आलेख,
सन्देश,
समाज,
साहित्य,
हास्य व्यंग्य,
हिन्दी
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
हिंदी मित्र पत्रिका
यह ब्लाग/पत्रिका हिंदी मित्र पत्रिका अनेक ब्लाग का संकलक/संग्रहक है। जिन पाठकों को एक साथ अनेक विषयों पर पढ़ने की इच्छा है, वह यहां क्लिक करें। इसके अलावा जिन मित्रों को अपने ब्लाग यहां दिखाने हैं वह अपने ब्लाग यहां जोड़ सकते हैं।
लेखक संपादक दीपक भारतदीप, ग्वालियर
लोकप्रिय पत्रिकायें
विशिष्ट पत्रिकाएँ
-
मत का अधिकार था भगवान हुए मतदाता-दीपकबापूवाणी (Matadata ka Adhikar thaa Bhagwan hue Matdata-DeepakBapuwani) - *---ज़माने पर सवाल पर सवालसभी उठाते, अपने बारे में कोई पूछे झूठे जवाब जुटाते।‘दीपकबापू’ झांक रहे सभी दूसरे के घरों में, गैर के दर्द ...5 years ago
-
भ्रमजाल फैलाकर सिंहासन पा जाते-दीपकबापूवाणी (bhramjal Failakar singhasan paa jaate-DeepakbapuWani - *छोड़ चुके हम सब चाहत,* *मजबूरी से न समझना आहत।* *कहें दीपकबापू खुश होंगे हम* *ढूंढ लो अपने लिये तुम राहत।* *----* *बुझे मन से न बात करो* *कभी दिल से भी हंसा...5 years ago
-
राम का नाम लेते हुए महलों में कदम जमा लिये-दीपक बापू कहिन (ram nam japte mahalon mein kadam jama dtla-DeepakBapukahin) - *जिसमें थक जायें वह भक्ति नहीं है* *आंसुओं में कोई शक्ति नहीं है।* *कहें दीपकबापू मन के वीर वह* *जिनमें कोई आसक्ति नहीं है।* *---* *सड़क पर चलकर नहीं देखते...6 years ago
-
रंक का नाम जापते भी राजा बन जाते-दीपक बापू कहिन (Rank ka naam jaapte bhi raja ban jate-DeepakBapuKahin) - *रंक का नाम जापते भी राजा बन जाते, भलाई के दावे से ही मजे बन आते।* *‘दीपकबापू’ जाने राम करें सबका भला, ठगों के महल भी मुफ्त में तन जाते।।* *-----* *रुपये से...6 years ago
-
पश्चिमी दबाव में धर्म और नाम बदलने वाले धर्मनिरपेक्षता का नाटक करते रहेंगे-हिन्दी लेख (Convrted Hindu Now will Drama As Secularism Presure of West society-Hindi Article on Conversion of Religion) - हम पुराने भक्त हैं। चिंत्तक भी हैं। भक्तों का राजनीतिक तथा कथित सामाजिक संगठन के लोगों से संपर्क रहा है। यह अलग बात है ...6 years ago
2 comments:
मै भी समझ ही गया...हा हा!!! आभार! :)
सही में बवाल है आत्मकथा लिखना!
Post a Comment