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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

Wednesday, July 2, 2008

अपने अंदर ढूंढे, मिलता तभी चैन है-हिंदी शायरी

घर भरा है समंदर की तरह
दुनियां भर की चीजों से
नहीं है घर मे पांव रखने की जगह
फिर भी इंसान बेचैन है

चारों तरफ नाम फैला है
जिस सम्मान को भूखा है हर कोई
उनके कदमों मे पड़ा है
फिर भी इंसान बेचैन है

लोग तरसते हैं पर
उनको तो हजारों सलाम करने वाले
रोज मिल जाते हैं
फिर भी इंसान बेचैन है

दरअसल बाजार में कभी मिलता नहीं
कभी कोई तोहफे में दे सकता नहीं
अपने अंदर ढूंढे तभी मिलता चैन है
---------------------

1 comment:

नीरज गोस्वामी said...

दीपक जी
अपने अन्दर ढूंढें तभी मिलता चैन है...लाख टके की बात कही है आप ने.हम हमेशा सब कुछ बाहर ही तलाशते रहते हैं जबकि होता सब कुछ हमारे भीतर ही है...मेरा एक शेर है:
जिसको बाहर है खोजता फिरता
वो ही हीरा तेरी खदान में है
नीरज

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